बिहार:लोकल फॉर वोकल की घोषणा से फारबिसगंज के कुम्हारों में जगी आस

लोकल फॉर वोकल की घोषणा से फारबिसगंज के कुम्हारों में जगी आस

फारबिसगंज के कुम्हार टोला में है पुश्तेनी धंधे से जुड़े दर्जनों परिवार

फारबिसगंज संवाददाता नारायण यादव

प्रखंड मुख्यालय स्थित कुम्हार टोला में बसे दर्जनों कुम्भकार (प्रजापति) समुदाय के लोग ज्योतिपर्व दीपावली के नजदीक आते ही मिट्टी के दीये गढ़ने एवं लक्ष्मी जी एवं गणेश जी की मूर्ति बनाने के अपने पुश्तैनी धंधे में जुट गये है। शहर से सटे कुम्हार टोला निवासी मदन पंडित, मालती देवी, चन्द्र देव पंडित आदि ने बताया कि तीन दशक पूर्व यह व्यवसाय उनकी आजीविका का एक मात्र साधन हुआ करता था। लोग धनतेरस, दीपावली के दिन अपने घरों, खेत-खलिहानों आदि स्थानों पर जलाने के लिये पर्याप्त मात्रा में दीये का उपयोग करते थे। साथ ही व्यवसायी वर्ग अपने अपने कारोबार की उन्नति के लिए धनतेरस एवं दीपावली को गणेश पूजन करते है। इससे उनके परिवार का भरण पोषण हो जाता था।

बाद के वर्षों में मोमबत्ती, चीनी बल्बों की भरमार एवं उसके बेहिसाब चलन बढ़ने से उनके इस व्यवसाय को ग्रहण लग गया। जिस कारण लोग मिट्टी के दीये का उपयोग सिर्फ रस्म निभाने के लिए करने लगे। इससे कुम्हार जाति के अधिकांश परिवार इस व्यवसाय को छोड़ परदेश कमाने व दूसरे कामों में लग गए। ताकि उससे कुछ पैसे अर्जित कर परिवार का भरण पोषण कर सके। बताया कि बीते दो तीन वर्षों से भारत-चीन संबंध बिगड़ने व चीनी सामान पर प्रतिबंध लगने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकल एवं वोकल की अपील व पर्यावरण संरक्षण अभियान से उम्मीद जगी है। अन्य साल के वनिस्पत इस बार दीये का आर्डर बाजार से आया है। लोगों में इसके प्रति रुचि जगने लगी है। इस वजह से उनमें भी जीविकोपार्जन को लेकर उम्मीद की किरण नजर आने लगी है। कुम्हार जाति के लोगों की मानें तो सरकार यदि कुंभकार के इस कला प्रतिभा, मूर्ति निर्माण आदि को प्रोत्साहित कर इसके व्यवसाय के लिए सहयोग एवं बाजार उपलब्ध कराने की दिशा में ठोस पहल करे तो दम तोड़ रहे इस प्रदूषण रहित पारंपरिक व्यवसाय को जीवनदान मिल सकता है। व्यवसाय से जुड़े परिवार अपनी माली हालत में सुधार लाकर आत्मनिर्भर बन सकते हैं। इधर पीएम मोदी की लोकल फ़ॉर वोकल की घोषणा का असर शहरी क्षेत्रों में भी साफ-साफ दिखने लगा है। शहर के मूर्ति व्यवसाय से जुड़े कारोबारी सोहन महाराज, दीपक समदरिया आदि ने बताया की दीपावली पर्व पर करीब 5 लाख रुपये मूर्ति व्यवसाय होता है। साथ ही दीये का कारोबार 2 लाख के करीब होता है। कहा कि पहले चीन से भगवान गणेश व लक्ष्मी की प्रतिमा बिकने के लिए आती थी, मगर अब ग्राहकों की मांग को देखते हुए लोकल मूर्ति की मांग बढ़ने लगी है। साथ ही दाम में भी कोई ज्यादा अंतर नहीं है। लोग भी मोदी की घोषणा का स्वागत करते हुए लोकल उत्पाद पर ज्यादा ध्यान देने लगे है।

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