राधाष्टमी पर विशेष, राधिका जी के जन्म पर आधारित कथाएं

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 9416191877

प्रस्तुति : प्राचीन लक्ष्मीनारायण मन्दिर गीता कालोनी दिल्ली।

राधिका जी का जन्म कैसे हुआ।

दिल्ली : वैसे तो राधिका जी के जन्म के सम्बंध में अनेक कथाएं शास्त्रों में आती हैं लेकिन ऐसा माना जाता है कि आज से करीब पांच हजार दो सौ वर्ष पूर्व मथुरा जिले के गोकुल-महावन कस्बे के निकट “रावल गांव” में भाद्र पद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि, अनुराधा नक्षत्र, मध्यान्ह काल 12 बजे और सोमवार के दिन पिता वृषभानु एवं माता कीर्तिदा की पुत्री के रूप में श्री राधिका जी ने जन्म लिया… लेकिन कुछ दिन बाद उनके पिता महाराज वृषभानु जी ने वृंदावन में ही व्रषभानु पुरा गांव बसाया जिसे आज बरसाना के नाम से जाना जाता है वर्तमान में यही बरसाना धाम राधा जी की गृह भूमि है यही वह पवित्र भूमि है जहां श्री राधा जी ब्रज की अधीश्वरी के रुप में पूजी जाती है श्री राधा रानी के जन्म के संबंध में कहा जाता है कि राधिका जी ने भगवान श्री कृष्ण की भांति अपनी माता के पेट से जन्म नहीं लिया..बल्कि उनकी माता ने अपने गर्भ में केवल “वायु” को ही धारण किया हुआ था तब देवी योग माया कि प्रेरणा से उन्होंने केवल वायु को ही जन्म दिया परन्तु वहाँ स्वेच्छा से श्री राधा जी प्रकट हो गई…श्री राधा रानी जी कलिंदजा कूलवर्ती निकुंज प्रदेश के एक सुन्दर मंदिर में अवतरित हुई थी जिस समय श्री राधिका जी का जन्म हुआ उस समय सम्पूर्ण दिशाए निर्मल हो उठी तब महाराज वृषभानु और महारानी कीर्तिदा ने अपनी पुत्री राधिका जी के कल्याण की कामना से दो लाख उत्तम गौए ब्राह्मणों को दान की..राधिका जी के जन्म की दूसरी कथा इस प्रकार है कि एक दिन जब वृषभानु जी सरोवर के पास से गुजर रहे थे, तब उन्हें एक बालिका “कमल के फूल” पर तैरती हुई मिली, जिसे उन्होंने पुत्री के रूप में अपना लिया.तब राधिका जी का अभिषेक किया गया जिस समय श्री राधिका जी का अभिषेक किया गया उस समय सभी देवी-देवताओं ने वहां पुष्प वर्षा की और राधा जी को स्वर्ग के सिंहासन पर बिठाया लेकिन स्वर्ग के सिंहासन पर आसित करते समय सभी देवताओं के मन में ये विचार आया कि राधा रानी तो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की अधीश्वरी देवी हैं तो फिर उन्हें केवल सोलह कोस में फैले वृंदावन का ही आधिपत्य सौपनें की क्या आवश्यकता है.तब काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया कि बैकुंठ से भी कई गुना अधिक महत्व तो मथुरा का होगा….और मथुरा से भी अधिक महत्व वृंदावन का होगा..राधिका जी आयु में श्रीकृष्ण से ग्यारह माह बडी थीं लेकिन श्री वृषभानु जी और कीर्ति देवी को ये बात जल्द ही पता चल गई कि श्री किशोरी जी ने अपने प्राकट्य से ही अपनी आँखे नहीं खोली है.इस बात से उन्हें बड़ा दुःख हुआ लेकिन कुछ समय पश्चात जब नन्द बाबा कि पत्नी यशोदा जी गोकुल से अपने लाडले कृष्ण के साथ वृषभानु जी के घर आईं तब वृषभानु जी और कीर्ति जी ने उनका स्वागत किया तब यशोदा जी कान्हा जी को गोद में लिए राधाजी के पास आती है और जैसे ही श्री कृष्ण और राधा आमने-सामने आते है.तब राधा जी पहली बार अपनी आँखे खोलती है अपने प्राण प्रिय श्री कृष्ण को देखने के लिए वे एक टक कृष्ण जी को देखती ही रहती हैं…अपनी प्राण प्रिय राधिका को अपने सामने एक सुन्दर-सी बालिका के रूप में देखकर श्री कृष्ण स्वयं अत्यधिक आनंदित होते है, एक बार जब राधाजी से श्री कृष्ण ने पूछा कि हमारे साहित्य में तुम्हारी क्या भूमिका होगी तो राधाजी ने कहा मुझे कोई भूमिका नहीं चाहिए मैं तो सदा आपके पीछे ही रहूंगी।
राधे राधे।

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