किन्नर समाज की पीड़ा का सजीव चित्रण नाटक किन्नर कथा।

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 94161 91877

ये किन्नर तेरा बच्चा नहीं, हमारी अर्थी का कांधा है ठकुराईन……
किन्नर कथा में झलका किन्नर समाज का दर्द।

कुरुक्षेत्र 3 अगस्त : हरियाणा कला परिषद द्वारा कला और संस्कृति के विस्तार में किये जा रहे प्रयासों के अंतर्गत कला कीर्ति भवन में आयोजित साप्ताहिक संध्या में नाटक किन्नर कथा का मंचन हुआ। संजीवनी रंगमंच यमुनानगर के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत नाटक किन्नर कथा का लेखन डा. संजीव चौधरी का रहा तथा निर्देशन नीरज कुमार ने किया। इस अवसर पर समाजसेविका पूजा सरदाना बतौर मुख्यअतिथि उपस्थित रही। वहीं कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ रंगकर्मी बृज शर्मा ने की। नाटक मंचन से पूर्व हरियाणा कला परिषद के निदेशक नागेंद्र शर्मा ने अतिथियों को पुष्पगुच्छ भेंटकर स्वागत किया। कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवलित कर की गई। मंच का संचालन विकास शर्मा द्वारा किया गया। नाटक किन्नर कथा का ताना बाना इस मर्म को दर्शाने की कोशिश करता है कि हमारा सभ्य और सुसंस्कृत समाज किन्नरों को मात्र मनोरंजन का जरिया ही समझता है। लेकिन कभी भी उन्हें मुख्य धारा से जुड़ा नही मानता। नाटक की कहानी एक ठाकुर परिवार के इर्द-गिर्द घूमती हैं। ठाकुर के घर एक बेटा जन्म लेता है, जिसका नाम कुंवर रखा जाता है। कुंवर अक्सर लड़कियों के साथ खेलना पसंद करता है। धीरे-धीरे कुंवर को लड़कियों के कपड़े पहनना, उनकी तरह नृत्य करना रास आने लगता है। एक दिन होली के मौके पर राधा बनकर नृत्य करते हुए कुंवर को उसके मां-बाप देख लेते हैं। कुंवर के पिता इस बात पर खूब नाराज होते हैं। वहीं कंुवर की मां इस बात से परेशान हो जाती है कि अगर किन्नरों को पता चल गया तो वो उसके बेटे को उससे दूर कर देंगे। इस डर के कारण ठाकुर अपने बेटे का घर से निकलना बंद कर देता है। उधर पंथा नामक किन्नर को एक वैद्य से पता चलता है कि कुंवर भी किन्नर है। तो पंथा अपने किन्नर समाज के साथ ठाकुर के घर आ जाती है। किन्नर ठाकुर और उसकी पत्नी को अपने बेटे को किन्नरों को सौंपने की बात कहती है, लेकिन ठाकुर और उसकी पत्नी इस बात से इंकार कर देती है। कुंवर की मां अपनी ममता का वास्ता देकर पंथा को कुंवर ले जाने से मना करती है। तब पंथा उसकी मां को समझाती है कि हम तेरे बेटे को लेने नहीं आए, हम तो अपनी अर्थी का कांधा लेने आए हैं। अभी कुंवर बच्चा है, लेकिन जब वह बड़ा होगा और तेरे घर में रहते हुए औरतों की तरह रहेगा तो समाज तुम्हारा जीना दुश्वार कर देगा। इसलिए कुंवर का किन्नरों के साथ रहना ही ठीक है। इतना समझाने के बाद भी ठाकुर और उसकी पत्नी कुंवर को देने से मना कर देते है। तब पंथा किन्नर अन्य किन्नरों के साथ नाचना शुरु कर देती है। ढोलक की थाप और घुंघरुओं की झनकार कुंवर को बाहर खींच लाती है और कुंवर खुशी-खुशी किन्नरों के साथ जाने के लिए तैयार हो जाता है। मर्मस्पर्शी नाटक में कलाकारों ने अपने अभिनय के माध्यम से किन्नर समाज के दर्द को लोगों तक पंहुचाने में कामयाबी हासिल की। नाटक के बाद मुख्यअतिथि पूजा सरदाना और रंगकर्मी बृज शर्मा ने कलाकारों की भरपूर सराहना की। अंत में हरियाणा कला परिषद के निदेशक नागेंद्र शर्मा ने पूजा सरदाना व नाटक निर्देशन नीरज कुमार को पेंटिंग भेंटकर सम्मानित किया।
शिवरात्रि के पावन अवसर पर हरियाणा कला परिषद के कलाकारों ने बिखरी हरियाणवी संस्कृति की छटा।
हरियाणा कला परिषद द्वारा शिवरात्रि के पावन अवसर पर विभिन्न स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। इसी श्रृंख्ला में रेडरोड़ स्थित कंडा चौंक पर हर-हर महादेव संस्था द्वारा आयोजित विशाल कांवड शिविर में हरियाणा कला परिषद की ओर से रविंद्र एवं अन्य जंगम जोगी कलाकारों ने शिव गायन कर माहौल को भक्तिमय बनाया। वहीं अंकित हरियाणवी के दल ने हरियाणवी लोक नृत्यों के माध्यम से कार्यक्रम में चार चांद लगाए। भांग रगड़ के पिया करुं मैं कुण्डी सोटे आला सूं, बगड़ बमबम जैसे गीतों पर हरियाणवी वेशभूषा में सजे कलाकारों ने अपने मनमोहक नृत्यों स सभी का दिल जीता।

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