फिरोजपुर 11 जुलाई {कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता}=
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के द्वारा श्री शिव कथा का आयोजन किया गया । जिसमें सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्य साध्वी सौम्या भारती ने बताया कि माता सती ने अपने आपको यज्ञ में भस्मीभूत कर दिया। परंतु उससे पहले वह शिव भगवान के चरणों में प्रार्थना करती है कि अगले जन्म में वह ही उन्हें पत्नी रूप में प्राप्त हो ।अगले जन्म में माता सती हिमालय राज एवं मैना के यहां पुत्री रूप में जन्म लेती है। उनके जन्म लेने पर सारा हिमालय नगर आनंद के सागर में डूब गया।
साध्वी जी ने बताया कि पुत्री के जन्म लेने पर उनके माता-पिता की प्रसन्नता की कोई सीमा ना रही । परंतु आज के परिवेश में पुत्री को जन्म लेने से पहले ही मां के गर्भ में दफना दिया जाता है। वह कन्या जिसे भारत भूमि पर लक्ष्मी का रूप कहा जाता है ।और नवरात्रों में नन्हीं नन्हीं कन्याओं की पूजा होती है उसी भूमि पर आज नारी को जन्म लेने का भी अधिकार नहीं दिया जाता। वह देश विकास कैसे करेगा ।स्वामी विवेकानंद जी कहते हैं कि मेरे देश में नारी प्रार्थना के योग्य है, क्योंकि प्रार्थना से विश्व की एक नई आत्मा का प्रार्दुभाव होता है। यह आत्मा ही किसी राष्ट्र की सार्थक संपत्ति है। मेरे देश में स्त्रियों में उतनी ही साहसिकता है जितनी की पुरुषों में। सभी उन्नत राष्ट्रों ने स्त्रियों को समुचित सम्मान देखकर ही अपने राष्ट्रीय गौरव को विकसित किया है । जो देश या राष्ट्र स्त्रियों का आदर नहीं करते हैं। कभी बड़े नहीं हो पाते और ना ही भविष्य में कभी बड़े होंगे ।हमारे देश के वर्तमान पतन का मुख्य कारण है कि हमने शक्ति की इन संजीव प्रतिमाओं के प्रति आदर की भावना नहीं रखी। मनु स्मृति में मनु जी भी कहते हैं कि यहां नारी को पूजा जाता है वहां देवताओं का निवास होता है । जहां नारी का सम्मान नहीं वहां भूतों का निवास होता है । अतः अपनी धारणाओं को त्याग करो कि पुत्र की कुल का तारक है आदि। अपनी बेटी को बेटे के सम्मान ही प्यार दे ,संसकार दें ।क्योंकि संस्कारी संतान ही माता-पिता का नाम रोशन कर सकती है।
मधुर भजनों के माध्यम से कथा का प्रवाह आगे बड़ा और कथा का समापन मंगलमय आरती के साथ हुआ। इसी के साथ कथा में कुछ अतिथि जैसे डॉ श्री बिमल शर्मा जी,श्री प्रदीप कक्कड़ जी, श्री विक्की ग्रोवर जी, श्री विजय वधवा जी, श्री अविनाश सक्सेना जी, श्री सतपाल दुआ जी, श्री संजीव ठुकराल जी ने पहुंच कर प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त किया।