माहौल बदल रहा है, काबुल की गलियों में इत्र छिड़कने से भी अब कुछ न होगा : डा. महेंद्र शर्मा।

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 94161 91877

वो पुरशिसे गम को आए हैं चुप रह न सकूं कुछ कह न सकूं।
खामोश रहूं तो मुश्किल है कह दूं तो कयामत होती है।

पानीपत : राजनीति में जय और पराजय के मध्य केवल एक ही महत्वपूर्ण बात होती है … माहौल कैसे बनाएं, हवा को अपने पक्ष में कैसे करें। यह नीति जिस राजनैतिक दल ने प्रतिपादित की थी, उसको ही झेलनी पड़ रही है। सब कुछ उल्टा पुलटा हो रहा है। जिस प्रतिपक्ष के नेता के भाषण काट छांट कर, अब आधा सच आधा झूठ सोशल मीडिया पर चलाए गया था, अब प्रतिपक्ष भी उसी राह पर चल पड़ा है। इस का सीधा साधा प्रमाण यह है कि इस धींगामुश्ती के जनक आज बहुत परेशान चल रहे हैं कि प्रतिपक्ष का सच जो वास्तविकता में ही इनके ही बयान है , उनको भारतीय जनमानस बड़े गौर से देख रहा है और जनता को उस सच्चाई का पता चल गया है कि तब राजनीति में अपने पक्ष माहौल बनाने के सत्ता ने दूसरों को धूल चटाने के न केवल उनका व्यक्तिगत अपमान किया था अपितु निम्न स्तर की राजनैतिक भाषा का भी प्रयोग किया था। यह सत्ता के लिए कुछ भी नया है। पंडित अटल बिहारी वाजपाई के समय ने उन्होंने स्वयं को संन्यासी न बता कर कुंवारा कहा था और प्रमोद महाजन ने सोनिया गांधी को मोनिका लेवंसकी तक की संज्ञा दे दी थी। लेकिन गत दस वर्षों से प्रतिपक्ष को क्या नहीं कहा… कांग्रेस की विधवा। धर्म का ठेका किसी व्यक्ति विशेष के पास नहीं हैं , मैं भी कट्टा सनातनी ब्राह्मण हूं, सत्य का पालन करना मेरा परम धर्म है। मैं व्यक्तिगत स्तर संघ को प्रबुद्ध और शिक्षित वर्ग के लोगों का संगठन मानता रहा था , लगता है कि वह एक भ्रान्ति ही रह गई । यह एक प्रबुद्ध वर्ग भी मौन है , लेकिन सनातन धर्म में मौन रहना भी पाप कहा गया है। लेकिन मैंने जब सत्यभामा और भगवान श्री कृष्ण के कुछ संवादों में पढ़ा और सुना जिन में यह वर्णित है कि मृत्यु के बाद पांडवों को पहले नरक की यात्रा करवाई गई क्यों कि धर्म के प्रतीक महाराज युधिष्ठिर ने युद्ध में अश्वथामा के मरने का झूठा भ्रम फैलाया था, वह अश्वत्थामा तो हाथी था न कि गुरुपुत्र और दुर्योधन तथा कर्ण सीधे स्वर्ग गए थे। भीष्म पितामह और कर्ण को भी दंडित किया कि इनके एक पाप के कारण इनके सभी पुण्य नष्ट हो गए थे क्योंकि भीष्म पितामह द्रौपदी चीर हरण के प्रत्यक्ष दर्शक थे , उन्होंने दुर्योधन और दुशासन को नहीं रोका। कर्ण ने मरते हुए अभिमन्यु को पानी नहीं पिलाया इसके कारण उनके पुण्य नष्ट हुए। दुर्योधन और कर्ण सीधे स्वर्ग में इसलिए गए थे कि जब अश्वत्थामा ने पाण्डव पुत्रों की सोते हुए हत्या कर दी थी तो दुर्योधन ने विलाप किया था … हे ब्राह्मण! तूने अनर्थ कर डाला। तुझे पाण्डवों के सिर लाने को कहा था, उनके पुत्रों के नहीं। हे पंडित! तू भली प्रकार से जानता है कि मेरे सारे भाई और मेरा प्रिय पुत्र लक्ष्मण भी युद्ध की भेंट चढ़ चुका है। अभिमन्यु भी नहीं रहा और तूने इन अबोध बालकों की हत्या कर दी। अब यह बता की कौरवों और पांडवों को मृत्यु के बाद जल तर्पण कौन देगा। कर्ण को उसकी मित्रता के कारण स्वर्ग मिला। मित्रता के विषय में कर्ण तो भगवान श्री राम से भी आगे निकल गया। सुग्रीव के बारे में भगवान राम की बात … जे न मित्र दुख होई