दिव्या ज्योति जागृती संस्थान द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत कथा का हुआ शुभारंभ

दिव्या ज्योति जागृती संस्थान द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत कथा का हुआ शुभारंभ

प्रथम दिवस कथा व्यास साध्वी भाग्यश्री भारती जी ने कथा का महत्व बताते हुए कहा कि श्रीमद्भागवत महापुराण एक ऐसा ही अनुपम ग्रंथ है

फिरोजपुर 25 सितंबर कैलाश शर्मा जिला विषेश संवाददाता}=

दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा आयोजित श्रीमद्भागत कथा के प्रथम दिवस कथा व्यास साध्वी भाग्य श्री भारती ने कथा का माहात्म्य बताते हुए ‌कहा ‌‍कि हमारे वेद ग्रंथ एक अमूल्य निधि है और वेद व्यास जी द्वारा रचित श्रीमद्भागवत महापुराण एक ऐसा ही अनुपम ग्रंथ है॓॓। भीष्म पितामह प्रसंग सुनाते हुऐ साध्वी जी ने बताया कि भीष्म पितामह ने परमात्मा का ध्यान करते हुए अपनी देह का परित्याग किया और परमगति को प्राप्त किया। यह प्रसंग हमे संदेश देता है कि मृत्यु तो हर एक इंसान को आनी है, लेकिन मृत्यु वही सफल है जिसके आने पर जीवन भी सफल हो जाये। इसलिए इंसान को चाहिए कि समय रहते उस ईश्वर को जान ले तभी उसका जीवन व मृत्यु दोनो सफल हो सकते हैं।‌
परीक्षित प्रसंग सुनाते हुए साध्वी जी ने बताया कि उस समय तो कलिकाल का अभी प्रारंभ ही था, फिर भी राजा परीक्षित से इतना बडा़ अपराध हो गया। आज तो कलिकाल अपनी चरम सीमा पर है, तो क्या इसका प्रभाव हमारे ऊपर नहीं पड़ेगा? अवश्य पड़ेगा, आज समाज की हालत देखें, हर ओर अधर्म, अनाचार, पापाचार का बोलबाला है। हर मानव घृणा, द्वेष नफरत की आग में जल रहा है, ऐसे में आवश्यकता है , एक ऐसे पथप्रदर्शक की जो मानव को सही राह दिखा, उसके जीवन को सही दिशा दे सके।संस्थान द्वारा आयोजित श्रीमद्भागत कथा के प्रथम दिवस कथा व्यास साध्वी भाग्य श्री भारती ने कथा का माहात्म्य बताते हुए ‌कहा ‌‍कि हमारे वेद ग्रंथ एक अमूल्य निधि है और वेद व्यास जी द्वारा रचित श्रीमद्भागवत महापुराण एक ऐसा ही अनुपम ग्रंथ है॓॓। भीष्म पितामह प्रसंग सुनाते हुऐ साध्वी जी ने बताया कि भीष्म पितामह ने परमात्मा का ध्यान करते हुए अपनी देह का परित्याग किया और परमगति को प्राप्त किया। यह प्रसंग हमे संदेश देता है कि मृत्यु तो हर एक इंसान को आनी है, लेकिन मृत्यु वही सफल है जिसके आने पर जीवन भी सफल हो जाये। इसलिए इंसान को चाहिए कि समय रहते उस ईश्वर को जान ले तभी उसका जीवन व मृत्यु दोनो सफल हो सकते हैं।‌
परीक्षित प्रसंग सुनाते हुए साध्वी जी ने बताया कि उस समय तो कलिकाल का अभी प्रारंभ ही था, फिर भी राजा परीक्षित से इतना बडा़ अपराध हो गया। आज तो कलिकाल अपनी चरम सीमा पर है, तो क्या इसका प्रभाव हमारे ऊपर नहीं पड़ेगा? अवश्य पड़ेगा, आज समाज की हालत देखें, हर ओर अधर्म, अनाचार, पापाचार का बोलबाला है। हर मानव घृणा, द्वेष नफरत की आग में जल रहा है, ऐसे में आवश्यकता है , एक ऐसे पथप्रदर्शक की जो मानव को सही राह दिखा, उसके जीवन को सही दिशा दे सके।

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