समाचार पत्रों में संवत्सर के नाम पर भ्रान्ति के संदर्भ में प्रख्यात ज्योतिषाचार्य डॉ. महेन्द्र शर्मा से विशेष बातचीत।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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पानीपत 9 अप्रैल :- उत्तर भारत के प्रसिद्ध आयुर्वेद ज्योतिषाचार्य शास्त्री हॉस्पिटल पानीपत के संचालक डॉ. महेन्द्र शर्मा से समाचारपत्रों में प्रकाशित नव संवत व अन्य ज्योतिष विषयों पर प्रकाशित सूचनाओं के बारे में जानकारी लेने पहुंचे हमारे संवादाता से बातचीत में उन्होंने बताया कि कोई भी व्यक्ति इन पण्डित जी से पूछे जिन्होंने समाचार पत्र में अपना नाम लिखवाया जाता है कि क्या उन्होंने कभी पूजा यज्ञ विवाह मुहूर्त ग्रह प्रवेश आदि के किसी अनुष्ठान के संकल्प में शक संवत्सरे के उच्चारण से यज्ञ संकल्प करवाया ?
संवत्सर के नाम पर विवाद वही लोग उठा रहे हैं जो पंचांग के पांचों नियमों को नहीं मानते। आज कल 1 जनवरी से 2021 ई0 वर्ष रहा है। और नवसंवत्सर 2078 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 13 अप्रैल 2021 से प्रारम्भ होगा। इसी वर्ष और विक्रमी संवत्सर में 57 वर्षों का अन्तर है। शक संवत्सर भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रारम्भ होता है। इस बार शक संवत्सर 1943 प्रारम्भ होगा। विक्रमी और शक संवत्सर में 125 वर्षों का अन्तर है। इसी वर्ष और शक संवतसर में 78 वर्षों का अन्तर है। समस्या तो संवत्सर के नाम पर चल रही है कि नव विक्रमी संवत्सर का नाम क्या होना चाहिये ? नव संवत्सर का नामकरण देवगुरु बृहस्पति (ब्राहस्यपत्ये) की गति पर निर्भर करता है। सामान्यता: बृहस्पति मार्गी या वक्री होने पर किसी भी राशि में लगभग 13 माह तक विद्यमान रहते हैं। गत संवत्सर 2077 में बृहस्पति ने अपनी अतिचारी गति के कारण 3 राशियों को स्पर्श किया है। अभी 3 दिन पूर्व बृहस्पति कुम्भ राशि में प्रविष्ट हुए हैं। जब गत वर्ष प्रमादी नामक संवत्सर 2077 प्रारम्भ हुआ था तो बृहस्पति धनु राशि में विराजित थे जो 20 नवम्बर 2020 को मकर में प्रविष्ट हुए और 6 अप्रैल 2021 को कुम्भ राशि में गये हैं। गुरु के अतिचारी (तीव्र) गति से संचार के कारण बृहस्पति के 3 राशियों को स्पर्श करने से “आनन्द” नामक संवत्सर लुप्त हो गया। वैदिक पंचांग नियमानुसार बृहस्पति अधिक से अधिक 2 बार राशि परिवर्तन करते है। लेकिन हर 81 वर्षों के बाद एक संवत्सर लुप्त हो जाता है, जब उनकी संचार गति तीव्र हो जाती है। आप सभी पंचांग लेकर उनका अध्ययन करेंगे तो उनमें लिखा होगा विक्रमी सम्वत 2078 और शक संवत्सर 1943 … नव विक्रमी संवत्सर का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। हमारे ज्योतिषीय गणना सिद्धान्त चन्द्रमा की गति से निर्धारित होते है। लेकिन शक संवत्सर को मानने वाले अपने संवतसर की गणना सौर अर्थात चैत्र संक्रान्ति से करते हैं, जिनके कारण उनकी गणना के अनुसार 15 दिन का अन्तर आने से वह आनन्द संवत्सर को लुप्त नहीं मान रहे है । अब यह समस्या उत्पन्न हो गई कि हम सनातन धर्मियों के सभी यज्ञ अनुष्ठान पूजा विवाह मुहूर्त आदि सब कृत्यों में संकल्प में ब्राह्मण विक्रमी संवत्सर का ही उच्चारण करते हैं। विक्रमी संवत्सर चन्द्रमा से और शक संवत्सर सौर गणना पर आधारित होने से 15 दिनों के अंतर के चैत्र संक्रान्ति 14 मार्च को प्रारम्भ हुई थी। इस लिये शक संवत्सरीय गुरु के 6 अप्रैल 2021 के राशि परिवर्तन को नहीं मान रहे है, जब कि आज तक किसी भी ब्राह्मण ने पूजा यज्ञ अनुष्ठान के संकल्पों में शक संवत्सर के अनुसार संकल्प नहीं करवाया क्यों कि ऐसी कोई वेदाज्ञा ही नहीं है कि संकल्प में शक संवत्सरे उच्चारण हो। मैं आप को मेरे पास उपलब्ध 8 के पंचांगों के प्रथम पृष्ठों को विक्रमी संवत 2078 और शक संवत्सर 1943 … लेकिन संवत्सर के नाम को लेकर कुछ ब्राह्मण जानबूझ कर धर्म को ही संकट में डाल रहे है जो कि निंदनीय कृत्य है । इससे केवल उनकी अपनी व्यक्तिगत टीआरपी तो बढ़ सकती है।
आचार्य डॉ महेन्द्र शर्मा “महेश” दूरभाष – 9215700495 पानीपत।