श्री हरि प्रबोधिनी एकादशी एवं इगास पर्व (बूढ़ी दीवाली)

श्री हरि प्रबोधिनी एकादशी एवं इगास पर्व (बूढ़ी दीवाली)

ब्यूरो चीफ – संजीव कुमारी।

प्रस्तुति : डा. महेंद्र शर्मा ज्योतिषाचार्य संचालक आयुर्वेदिक शास्त्री अस्पताल गंगापुरी मार्ग पानीपत।

पानीपत : हमारे राष्ट्र में आज के कालखंड में धरातल की ओर अधोमुखी और नैतिकता से हीन होती हुई राजनीति की अपेक्षा हमारी परंपराओं, व्रत, पर्व और त्यौहारों ने अधिक बेहतर सलीके से एकात्मकता के सूत्र में पिरो रखा है , इस में हम ब्राह्मणों का योगदान अविस्मरणीय है। आगामी संवत्सर 2081 में विश्व का सबसे वृहद विस्तृत और महान मेला श्री प्रयागराज तीर्थ पर कुम्भ घटित होने वाला है जिस के प्रचार प्रसार में एक चवन्नी भी खर्च नहीं होती और निश्चित तौर से इस कुम्भ के मेले में लाखों की संख्या में सनातन धर्मी श्रद्धालुजन पहुंचेंगे और त्रिवेणी के संगम में स्नान करेंगे। यह है हमारी संस्कृति की एक महान विरासत … जिस में देश के कोने कोने से और विदेशों के भक्तजन आते हैं। मेले में चाहे कोई महलों में रहने वाला धन्ना सेठ हो या कोई झोंपड़ी में रहने वाला कोई साधारण व्यक्ति सभी मेले में लगे आश्रय स्थल टेंट्स में पराली पर सोते हैं, भूमि पर बिछे हुए आसन पर पंगत में बैठ कर सामूहिक रूप ईश्वरीय कृपा भोजन कर के स्वयं को धन्य मानते हैं। श्री हरि प्रबोधिनी एकादशी के बारे में हम सभी विस्तृत रूप से परिचित हैं कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी तिथि की पावन तिथि को हरिशयनी एकादशी पर देवता चार माह चतुर्मास्य के लिए विश्राम निद्रा करने चले जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि हरि शयनी एकादशी के पावन दिवस पर उषा काल में देवताओं द्वारा स्तुति के पश्चात जागृत होते हैं। जो इस पावन प्रभात संध्या के समय श्री हरि की श्रद्धापूर्वक पूजन करता है वह जीव जन्म जन्मांतरों के पापों से मुक्त होकर इस जीवन में सुख भोगता हुआ जीवनोपरांत श्री बैकुंठ धाम को प्राप्त करता है। इस दिन व्रत, तप, यज्ञ और दान आदि पूजा का वैदिक और पौराणिक विशेष महत्व है। इस दिन से पंच दिवसीय भीष्मपंचक व्रत पर्व भी आरम्भ होता है जिससे कार्तिक पूर्णिमा की दिन दीपदान के पश्चात कार्तिक मास और चतुर्मास्य का विधिवत समापन हो जाता हैं। इन चार मासों की श्रृंखला का यदि हम वैदिक और वैज्ञानिक अन्वेषण करें तो हम यह पाएंगे की समस्त वर्णों ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के संग समस्त देवी देवताओं पितरों, माता पिता ,गुरूशिष्य, पुत्रों, पति पत्नी,भाई बहिनों, भावी संतानों मित्रों और यजमानों के मंगल की कामना करते हैं। हमारी संस्कृति में किसी भी दिन को ऐसे ही फादर, मदर, सिस्टर, ब्रदर, प्रेयसी, गुलाब डे और आजकल एक नया पर्व अस्तित्व में आया है अनियमयन तुलसी डे आदि बिना नियम विधान के नहीं मनाया जाता।
अब एक नवीन विषय यह हैं की आखिर बूढ़ी दीवाली या ईगास पर्व क्या होता है, क्यों मनाया जाता है और इसको कहां मनाया जाता है। इसको उत्तराखण्ड क्षेत्र में बूढ़ी दीवाली क्यों कहते हैं। इस के संदर्भ में जनश्रुतियों और कथानकों के अनुसार त्रेतायुग में सीता हरण प्रकरण के पश्चात श्रीलंका में जब रावण का वध और लंका विजय के पश्चात कार्तिक अमावस्या को भगवान श्री राम चंद्र जी का श्री अयोध्या जी में राज्याभिषेक हुआ था तब समूचे आर्यावर्त में दीवाली मनाई गई थी यह परम्परा युगों युगांतरों से आज भी चलती आ रही है। अब भी और तब भी उत्तराखण्ड के यह प्रदेश सामरिक दृष्टि से दुर्गम थे और हिम प्रदेश थे जहां पर आना जाना आज की तरह से दुष्कर था। इस क्षेत्र के सुदूर और दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र के लोगों को श्री भगवान का राज्याभिषेक की सूचना कार्तिक अमावस्या से 11वें दिन श्री हरि प्रबोधिनी एकादशी के दिन प्राप्त हुई थी तब इस क्षेत्र में शेष राष्ट्र की तरह दीपोत्सव मनाया गया। इस दिन यहां के लोग विशेष मिष्ठान, पकवान, हलवापूड़ी ,पकौड़ी, स्वानी और भूड़ा बना कर अपने स्नेहीजनों में वितरित कर खुशी मनाते हैं। इस दिन सुबह सवेरे गोपूजन और श्री भगवान विष्णु जी का पारंपरिक रीति रिवाजों से विधिवत पूजन होता है और “भैलो” नामक मशाल जला कर शोभा यात्रा के रूप में प्रदोष काल में नगर परक्रिमा की जाती है। लोग बाग नृत्य और श्री हरिनाम संकीर्तन करते हुए इस में भाग लेते हैं। इसको भैलो बग्वाल के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन पूरे उत्तराखंड में दीपावली की तरह ही उत्सव होता है इसको बूढ़ी दीवाली इसलिए कहते हैं श्री भगवान का राज्याभिषेक पहले हो चुका हुआ होता है और शेष विश्व यह दीपावली उत्सव मना चुका होता है। कुछ भी जब जागो तभी सवेरा वैसे भी इस दिन देवता निद्रा से जागते हैं तो दीप उत्सव तो बनता ही है और इस के आनन्द में और भी अधिक उत्कर्ष आ जाता है जब जनमानस को यह पता चलता है कि श्री अयोध्या जी में श्री राम राज्याभिषेक हो चुका है। आओ हम भी अपने अंतर्मन को ज्ञानदीप से पुनः प्रज्जल्वित कर अज्ञान को दूर भगाएं।
श्री गुरु शंकराचार्य पदाश्रित आचार्य डॉ. पo महेन्द्र शर्मा “महेश” पानीपत देहरादून नई दिल्ली दूरभाष 9215700495

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