दुखारी। की पंक्तियां कर्ण के इन वाक्यों से छोटी पड़ गई थी कि सुर पुर से मैं मुख मोड़ूंगा। केशव मैं उसे न छोडूंगा। यह लोग दस वर्षों हिंदुत्व की बात बड़े जोर शोर से कर रहे हैं। यह पार्टी हिन्दू हिंदी हिंदुस्तान के तीन शब्दों को कभी नहीं छोड़ेगी। लेकिन यह भी सत्य है यह लोग अपने धर्मग्रंथों से पौराणिक कथाओं से कुछ भी सीखते क्यों नहीं क्यों कि इनके पास भगवान के साथ सानिध्य करने का समय ही नहीं है। इन्होंने शायद ही कभी श्री रामायण या गीता पढ़ी होगी जिस में भगवान यह कहते हैं … जब जब होई धर्म की हानि / यदा यदा ही धर्मस्य… कि जब जब धर्म की हानि होगी, मैं किसी न किसी रूप में प्रकट होकर वसुन्धरा पर धर्म की पुनः स्थापना कर दूंगा। यह बात कोई व्यक्ति नहीं कह रहा , यह बात तो सोलह कला सम्पूर्ण भगवान श्री कृष्ण कह रहे हैं। इनको भगवान पर ही विश्वास नहीं दूसरों की बात क्या करें ?
लेकिन संसार परिवर्तनी माया है, हम जब रात को सोते हैं तो करवट बदलते रहते हैं, कोई भी व्यक्ति रात को एक स्थिति (status) में नहीं सो सकता, क्यों कि मनुष्य पाषाण की मूर्ति (statue) नहीं है। जो कर्मों का बीज बोया था अब वह धीरे धीरे अंकुरित हो चला है कि क्यों कि जनता अब इनके सत्य पर ही विश्वास नहीं कर रही। देश में भाजपा वोटर्स का वास्तविक प्रतिशत 17/18% है, इनमें शेष लोग तो दल बदलू नेता और कुछ मंदबुद्धि के भक्त (परिवर्तित) हैं। जिन्होंने जहां भी जिस भी दल के रहना है वहीं उत्पात ही करना या करवाना है। जब सत्ता के विपक्ष में माहौल बनने लगता है तो कुछ राजपूत प्रवृति के नेता अगर दूसरी साइड में जाने लगें तो समझ जाना चाहिए कि भविष्य में राजनीति किस करवट में सोएगी।
हमारी सरायकी भाषा में तो यह कहा जाता है…
नहीं वक्त सदा हम राह राहंदे।
मैडे पियार तूं इंज हथ चा नई।
वदा हकला डेंसे क़बरॉ ते
मिलना मुख्तयार सना नई।
इस राजनैतिक सत्यता में तुम बस आवाजें ही देते रह जाओगे। अब काबुल (वोटर्स) की गलियों में जितना मर्जी इत्र उड़ेल दो। लोगों को पता चल चुका है कि जब राजा के पुत्र ने इत्र को सूंघने की बजाय चखा था , राजा को मंत्रियों ने जैसे ही राजा को बताया कि उसके बेटे ने फ़ला राज्य में उसके सम्मान में जब इत्र पेश किया था तो सब के सामने उस इत्र को चाट लिया था तो राजा कहता है कि मूर्ख कहीं का , रोटी पर लगा कर खाता। तो मंत्रियों ने टोका दिया कि राजन इत्र तो सूंघते हैं, चाटते या खाते नहीं है। थोड़े दिनों उस राज्य के राजा ने इन के राज्य में यहां काबुल में आना था तो राजा ने सारे काबुल में इत्र छिड़कवा दिया था तब उस देश का राजा बोला … मुझे तुम्हारी अक्ल के स्तर का पता चल गया है। बेकार की हरकतों से तुम्हारे अतीत को कोई भूल थोड़े ही जाएगा कि इत्र का इस्तेमाल कैसे होता है। अब चुनाव के दिनों में लोगों को बहलाने फुसलाने की घोषणाएं हो रही हैं। वहीं शेर जिसने दो दिन पहले मेमने को इसलिए खाया था कि उसके बाप ने उसको गाली दी थी, अब मेमने और खरगोश के घर जा कर उसके परिवार का हाल हवाल पूछ रहा है। सब ठीक चल रहा है, कोई समस्या हो तो बताना … बंदा हाजिर है। अब जंगल में मेमना खरगोश बकरी गाय आदि ने मीटिंग कर ली है कि हम भी कम नहीं है शेर को गहरे खड्डे में न गिराया तो हम इंडिया नहीं।
आचार्य डॉ. महेन्द्र शर्मा “महेश”

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