अयोध्या
मनोज तिवारी ब्यूरो चीफ अयोध्या
1975 इँदिरा गाँधी द्वारा थोपे आपातकाल के समय बिजनौर के धामपुर स्थित आर एस एम डिग्री कॉलेज में एक युवा प्रोफेसर चंपत राय बंसल, बच्चों को फिजिक्स पढ़ा रहे थे,तभी उन्हें गिरफ्तार करने वहां पुलिस पहुंची क्योंकि वह संघ से जुड़े थे।
अपने छात्रों के बीच बेहद लोकप्रिय चंपत राय जानते थे कि उनके वहाँ गिरफ्तार होने पर क्या हो सकता है।
पुलिस को भी अनुमान था कि छात्रों का कितना अधिक प्रतिरोध हो सकता है।प्रोफ़ेसर चंपत राय ने पुलिस अधिकारियों से कहा, आप जाइये में बच्चों की क्लास खत्म कर थाने आ जाऊँगा।
पुलिस वाले इस व्यक्ति के शब्दों के वजन को जानते थे अतः वे लौट गए ।क्लास खत्म कर बच्चों को शांति से घर जाने के लिए कह कर प्रोफेसर चंपत राय घर पहुँचे,माता पिता के चरण छू आशीर्वाद लिया और लंबी जेल यात्रा के लिए थाने पहुंच गए।18 महीने उत्तर प्रदेश की विभिन्न जेलों में बेहद कष्टकारी जीवन व्यतीत कर जब बाहर निकले तो इस दृढ़प्रतिज्ञ युवा के आत्मबल को संघ के सरसंघचालक रज्जू भैया ने पहचाना और राममंदिर की लड़ाई के लिए अयोध्या को तैयार करने का जिम्मा उनके कंधों पर डाल दिया।
चंपत राय ने अपनी सरकारी नौकरी को छोड़ दिया और राम काज में जुट गए।वे अवध के गाँव गाँव गये हर द्वार खटखटाया।स्थानीय स्तर पर ऐसी युवा फौज खड़ी की जो हर स्थिति से लड़ने को तत्पर थी।
अयोध्या के हर गली कूँचे ने चंपत राय को और हर गली कूंचे को उन्होंने भी पहचान लिया।
उन्हें अवध का इतिहास, वर्तमान, भूगोल की ऐसी जानकारी हो गई कि उनके साथी उन्हें “अयोध्या की इनसाइक्लोपीडिया” उपनाम से बुलाने लगे।
बाबरी ध्वंस से पूर्व से ही चंपत राय ने राम मंदिर पर “डॉक्यूमेंटल एविडेंस” जुटाने प्रारम्भ किये।
लाखों पेज के डॉक्यूमेंट पढ़े और सहेजे, एक एक ग्रंथ पढ़ा और संभाला उनका घर इन कागजातों से भर गया,साथ ही हर जानकारी उंन्हे कंठस्थ भी हो गई।
के परासरण और अन्य साथी वैद्यनाथन आदि वकील जब जन्म भूमि की कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए मैदान में उतरे तो उन्हें अकाट्य सबूत देने वाले यही व्यक्ति थे।6 दिसंबर 1992 को मंच से बड़े बड़े दिग्गज नेता कारसेवकों को अनुशासन का पाठ पढ़ा रहे थे।तमाम निर्देश दिए जा रहे थे।बाबरी ढांचे को नुकसान न पहुचाने की कसमें दी जा रहीं थीं,
उस समय चंपत राय जी मंच से कुछ दूर स्थानीय युवाओं के साथ थे।एक पत्रकार ने चंपत राय से पूछा “अब क्या होगा?उन्होंने हँस कर उत्तर दिया “ये राम की वानर सेना है, सीटी की आवाज पर पी टी करने यहां नहीं आयी ये जो करने आयी है करके ही जाएगी”.इतना कह उन्होंने एक बेलचा अपने हाथ में लिया और बाबरी ढांचे की ओर बढ़ गये, फिर सिर्फ जय श्री राम का नारा गूंजा और इतिहास रचा गया। आदरणीय चंपत राय बंसल को यूंही राम मंदिर ट्रस्ट का सचिव नहीं बना दिया गया है।उन्होंने रामलला के श्री चरणों में अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित किया है।
प्यार से उन्हें लोग राम लला का पटवारी” भी कहते हैं।यह व्यक्ति सनातन का योद्धा है।यह मुंह फाड़ करके बकवास करने वाले कोई कायर नहीं।
बाबरी ध्वंस के मुकदमों में कल्याणसिंह जी के बाद चंपत राय ने ही अदालत और जनसामान्य दोनों के सामने सदैव खुल कर उस घटना का दायित्व अपने ऊपर लिया है।चम्पत राय जी कह चुके हैं, जैसे ही राममंदिर का शिखर देख लेंगे युवा पीढ़ी को मथुरा की ज़िम्मेदारी निभाने को प्रेरित करने में जुट जाएंगे”।