सम्पूर्ण मानवता के आधार पर पूरे विश्व को साथ लेकर चलना सिखाती है राष्ट्रीय शिक्षा नीति : शिवकुमार।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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कुरुक्षेत्र, 22 मार्च :- विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान द्वारा ‘संस्कृति बोध’ विषय पर अन्तर्राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य वक्ता विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के राष्ट्रीय मंत्री शिवकुमार रहे। संस्थान के निदेशक एवं व्याख्यानमाला के संयोजक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने मुख्य वक्ता का परिचय करते हुए बताया कि माननीय शिवकुमार लम्बे समय से शिक्षा क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक हैं। उन्होंने भारत ही नहीं अपितु विश्व के अनेक देशों में शिक्षा, संस्कृति के निमित्त प्रवास किया है।
मुख्य वक्ता शिवकुमार ने कहा कि किसी भी देश के भविष्य का आकलन करना है तो उसे देश के किशोरों व युवाओं के द्वारा उनकी सहज अवस्था में गुनगुनाए जाने वाले गीतों को ध्यान से सुनिए। उन गीतों की पंक्ति के भावों में उस देश का भविष्य प्रतिबिम्बित होता है। अलग-अलग प्रकार की परिस्थिति में युवाओं का निर्माण होता है। जिस प्रकार की पृष्ठभूमि से युवाओं का निर्माण होता है उसी तरह से उनकी मानसिक स्थिति तैयार होती है। जैसी शिक्षा होती है वैसा ही विचार और दृष्टिकोण बनता है। जैसी शिक्षा होती है वैसी ही संतति का निर्माण होता है। इसी को ध्यान में रखकर इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को तैयार किया गया है। यह शिक्षा नीति भारत केन्द्रित शिक्षा की ओर इंगित करती है। प्रश्न उठता है क्या है भारत केन्द्रित शिक्षा? यह शिक्षा है सत्यम, शिवम्, सुन्दरम की ओर ले जाने वाली। सत्य क्या है, इसका अन्वेषण करने लिए हमें अपनी पौराणिक विरासत की तरफ ले जाने वाली। यह शिक्षा नीति सांकेतिक है जिस प्रकार गीता में कृष्ण और अर्जुन के संवाद हुए जिनका विश्लेषण विभिन्न विद्वानों ने किया, इसी प्रकार इस नीति में संकेत हैं। मूल रूप से यह शिक्षा नीति शिक्षक, विद्यार्थी, माता-पिता, समाज और प्रशासन इन पांच पर आधारित है। इसमें शिक्षक जोकि एक विषय को लेकर पढ़ाता है उसकी क्या भूमिका होनी चाहिए। इसी प्रकार विद्यार्थी का शिक्षक से सम्बन्ध तथा भारतीय दृष्टिकोण से छात्र की भूमिका क्या होनी चाहिए इस पर भी विचार किया गया है।
शिवकुमार ने कहा कि जिस प्रकार के नागरिक का निर्माण हम करना चाहते हैं, उसमें उसके माता-पिता की भूमिका भी महत्वपूर्ण है इसलिए माता-पिता को भी यह नीति साथ लेकर चलती है। पब्लिक और प्राइवेट यानि पी.पी.टी. मॉडल की भी इस नीति में चर्चा है। पूर्व काल में गुरुकुल में प्रशासन की भूमिका लगभग नगण्य रहती थी। परन्तु इस नीति में प्रशासन का कार्य सुझाव देना रखा गया है। बालक में होने वाले मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों के आधार पर पाठ्यक्रम, पुस्तकों व शिक्षक के प्रशिक्षण को करने पर ध्यान केन्द्रित किया गया है।
उन्होंने विष्णु पुराण के श्लोक 1-19-41 का उल्लेख करते हुए कहा कि उसमें आए शब्द ‘शिल्प नैपुण्यम्’ को इस नीति में वोकेशनल ट्रेनिंग के रूप में कक्षा 6 से सम्मिलित किया गया है। मातृभाषा को माध्यम बनाने हेतु अपेक्षा की गई है कि कम से कम प्राथमिक शिक्षा यदि मातृभाषा में होती है तो शिशुओं के कोमल मन व संवेगों को प्रभावित करती है जिससे भविष्य में वे एक अच्छे नागरिक बनेंगे। इतना ही नहीं शिक्षा को संस्कृति से जोड़ा गया है जिससे नागरिक में विवेकशीलता का निर्माण हो। इसमें आन्तरिक तथा बाहरी दोनों विकास की प्रक्रिया में सप्तमण्डलीय विचार को जोड़ा गया है। यह नीति आग्रहपूर्वक इसके विकास की बात करती है। आई.क्यू, इ.क्यू, एस.क्यू. की बात तो लम्बे समय से होती रही है इसके साथ इस नीति में सम्पूर्ण मानवता अर्थात एच.क्यू. को लिया गया है। सम्पूर्ण मानवता के आधार पर पूरे विश्व को साथ लेकर चलना यह शिक्षा नीति हमें सिखाती है। एक बहुत बड़ा पक्ष है मूल्यांकन का जिसे समाज, शिक्षक व परिवार के द्वारा छात्र अपनी जिम्मेवारियों को जीवन में कितना उतार पाया, उससे जोड़ा गया है। उन्होंने बताया कि जब हम धर्म की बात करते हैं तो इसका तात्पर्य केवल धार्मिकता से न होकर हमारे कर्म से है। रास्ते पर चलते हुए नियमों का पालन करना एक पथिक का धर्म है। सद्संस्कार कैसे पुष्पित एवं पल्लिवित हों तथा इस भूमिका में हम कितना जी रहे हैं इन पर विचार करने की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने सभी का धन्यवाद किया। संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने मुख्य वक्ता एवं देशभर से जुड़े सभी श्रोताओं का धन्यवाद किया और सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना के साथ व्याख्यान का समापन हुआ।
व्याख्यान में संबोधिात करते विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के राष्ट्रीय मंत्री शिवकुमार एवं परिचय कराते संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह।