दीपों के इस त्योहार के दिन रोशनी का विशेष महत्व
दीपक शर्मा (संवाददाता)
बरेली : सीबीगंज मिट्टी के दीये बनाने वाले कुम्हारों का बुरा हाल है, काफी मेहनत के बाद चाक चला कर ये दीपावली के लिए दीये तैयार करने में लगे हुए हैं इन्हे उम्मीद है की इस दीपावली पर उनके द्वारा बनाये दीयों से सभी के घर रोशनी से जगमगा जायेंगे। सीबीगंज क्षेत्र में भी दीए बनाने का कार्य कुम्हारों द्वारा किया जा रहा है क्षेत्र के प्रमोद प्रजापति, सोनू प्रजापति, और राजेश प्रजापति, इस काम को सालों से करते रहे हैं। उनके अनुसार दीए बनाने की कला उनकी पुस्तैनी है। इसी काम से उनके परिवार की रोजी-रोटी चलती है इस दीपावली पर दीयो की बिक्री पर मंदी छाई हुई है।
अब देखना होगा की इस दीपावली पर लोग मिट्टी के दीये लाकर रोशनी के पर्व को मनायेंगे या फिर चाइनीज आइटम के फेर में पड़कर अपने देशी अंदाज को भूल जायेंगे। क्योंकि इन कुम्हारों के परिवार इन दीयों की बिक्री पर ही निर्भर हैं। इन परिवारों की उम्मीद है की अगर लोगों का रुझान हमारी पुरानी सभ्यता पर रहा तो इस वार इनकी भी दिवाली मन जायेगी।
आप को बता दें कि
“दिपावली” दो शब्दों का योग है, एक दीप तो दूजा आवली। जंहा दीप का अर्थ मिट्टी से बने दीए से है, और आवली का अर्थ है पंक्ति। इस परंपरा का आगाज पौराणिक कथा के अनुसार त्रेतायुग में जब भगवान राम माता सीता और लक्ष्मण सहित 14 वर्षों का वनवास पूरा करके लौटे थे, उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि थी, अयोध्या वासियों ने उनके आने की खुशी में उनके रास्ते में पक्तियों में दीप जलाए थे तब से हुआ था। दिपावली का त्योहार दीपों का त्योहार कहलाता है. दीये जलाये बिना इस पर्व को अधूरा माना जाता है. दीपों के इस त्योहार के दिन रोशनी का विशेष महत्व होता है, इस दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. इस दिन पूरे घर को दीयों से सजाया जाता है। दीपावली भारत में रहने वाले हर इंसान के लिए एक अहम त्योहार है।