मध्य प्रदेश /रीवा//15 वर्षों में RTI कानून की दुर्दशा ही मेडिकल क्षेत्र की दुर्दशा की जिम्मेदार

मध्य प्रदेश /रीवा//15 वर्षों में RTI कानून की दुर्दशा ही मेडिकल क्षेत्र की दुर्दशा की जिम्मेदार –

ब्यूरो चीफ //राहुल कुशवाहा रीवा मध्य प्रदेश…8889284934

सूचना आयुक्त राहुल सिंह// आरटीआई कानून को बढ़ावा न देना और अपीलों का निराकरण न होने के पीछे सूचना आयोग भी जिम्मेदार

कोरोना महामारी के इस दौर में मेडिकल क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी उजागर हुई है। इस बीच 45 वें आरटीआइ पर राष्ट्रीय वेबीनार कोरोना का सिस्टम और पारदर्शिता विषय पर मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह और पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने रखें अपने उद्गार रखे। सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि वर्तमान कोरोना समय में आज जो स्थिति निर्मित हुई है उसमें जब प्यास लगी तो कुआं खोदने वाली स्थिति चरितार्थ हो रही है। आज देश की जनता को आज यह प्रश्न पूछना चाहिए कि स्कूल कॉलेजों को मान्यता दिए जाने के क्या मापदंड है? प्राइवेट मेडिकल कॉलेज और नर्सिंग होम को मान्यता कैसे मिल जाती है? प्राइवेट अथवा सरकारी मेडिकल कॉलेजों को मान्यता कैसे मिल जाती है?

🔹 कागजों पर लाखों बिस्तर लेकिन हकीकत में कुछ नहीं, मेडिकल क्षेत्र में पारदर्शिता की बेहद कमी

राहुल सिंह ने कहा कि सभी मेडिकल कॉलेज चाहे वह प्राइवेट अथवा सरकारी हों कागज में उन्हें समस्त संसाधन उपलब्ध होता है जिसके आधार पर उन्हें मान्यता दी जाती है और यदि वह कागजी संसाधन जैसे मेडिकल सामान, बिस्तर, दवा, भूमि, बिल्डिंग, अस्पताल भवन और अन्य सुविधाएं नहीं होंगी तो निश्चित तौर पर उनकी मान्यता निरस्त होनी चाहिए। परंतु मेडिकल क्षेत्र में व्यापक अनियमितता और भ्रष्टाचार के चलते अपात्र मेडिकल कॉलेज और निजी नर्सिंग होम को मान्यता दे दी जाती है और इनकी पोल तब खुलती है जब कोरोनावायरस जैसी गंभीर मानवीय त्रासदी निर्मित हो जाती है। राहुल सिंह ने कहा कि यदि वह निजी क्लीनिक और निजी नर्सिंग होम की बात करें तो इनके पास वह निश्चित मात्रा में आवश्यक बिस्तर उपलब्ध होने चाहिए। इस प्रकार देखा जाए तो पूरे देश में सब मिलाकर लाखों बिस्तर खाली होने चाहिए साथ ही इन सभी नर्सिंग होम और प्राइवेट क्लीनिक में एमडी स्तर के डॉक्टर होने चाहिए साथ ही रिकॉर्ड में पर्याप्त संख्या में स्टाफ भी मौजूद होना चाहिए लेकिन जब हम मौके पर जाते हैं तो देखते हैं कि यह सब फर्जी था और मात्र मान्यता लेने के उद्देश्य से भ्रष्टाचार कर फर्जी नर्सिंग होम प्राइवेट क्लीनिक और प्राइवेट मेडिकल कॉलेज खोल दिए गए। वास्तव में देखा जाए तो यह वही कुएं हैं जिनसे आग बुझाने की कोशिश की जा रही है परंतु यह मात्र कागजो में तो भरे हैं लेकिन सभी कुएं वास्तविकता में खाली हैं।

🔹 पिछले 15 वर्षों में आरटीआई कानून का ढंग से क्रियान्वयन न हो पाना मेडिकल क्षेत्र की दुर्दशा और जवाबदेही में कमी का कारण

सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने बताया कि आरटीआई कानून के अधिनियमन के पूरे 15 वर्ष से अधिक का समय व्यतीत हो चुका है लेकिन सही ढंग से इस कानून का क्रियान्वयन नहीं हो पाया है और धारा 4 के प्रावधान लागू नहीं हो पाए हैं। देश की दुर्दशा का सबसे अधिक कारण आज आरटीआई कानून लागू न हो पाना और पारदर्शिता और जवाबदेही का अभाव है। आज यदि पब्लिक ऑडिट सिस्टम सही तरीके से लागू होता तो शायद आज करोना तो होता पर कोरोना कोविड-19 महामारी से उपजी यह अव्यवस्था और दुर्दशा नहीं होती।

🔸 आरटीआई कानून को बढ़ावा न देना और अपीलों का निराकरण न होने के पीछे सूचना आयोग भी जिम्मेदार

मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि वर्तमान कोविड-19 महामारी से उपजी भयावह स्थिति के लिए हम सब जिम्मेदार हैं। इसके लिए सबसे पहले स्वयं सूचना आयोग ही जिम्मेदार है क्योंकि यदि आरटीआई कानून वर्ष 2005 में लागू होने के बाद इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप धारा 4 लागू की जाती और साथ में कानून की मंशा के अनुरूप समय पर अपीलों का निराकरण किया जाता एवं साथ में सूचना आयोग स्वयं आरटीआई कानून को पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए प्रमोट करता तो आज यह दिन देखने को नहीं मिलते। आज कोविड-19 तो होता लेकिन इससे उपजी यह भयावह स्थिति नहीं होती क्योंकि पर्याप्त मात्रा में पारदर्शिता और जवाबदेही होती। इस सब के पीछे आम आदमी भी दोषी है क्योंकि आम आदमी आज सिस्टम के विरुद्ध सवाल नहीं उठा रहा है। इसके साथ सरकार में बैठे अफसर और वह लोग भी दोषी हैं और जिम्मेदार हैं जो जानकारी छुपाने का काम कर रहे हैं।

