महाभारत में छिपा है जीवन का सार

संवाददाता-श्री आदित्य चतुर्वेदी
अजमतगढ़-आजमगढ़

महाभारत की कहानी केवल कोई पौराणिक कथा तक सीमित नहीं है,यह जीवन का सार है,अगर आधुनिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो मैनेजमेंट के सारे सूत्र महाभारत में मौजूद है,महाभारत हमें कर्म की शिक्षा और व्यावहारिक जीवन का ज्ञान देती है,और हमें बताती है कि हमारे कर्म कैसे प्रधानता निभाते हैं,महाभारत की घटनाओं से हम कई महत्वपूर्ण बातें सीख सकते हैं..

हिंदू धर्म के चार प्रमुख ग्रंथ,हमें चार बातें सिखाते हैं,रामायण हमें रहन-सहन का ज्ञान देता है,और महाभारत कर्म करने का ज्ञान देता है,और हमें कर्मशील बनाता है,और गीता हमें जीने का एक सदमार्ग प्रदान करता है,इसके साथ-साथ भागवत हमें यह दिखाता है कि,परम शांति हमें मृत्यु के बाद ही मिलती है,जिसे कोई स्वीकार नहीं करना चाहता..

आज हम महाभारत से कर्म और जीवन के कुछ सूत्र सीख सकते हैं,महाभारत का सबसे बड़ा सूत्र सकारात्मक दृष्टिकोण है,जो हमें बताता है कि हमें हर कार्य को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखना चाहिए,ताकि हमारे मन के साथ-साथ हमारे कार्य भी सकारात्मकता से परिपूर्ण हो जाए..

आपको बता दें कि जब युधिष्ठिर और दुर्योधन के बीच राज्य का बंटवारा हुआ तो ,कौरवो को हस्तिनापुर का राज्य मिला,और पांडवों को वीरान जंगल खांडवप्रस्थ मिला,लेकिन पांडव दुखी नहीं हुए,क्योंकि उन्होंने सद मार्ग का पद चुना था,और उसी सद मार्ग और प्रभु श्री कृष्ण की अनन्य कृपा से जंगल में तब्दील खांडवप्रस्थ इंद्रप्रस्थ के रूप में परिवर्तित हो गया,इस घटना से यह सिद्ध हो जाता है कि,सद मार्ग पर चलने पर प्रारंभ में हमें कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है,लेकिन धैर्य और साहस के साथ यदि हम अपने मार्ग पर डटे रहे,तो यही कठिनाइयों से भरे मार्ग हमें भविष्य में सुखद आनंद प्राप्त कराते हैं…

महाभारत हमें संयमित भाषा सिखाती है,संयमित यानी कि शांत स्वभाव ,इसका तात्पर्य है कि शांत स्वभाव का व्यक्ति अपने शत्रुओं के मन में भी प्रेम का संचार कर देता है,तो इसलिए हमें यह बात याद रखनी चाहिए कि,चाहे शत्रु हो या शत्रु के रूप में खड़ा प्रतिद्वंदी हमें प्रत्येक से संयमित भाषा का ही प्रयोग करना चाहिए,जिससे हमारे भावी संकट भी हल हो जाते हैं,और आपका शत्रु भी बिना शस्त्र उठाए ही पराजित हो जाता है…

और आपको यह भी बताना चाहूंगा कि ,जब इंद्रप्रस्थ में द्रोपदी ने दुर्योधन को अंधे का पुत्र कह कर मजाक उड़ाया था,उन्हें स्वयं भी उसी राज्यसभा में अपमानित होना पड़ा था,इस बात से यह ज्ञात हो जाता है कि,यदि हम किसी का अपमान करेंगे,तो आज नहीं तो कल हमें स्वयं अपमानित होना पड़ेगा,यही सृष्टि का चक्र है,महाभारत हमें यह भी सिखाता है कि,शांति का रास्ता सबसे अच्छा होता है,और जीवन में सभी मुश्किलों का हल भी शांत रहने से हल हो जाते हैं,भगवान श्री कृष्ण ने शांति के लिए मथुरा छोड़ द्वारिका में निवास किया,महाभारत युद्ध के पहले भी वह हस्तिनापुर में शांति का उद्देश्य लिए आए थे,लेकिन जब व्यक्ति के मस्तिष्क में नकारात्मकता भर जाती है ,तो सही गलत का फर्क उसे समझ नहीं आता,भगवान श्री कृष्ण कहते हैं जीवन के आदर्शों पर चलना जीवन की सफलता होती हैं,लेकिन व्यक्ति इस सच्चाई को जान कर भी अनजान पड़ा हुआ है,भगवान श्री कृष्ण ने गीता का ज्ञान महाभारत से पहले कईयों को प्रदान किया था,लेकिन जब रणभूमि में अर्जुन जैसे शिष्य को सुपात्र पाकर जो गीता ज्ञान अर्जुन को मिला,वह घटना आज भी इतिहास में दर्ज है,इसलिए हमें भी अर्जुन की तरह श्री कृष्ण को भगवान के रूप में मानेंगे तो हम भी अर्जुन की तरह गीता ज्ञान के लिए सुपात्र साबित हो सकते हैं, श्री कृष्ण भगवान जिन्हें सर्वप्रथम वक्ता कहा जाता है,उनके पद चिन्हों पर हम चले तो,हमारे सारे दुख दूर हो जाएंगे,और सफलताएं हमारे चरण चूमेगी…यही था महाभारत का सार जिसे अपनाकर हम अपने जीवन को आनंदमय बना सकते हैं..जय श्री कृष्ण

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