शैक्षणिक संस्थानों की उत्कृष्टता से प्रशस्त होगा विकसित भारत का लक्ष्य

शैक्षणिक संस्थानों की उत्कृष्टता से प्रशस्त होगा विकसित भारत का लक्ष्य।

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 9416191877

प्रोफेसर ज्योति राणा
कुलसचिव, श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय
(हार्वर्ड से लौट कर)

तेजी से बदल रही दुनिया में शैक्षणिक संस्थान किसी भी देश के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी पूरे विश्व के सम्मुख एक आदर्श प्रतिमान है। दुनिया के इस लब्धप्रतिष्ठ संस्थान में आयोजित होने वाले नेतृत्व कार्यक्रम अंतर्दृष्टि और सीखने की महत्वपूर्ण प्रक्रिया को सर्वाधिक अधिमान प्रदान करते हैं। इन आयामों से भारतीय शिक्षण संस्थान भी वैश्विक दर्जा प्राप्त करने की दिशा में प्रेरणा हासिल कर सकते हैं। हार्वर्ड की विशेषताओं के आलोक में भारतीय शिक्षण संस्थानों की राह आसान हो सकती है। इस संस्थान से अर्जित ज्ञान अभूतपूर्व परिवर्तनों को आधार देने की क्षमता रखता है। यहां उन्हीं तथ्यों को इंगित और संकलित करने की कोशिश है, जो संकाय सदस्यों, छात्रों, विश्वविद्यालयों, राज्यों और राष्ट्र के लिए मुख्य निष्कर्षों का अन्वेषण करते हैं । संकाय सदस्य हार्वर्ड से सहानुभूति, प्रामाणिकता और मौलिकता की मूलभूत सीख को सिद्धांत के तौर पर ग्रहण कर सकते हैं। हार्वर्ड सिखाता संकाय सदस्यों को शिक्षा जगत के सदस्यों के रूप में अपने उद्देश्यों को परिभाषित करने की कला सिखाता है । साथ ही खुद को संस्थागत लक्ष्यों के साथ तालमेल बिठाने की गहरी सीख भी देता है । छात्रों के साथ घनिष्ठ जुड़ाव और प्रामाणिकता को बढ़ावा देकर उनकी सोच को और अधिक मौलिक बनाया जा सकता है । इसके माध्यम से छात्रों को अपने अनोखे दृष्टिकोण विकसित करने और सीखने की प्रक्रिया में अधिक उत्साह के साथ प्रेरित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त अपनी खुद की ग़लती को पहचानना और विनम्रता से उसकी स्वीकार्यता एक बड़ा गुण विकसित करती है । परिणामस्वरूप गलतियों के माध्यम से नई सीख लेने और सीखने की प्रक्रिया को अधिक मैत्रीपूर्ण बनाने के साथ-साथ आलोचनात्मक सोच को विकसित करने में मदद मिलती है ।
हार्वर्ड का दृष्टिकोण है कि संकाय सदस्यों के पास समस्याओं का प्रभावी ढंग से निस्तारण करने की क्षमता होनी चाहिए। वे प्रत्येक छात्र की आवश्यकताओं और चुनौतियों को समझकर उचित मार्गदर्शन और सहायता प्रदान कर सकते हैं। इसके अलावा अनुशासित होकर समय का पाबन्द बनने, किसी भी सामग्री का पहले से अध्ययन करने और अनौपचारिक चर्चाओं के माध्यम से हास्य का पुट देकर शिक्षण में सरसता प्रदान की जा सकती है। विद्यार्थियों की भागीदारी को बढ़ावा देकर और उन्हें स्वतंत्र अवसर प्रदान कर सीखने के अनुभव को विस्तार दिया जा सकता है ।
हार्वर्ड की बौद्धिक परम्परा के अनुसार विद्यार्थियों को शैक्षणिक ज्ञान से परे आवश्यक कौशल हासिल करना चाहिए। ग्राफिक डिज़ाइन, वीडियो प्रॉडक्शन, वेबसाइट प्रबंधन और निष्पादन कला, यह ऐसे महत्वपूर्ण कौशल हैं, जो छात्रों को आधुनिक कार्यस्थल की जटिलताओं के लिए तैयार करते हैं। इसके अलावा, स्थानीय सामुदायिक परियोजनाओं में शामिल होने से सामाजिक दायित्व का भान होता है और वैश्विक समस्याओं के समाधान को बढ़ावा मिलता है। इससे छात्र अपने ज्ञान और कौशल को सार्थक रूप से लागू करने में सक्षम होते हैं।
यह भी अत्यंत महत्वपूर्ण है कि तकनीकी विशेषज्ञता के अतिरिक्त विद्यार्थी सॉफ्ट स्किल भी विकसित करें। प्रभावी संचार, जटिल वार्ताओं को संभालने की कला, चर्चाओं में सक्रिय भागीदारी, विचारों के परीक्षण और सहकर्मियों को सकारात्मक रूप से प्रभावित करना व्यवसायिक परिवेश में सफलता के बिंदुओं को समाहित करता है। इन सभी कौशलों का पोषण विद्यार्थी को व्यैक्तिक तौर पर सशक्त बनाता है।
विश्वविद्यालयों को छात्रों, शिक्षकों और पूर्व छात्रों के बीच मजबूत संबंधों को बढ़ावा देते हुए सामुदायिक निर्माण की पहल को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। पूर्व छात्रों को सलाहकार के रूप में शामिल करने से सीखने का अनुभव समृद्ध होता है और छात्रों को आपस में जुड़ने का सुअवसर भी मिलता है । इसके अलावा विश्वविद्यालय के बाहर के अन्य विद्यार्थियों की जरूरतों के हिसाब से आदान-प्रदान और सहयोग बढ़ता है ।
