अनेक रोगों के निवारण में संक्रांति पर्व की अहम भूमिका : महन्त सर्वेश्वरी गिरि जी महाराज।

अनेक रोगों के निवारण में संक्रांति पर्व की अहम भूमिका : महन्त सर्वेश्वरी गिरि जी महाराज।

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 94161-91877

संक्रान्ति पर्व का महत्व।

कुरुक्षेत्र पिहोवा :- राष्ट्रीय संत सुरक्षा परिषद संत प्रकोष्ठ की प्रदेशाध्यक्ष एवं श्री गोविन्दानंद आश्रम ठाकुरद्वारा पिहोवा की महन्त सर्वेश्वरी गिरि जी महाराज ने आज संक्रांति पर्व के विषय मे जानकारी देते हुए बताया कि संक्रान्ति का अर्थ होता है सूर्य देव का एक दूसरी राशि में प्रवेश। यद्यपि उत्तर भारत में हम प्रत्येक संक्रान्ति को पर्व मनाते हैं, जिसमें अन्न दान विशेष कर सूर्य से जुड़े पदार्थ गेहूं गुड़ आदि का दान करते हैं। सूर्य की पूजा करने से शेष ग्रहों के दोष भी शान्त होते हैं। क्यों कि एक वैदिक नियम है जब कोई भी ग्रह शुभ फल न दे रहें हो, हर प्रकार के पूजा पाठ दान निष्फल हो रहे हों तो फिर सूर्य देव का पुण्य स्मरण और उपासना करते हैं। जब यदि कार्तिक मास में सूर्य भी नीचस्थ हों तो भगवान शिवहरि की पूजा करते हैं।
इसलिये संक्रांतियों में वैशाख कर्क कार्तिक और मकर संक्रांति का विशेष महत्व है।
महन्त सर्वेश्वरी गिरि ने बताया कि वैशाख में सूर्य मेष राशि में उच्च के होते हैं।
कर्क के सूर्य में दक्षिणायन
प्रारम्भ होता है तो मकर संक्रांति पर सूर्य उत्तरायण में प्रवेश करते हैं।
भारतीय सनातन संस्कृति में सनातन धर्मी और सिख समुदाय हर संक्रान्ति इस लिये मनाता है कि जब सभी ग्रहों के पिता प्रसन्न रहेंगे तो शेष कोई भी ग्रह दूषित फल नहीं देंगे। माता- पिता की सेवा करने से हर तरह के सुखों की प्राप्ति होती गई। सूर्य पिता के कारक माने जाते हैं और चन्द्रमा माता के, इनकी पूजा से मानसिक, शारीरिक और पितृ दोष भी समाप्त होते हैं। इस लिये हमारे उत्तर भारत में हर संक्रान्ति का विशेष महत्व है। सभी ग्रहों के शुभ फल की प्राप्ति के लिये नित्य प्रति जलाभिषेक करना चाहिए। शुद्ध जल में गंगाजल दूध चने की दाल, गुड़, गेंदे के पुष्प गेंहू से मिला कर सूर्य मन्त्र ॐ घृणि सूर्याय नमः का उच्चारण करना चाहिए।
महन्त सर्वेश्वरी गिरि ने बताया कि इस बार 12 फरवरी को फाल्गुन संक्रान्ति है। इस माह में मधुमास बसन्त ऋतु का आगमन होता है। संक्रान्ति पर तिल,गुड़,गेंहू का दान और सेवन करने से रक्त सम्बन्धी रोग, अस्थियों व जोड़ों (Osteo joints pain problems) का दर्द, नसों (Neurological ) की तकलीफें, मानसिक अवसाद (Depression) शिथिलता और आलस्य (Lethargicness) दूर होती हैं।
महन्त सर्वेश्वरी गिरि जी ने बताया कि मौसम ओर पर्व के अनुसार सात्विक आहार और उक्त सामग्री का हमारे सनातन धर्म के प्राचीन ग्रंथों में बहुत बर्णन मिलता है जिसका रोगों के निवारण में भी अहम योगदान है।

Read Article

Share Post

VVNEWS वैशवारा

Leave a Reply

Please rate

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

डीएवी कॉलेज अंबाला द्वारा डिजिटल योग कार्यक्रम का सफल आयोजन,मुख्य अतिथि बनी योग की महामंडलेश्वर योगा शिरोमणि एकता डांग।

Wed Feb 10 , 2021
डीएवी कॉलेज अंबाला द्वारा डिजिटल योग कार्यक्रम का सफल आयोजन,मुख्य अतिथि बनी योग की महामंडलेश्वर योगा शिरोमणि एकता डांग। हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।दूरभाष – 94161- 91877 योग की शिक्षा दे कर रोगों से मुक्त कर रही योग की महामंडलेश्वर योगा शिरोमणि भारत की बेटी एकता डांग। अम्बाला […]

You May Like

Breaking News

advertisement