पितरों को प्रसन्न कर आशीर्वाद लेने का पर्व श्राद्ध पक्ष : डा. सुरेश मिश्रा

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।

कुरुक्षेत्र : श्री दुर्गा देवी मन्दिर पिपली (कुरुक्षेत्र) के पीठाधीश डॉ. सुरेश मिश्रा ने बताया कि अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक तर्पण और श्राद्ध देने का पर्व और समय काल “पितृ पक्ष” कहलाता है।
श्राद्ध पक्ष का आरंभ 18 सितंबर 2024 से है और 2 अक्टूबर 2024 को सर्व पितृ अमावस्या के साथ सम्पूर्ण होगा। हिंदू धर्म में पितृ पक्ष की अवधि पितरों और पूर्वजों के लिए समर्पित होते हैं।
पूरे साल के 365 दिनों में मात्र 15 दिन ही पितरों को श्रद्धांजली, पिण्डदान आदि के लिए दिए गए हैं, अतः सम्पूर्ण वर्ष के 15 दिन भी सांसारिक मोहमाया का त्याग कर पितरों का न स्मरण कर सकें तो हम कैसी संतानें हैं ? क्योंकि आज हम सब जहां पर हैं, वह हमारे संतों और पूर्वजों की अथक मेहनत एवं प्रयास की ही देन है।
इस अवधि में शास्त्रों और विद्वानों ने कुछ विशेष कार्यों को करने के लिए कहा है और कुछ कार्यों को मना किया है।श्राद्ध पक्ष में किन कार्यों को मना किया है ?
पितृ पक्ष में शादी-विवाह,गृह-प्रवेश, मुंडन संस्कार और सगाई आदि सभी मांगलिक कार्यों को नही करना चाहिए। अपशब्द,छल,कपट, ईर्ष्या और नकारात्मक विचारों से दूर रहना चाहिए। किसी का जाने-अनजाने में भी अपमान न करें। इससे पितर नाराज होते है। पितृ पक्ष में अपने लिए नए वस्त्र और आभूषण खरीदने की भी मनाही है।
पितृ पक्ष में बासी भोजन,लौकी,मूली,काला नमक, सत्तु,मसूर की दाल, सरसों का साग,बैंगन,प्याज,लहसुन मांस-मदिरा और तामसिक भोजन के सेवन को मना किया गया है।
जूते चप्पलों का दान तो आपको भूलकर भी नहीं करना चाहिए। ऐसे करने से आपका राहु प्रभावित हो सकता है और आपको राहु दोष लग सकता है। लोहे के बर्तनों का दान भूलकर भी नहीं करना चाहिए। अपने घर के प्रयोग के लिए भी नई झाड़ू नहीं खरीदनी चाहिए।
श्राद्ध पक्ष में किन कार्यों को करना चाहिए ?
पितृ पक्ष में अन्न का दान करना विशेष फलदायी होता है। गेहूं और चावल का दान आप चाहें तो कर सकते हैं। संकल्प सहित दान करने का विशेष महत्व है।
पितृ पक्ष में वस्त्रों का दान तो जरुर करना चाहिए। वस्त्र बिल्कुल नए हों। सुवर्ण दान को सबसे उत्तम दान की श्रेणी में रखा गया है। अपने शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार आप सोना दान कर सकते हैं।
श्राद्ध अवधि में बनाए गए भोजन से पांच अंश निकाले जाते हैं, जिसे पंचबलि कहते है उसका संबंध पांच तत्वों से माना जाता है। चींटी को अग्नि तत्व का प्रतीक माना गया है, कुत्ते को जल तत्व का प्रतीक माना जाता है, गाय पृथ्वी तत्व का प्रतीक मानी जाती है, कौवा वायु तत्व का प्रतीक माना गया है वहीं देवता आकाश तत्व के प्रतीक माने जाते हैं। यही कारण है कि भोजन में से पंचबलि निकालकर इन पांचों का आभार व्यक्त किया जाता है।
यदि आप संपन्न है तो किसी जरूरतमंद व्यक्ति को भूमि या संपत्ति का दान करना चाहिए।
गाय का शुद्ध देसी घी का दान करना भी उत्तम माना जाता है। गाय के घी को एक पात्र में रखकर दान करना शुभ और मंगलकारी माना जाता है। इस दान को श्रद्धा और शुद्ध भावना से करने से घर में सुख संपत्ति और समृद्धि का वास होता है। इसका फल आपकी कई पीढ़ियों तक मिलेगा।
आचार्य डा. सुरेश मिश्रा ओशोधारा के संस्थापक समर्थगुरु सिद्धार्थ औलिया जी के शिष्य है। उनके अनुसार यदि आप भी किसी पूर्ण अनुभवी सदगुरू से दीक्षित है जो कि आत्मा और परमात्मा को अनुभव रुप से जानता है और शिष्यों को भी अनुभव कराता है। उनके द्वारा दी गई साधना में ओंकार सुमिरन ,ध्यान और समाधि और सर्व के प्रति मंगल भावना प्रतिदिन करें।

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