एक उपयोगी शैक्षणिक वातावरण बनाने के लिए विश्वविद्यालयों को विभिन्न पृष्ठभूमि के विशेषज्ञों नियुक्त करने को प्राथमिकता देनी चाहिए । इसमें अल्पसंख्यकों को भी शामिल किए जाने की भी आवश्यकता है। सभी छात्रों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करते हुए समानता और समावेशिता को बढ़ावा देने वाली नीतियां विकसित और कार्यान्वित की जानी चाहिए।
हार्वर्ड के अध्ययन के अनुसार डेटा को सुनियोजित करने और दस्तावेजों को व्यवस्थित करने से प्रभावी निर्णय लेने और संसथान सुव्यवस्थित संचालन में मदद मिलती है। अनोखे प्रशासनिक मॉडल और वास्तव में कार्यों की अंतिम अवधि परिणामों को बढ़ाती है । इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालय अपने खास ब्रांड विकसित करके अपनी ख्याति बढ़ा सकते हैं। विश्वविद्यालय विशिष्ट व्यापारिक प्रतिष्ठान भी खड़े कर सकते हैं और रियायती दरों से समाज को लाभ पहुंचा सकते हैं।
राष्ट्रीय राजधानी से सटा हरियाणा राज्य शैक्षणिक संस्थानों को इस निकटता के लाभ उठाने के अवसर प्रदान करता है। दिल्ली स्थित संस्थानों के साथ संबंधों को मजबूत करने और तालमेल में संसाधनों तथा ज्ञान के आदान-प्रदान और सहयोगात्मक पहल को सुविधाजनक बनाया जा सकता है। उद्योग-प्रायोजित कार्यक्रमों को प्रोत्साहित कर शिक्षा जगत और उद्योग के बीच की दूरी को कम किया जा सकता है। इससे छात्रों में व्यावहारिक कौशल और रोजगार की संभावनाओं को बढ़ाया जा सकता है।
प्रदेशों को योग्य छात्रों को छात्रवृत्ति और वित्तीय सहायता प्रदान करने को प्राथमिकता देनी चाहिए । इससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की वित्तीय बाधाएं दूर हो सकती हैं । गाँव गोद लेने के कार्यक्रम शैक्षिक सहायता, स्वास्थ्य सेवाएँ और कौशल विकास के अवसर प्रदान करके ग्रामीण समुदायों का उत्थान करने में मददगार साबित हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त, कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों और डिजिटल साक्षरता पहल को बढ़ावा देने से छात्रों को डिजिटल युग के लिए आवश्यक दक्षताओं के लिए तैयार किया जा सकता है । इससे रोजगार की क्षमता बढ़ती है और राज्यों के समग्र विकास में योगदान मिलता है।
देश के शैक्षिक परिदृश्य को आगे बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालयों के बीच परस्पर सहयोग महत्वपूर्ण है। प्रतिस्पर्धा की ओर ध्यान केंद्रित करने तथा ज्ञान साझा करने से अंतःविषय अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा मिलता है। संस्थानों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करने के बजाय उन कार्यक्रमों में उत्कृष्टता हासिल करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। इसके अलावा शैक्षणिक संस्थानों के भीतर काम के अवसर पैदा करने से छात्रों के लिए वित्तीय स्वतंत्रता को बढ़ावा मिलता है और उन्हें पेशेवर दुनिया के लिए तैयार किया जा सकता है।
विश्वविद्यालयों को सामुदायिक सेवा परियोजनाओं में शामिल होकर छात्रों के बीच सामाजिक जिम्मेदारी और समाज के साथ जुड़ाव का भाव पैदा करना चाहिए। इससे न केवल समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है बल्कि संस्थान की प्रतिष्ठा भी मजबूत होती है। इसके अतिरिक्त संकाय सदस्यों के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम निरंतर व्यावसायिक विकास सुनिश्चित करते हैं । परस्पर सहयोग कार्य अवसर और क्षमता निर्माण में वृद्धि करता है। संस्थागत जवाबदेही से पारदर्शिता और गुणवत्ता को बढ़ावा मिलता है।
नेतृत्व कार्यक्रम से मिली सीख शैक्षणिक संस्थानों को विश्व स्तरीय केंद्रों में बदलने के लिए प्रमुख क्षेत्रों पर प्रकाश डालती है। आवश्यक कौशल के प्रोत्साहन, सामुदायिक निर्माण को प्राथमिकता और सहयोग से उत्कृष्ता की ओर बढ़ा जा सकता है । इन अनुभवों से शिक्षण संस्थान सीखने के अनुभव को फिर से परिभाषित कर अच्छे स्नातक तैयार कर सकते हैं। इसके अलावा, राज्य और राष्ट्र को शैक्षिक संस्थानों, छात्रों और संकाय सदस्यों को सशक्त बनाने के लिए आवश्यक सहायता और संसाधन प्रदान करने चाहिएं । इससे शिक्षा का एक सशक्त तंत्र तैयार होगा । परिणामस्वरूप उत्कृष्टता और प्रगति, दोनों को विकसित करना सम्भव होगा। सीखने पर आधारित इन अनुभवों को प्रतिबद्धता से क्रियान्वित कर न केवल हरियाणा, बल्कि एक राष्ट्र के रूप में भारत को शिक्षा के प्रबल अग्रदूत के तौर पर स्थापित करना सम्भव है।

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