वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
मुरथल : ओशोधारा नानक धाम संस्थान मुरथल के संस्थापक समर्थगुरु सिद्धार्थ औलिया के सानिध्य में मुरथल महोत्सव 11 नवम्बर से 16 नवम्बर तक धूमधाम से मनाया गया। महोत्सव में हरियाणा सहित पंजाब, जम्मू – कश्मीर, उत्तर प्रदेश, गुजरात , झारखंड व नेपाल से आए साधकों ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियों की छटा बिखेरी। साधकों ने सुबह और शाम को गुरु पर्व और देवी देवताओं और संतो पर आधारित विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर उत्साह और प्रेरणा दायक का वातावरण बनाया।
ओशोधारा नानक धाम के समर्थगुरु सिद्धार्थ औलिया के सानिध्य में राइट माउंडफुलनेस और प्रेम प्रज्ञा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें आचार्यों ने जीवन जीने हेतु अमूल्य प्रज्ञा सूत्रों को दिया गया। संसार में अच्छा जीवन हेतु प्रज्ञा अति आवश्यक है।
मुरथल महोत्सव में भगवान विष्णु दरबार में भगवान् विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त की। मां दुर्गा का शक्ति दरबार में मां दुर्गा की और भगवान शिव की शक्ति और दिव्यता का अनुभव किया। सूफी दरबार में सभी सूफी संतों की दिव्यता और कृपा साधकों ने अनुभव की।
श्री दुर्गा देवी मन्दिर पिपली, कुरुक्षेत्र के पीठाधीश आचार्य डॉ. सुरेश मिश्रा ने बताया कि समर्थगुरु सिद्धार्थ औलिया सनातन धर्म और आध्यात्मिक अनुसन्धान निरन्तर कर रहे है। सनातन धर्म में आरती सुबह शाम हर सनातनी को अपने घर में परिवार सहित जरूर करनी चाहिए। भगवान से प्रार्थना धन्यवाद और अहोभाव सहित करनी चाहिए। भगवान की अनंत कृपा है।
गुजरात के साधकों ने सिख धर्म पर आधारित व गुरु नानक देव की जीवनी पर आधारित सुन्दर सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। साधक महोत्सव के भक्तिमय माहौल में डूबे रहे। श्री गुरुनानक देव जी की उपस्थिति का अनुभव किया। नेपाल के साधकों ने भगवान श्री राम और भगवती मां सीता जी के प्रेरणा दायक चरित्र और त्याग को प्रस्तुत किया। ओशोधारा टीम ने भगवान श्री राधा कृष्ण जी की प्रेम पूर्ण जीवन और मां मीरा के भक्तिमय जीवन को सुंदर प्रस्तुत किया ।
सांस्कृतिक कार्यक्रम के समन्वयक आचार्य आलोक ने सभी का सहयोग हेतु आभार प्रकट किया।
ओशोधारा के केंद्रीय संयोजक आचार्य दर्शन ने सभी आचार्य और साधकों को हार्दिक धन्यवाद दिया।
आदरणीय समर्थगुरु ने सभी साधकों से फीडबैक लिया और आशीष प्रदान की। सभी साधकों को ध्यान और ओंकार दीक्षा ध्यान योग कार्यक्रम में प्रदान करते है। गुरुमुखी परिवार ही सुखी परिवार होता है। सनातन धर्म में अनुभवी जीवित सद्गुरू का बहुत अमूल्य योगदान होता है। प्रत्येक वर्ष में दो बार सभी साधक अपने परिवार सहित मुरथल महोत्सव कार्यक्रम में शामिल होकर अपने परिवार सहित सुखी और आनंदित जीवन बिताए।