कुरुक्षेत्र के निर्माण और विकास में नंदा जी की अहम् भूमिका : स्वामी ज्ञानानंद।

कुरुक्षेत्र के निर्माण और विकास में नंदा जी की अहम् भूमिका : स्वामी ज्ञानानंद।

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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सरस्वती नदी सभ्यता आज विश्व में प्राचीनतम सभ्यता के रूप में प्रतिष्ठितः कुलसचिव।
भारत रत्न श्री गुलजारी लाल नंदा की 24 वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय संगोष्ठी सरस्वती एवं कुरुक्षेत्र तीर्थः एक अवलोकन का हुआ आयोजन।

कुरुक्षेत्र, 15 जनवरी :- गीता मनीषी महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज ने कहा है कि भारत रत्न स्वर्गीय गुलजारी लाल नंदा को कुरुक्षेत्र का निर्माता कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। उन्होंने कुरुक्षेत्र में म्यूजियम स्थापित करना, ब्रह्मसरोवर का निर्माण करना और कुरुक्षेत्र विकास
बोर्ड की स्थापना कर धर्मनगरी के विकास का अनोखा कार्य किया। उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
वे शुक्रवार को भारत रत्न श्री गुलजारी लाल नंदा की 24 वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित सदाचार दिवस के अवसर पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के नीतिशास्त्र दर्शनशास्त्र केन्द्र, कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड तथा सेन्टर ऑफ एक्सिलैंस फॉर रिसर्च आन सरस्वती रिवर के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित सरस्वती एवं कुरुक्षेत्र तीर्थ : एक अवलोकन राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे। इससे पहले दीप प्रज्ज्वलन व सरस्वती देवी पर माल्यार्पण कर संगोष्ठी का शुभारंभ किया गया।
उन्होंने कहा कि मनुष्य के पास अपार क्षमता है। यदि हम अपनी अपनी अंदर की क्षमताओं का प्रयोग सही दिशा में करें तो कुछ भी कर पाना संभव है। यदि मनुष्य अपने अंदर व्यापकता की सोच लाए जो विश्व का कल्याण संभव है। भारत रत्न स्वर्गीय नंदा जी के मार्ग पर चलकर कुरुक्षेत्र के विकास में योगदान देना ही सही मायनों में सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उन्होंने कहा कि जब सत के साथ चेतना जुड़ती है तो बुद्धि सद्बुद्धि, कर्म सतकर्म, आचरण सदाचार बनता है। उन्होंने कहा कि गीता में उक्त सत्, सम, सत्ता एवं अस्मिता अर्थ के यथार्थ स्वरूप को नन्दा जी ने अपने त्यागपूर्ण जीवन में उतारा था।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. संजीव शर्मा ने कहा कि सरस्वती नदी सभ्यता आज विश्व में प्राचीनतम सभ्यता के रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी है। सरस्वती नदी सभ्यता को काल्पनिक मानने वाले पाश्चात्य चिंतको को उचित उत्तर मिल चुका है। इस दिशा में पद्मभूषण प्रो. विष्णु एस. वाकन्कर तथा हरियाणा के गौरव पद्मश्री दर्शनलाल का योगदान अतुलनीय है। जबकि हरियाणा व द्वारिका में मिले सबूत एवं साहित्यिक स्रोत से सरस्वती की स्थिति स्पष्ट हो चुकी है।
उन्होंने कहा कि नंदा जी के 28 वर्षां के त्याग व तपस्या से 48 कोस कुरुक्षेत्र भूमि के तीर्थो को आज दिव्य स्वरूप मिला हुआ है जिसे देखने के लिए देश-विदेश के पर्यटक विश्व संस्कृति की जन्मस्थली कुरुक्षेत्र एवं हरियाणा को देखने के लिए आ रहे हैं। स्वामी ज्ञानानन्द की प्रेरणा तथा योगदान से गीता जैसे महनीय मानव मात्र के लिए दर्शन एवं चरित्र के ग्रन्थ श्रीमद्भगवीता की वाणी आज देश तथा विदेश के दूर-दूर मुल्क तक पहुंच रही है। उनके आर्शीवचन से इस संगोष्ठी का शुभारंभ हुआ यह हम सबका सौभाग्य है।
प्रो. आरके देसवाल ने कहा कि धर्मनगरी कुरुक्षेत्र के निर्माण और विकास में भारत रत्न एवं पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय गुलजारी लाल नंदा का सबसे ज्यादा योगदान रहा है। नंदा जी के आदर्शो को अपने आचरण में अपनाने की जरूरत है। यदि हम अपने जीवन में सदाचार अपनाकर आगे बढ़े तो हमें निश्चित की सफलता मिलेगी। उन्होंने धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष के बारे में भी बताया।
आचार्य सुकदेव महाराज ने कहा कि भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा के आदर्शों को अपने जीवन में धारण करने की जरूरत हैं। जो व्यक्ति सदाचार को अपनाएगा वह निश्चित ही अपने लक्ष्य को आसानी से हासिल कर लेगा। भारत रत्न नंदा जी ने सारी उम्र समाज के लिए जिए और कुरुक्षेत्र के विकास के लिए उल्लेखनीय योगदान दिया। नंदा जी ने मजदूर व समाज के अंतिम छोर रहने वाले लोगों के लिए कानून बनवाए और उनके हितों के लिए कार्य किया।
कार्यक्रम में तिरूपति स्वामी जी ने सभी को नन्दा जी के त्याग मार्ग पर चलकर राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देने का आह्वान किया।
मंच का संचालन केन्द्र के निदेशक प्रो. सुरेन्द्र मोहन मिश्र ने किया। उन्होंने कहा कि भारत रत्न गुलजारी लाल नंदा कर्म करने में विश्वास रखते थे और कुरुक्षेत्र को विकास की राह पर लाने का काम नंदा जी ने किया, इस धर्मक्षेत्र के विकास का पहिया निरंतर आगे बढ़ता जा रहा है।
इस मौके पर केडीबी मानद सचिव मदन मोहन छाबड़ा, प्रो. पुष्पा रानी, डॉ. महासिंह पूनिया, डॉ. गुरचरण सिंह, डॉ. महेन्द्र हंस, प्रो. आरसी मिततल, रमेश सुखीजा, प्रदीप कुमार, रामकुमार गुप्ता, दर्शन गर्ग, संघर्ष मानव, अंगराज शर्मा, रविदत्त शर्मा, डॉ. शशि मिततल, बीडी लामसर, विनोद पचौरी सहित शिक्षक, कर्मचारी व छात्र मौजूद थे।

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