🔸 महामारी के दौरान मात्र पहुंच वालों को ही मेडिकल सुविधा मिलना गलत

आज महामारी के दौरान जीवन रक्षक दवाएं जैसे रेमडेसिवीर और ऑक्सीजन बिस्तर की उपलब्धता के विषय में जानकारी उपलब्ध कराए जाने की बात आ रही है लेकिन यह व्यवस्था भी उतनी अधिक पारदर्शी नहीं कही जा सकती है। जब हमें कोई इंजेक्शन की जरूरत होती है तो हम किसी प्रभावशाली व्यक्ति को फोन करते हैं और एक इंजेक्शन प्राप्त करते हैं लेकिन यह फोन करने और कराने की व्यवस्था ही सही नहीं है क्योंकि उन लाखों लोगों के बारे में भी सोचिए जिनकी कोई पहुंच नहीं है और रसूखदार प्रभावशाली व्यक्तियों से कोई संपर्क भी नहीं है। कुल मिलाकर यह सिस्टम ही ठीक नहीं है और इसे ठीक करने की आवश्यकता है। वर्तमान में तो शायद यह प्रयास संभव नहीं है क्योंकि यह महामारी का दौर है। आज डॉक्टर 18 घंटे मेहनत कर रहे हैं और स्वयं भी अपनी जिंदगी दांव पर लगा रहे हैं। राहुल सिंह ने कहा कि हमारे संपर्क के कई ऐसे डॉक्टर हैं जो इससे प्रभावित हैं और कुछ ने आत्महत्या भी की है। लेकिन निश्चित तौर पर भविष्य के हिसाब से इस पर कार्य करने की बड़ी जरूरत है। राहुल सिंह ने कहा कि इस विषय पर पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी जी भी हैं जिनका केंद्रीय सूचना आयुक्त रहते हुए काफी महत्वपूर्ण अनुभव रहा है इसलिए वह भी इस विषय पर प्रकाश डालें। राहुल सिंह ने बताया कि महामारी के दौरान काफी अफरातफरी मची हुई है और मेडिकल फैसिलिटी प्राप्त करने के लिए भी लोग दौड़ लगा रहे हैं एवं अपनी पहुंच का उपयोग कर रहे हैं। यह गलत सिस्टम है और सब कुछ जरूरत के हिसाब से होना चाहिए न कि पहुंच के हिसाब से। देखा गया है कि कई बार सीआरटी स्कोर कम वाले व्यक्ति इंजेक्शन और ऑक्सीजन बिस्तर प्राप्त कर रहे हैं लेकिन जिन लोगों का सीआरटी स्कोर ज्यादा रहता है उन्हें वह व्यवस्था नहीं मिल पा रही है जो कि गलत है ऐसे में कई बार मरीजों की मृत्यु भी हो जाती है जिन्हें संसाधन की अधिक जरूरत रहती है।

🔸 हम सबके पुराने पाप हैं जिनके कर्मफल हम आज भुगत रहे हैं

 राहुल सिंह ने कहा कि वर्तमान में एक ऐसा दौर है जिसके विषय में मानव ने कभी कल्पना भी नहीं की थी। हम आगे क्या कर सकते हैं इस विषय पर विचार करने की जरूरत है और मिलकर काम करना चाहिए। सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि हमें लगता है कि यहां हम सब के पुराने पाप हैं जिन्हें हम आज भुगत रहे हैं।  हम इस सिस्टम को कितना पारदर्शी बना सकते हैं और कितनी जवाबदेही तय कर सकते हैं उस पर ध्यान देना चाहिए। जनता ने भी कभी यह नहीं पूछा की क्लीनिक और प्राइवेट अस्पतालों में जो व्यवस्था होनी चाहिए थी वह क्यों नहीं है? एमआरआई होनी चाहिए थी वह क्यों नहीं है? इस प्रकार से प्राइवेट क्लीनिक और अस्पतालों को फर्जी परमीशन आखिर क्यों दी गई? मेडिकल कॉलेजों में व्यवस्था पर आज सबसे बड़ा सवाल यह है कि कागजों पर इन अस्पताल क्लीनिकों पर जो सुविधा उपलब्ध होना बताई जा रही है वह वास्तविक धरातल पर क्यों नहीं मिलती है? आज कागजों के आधार पर पूरे देश में ऐसे सभी अस्पताल और क्लीनिक में लाखों बिस्तर उपलब्ध होने चाहिए थे लेकिन मौके पर नहीं मिल रहे हैं यह सब मेडिकल क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी के चलते हुआ है और साथ में व्यापक भ्रष्टाचार की वजह से हो रहा है।

🔹 रीवा संजय गांधी अस्पताल का ऑक्सीजन प्लांट कैसे कबाड़ बना

सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने बड़ा प्रश्न पूछते हुए कहा कि यदि वह रीवा के परिपेक्ष में बात करें तो जानना चाहते हैं कि आखिर आज दशकों पूर्व रीवा जिले में विंध्य क्षेत्र का सबसे बड़ा अस्पताल संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल बनाया गया था जिसमें पहले से व्यापक स्तर पर पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन बनाने की बड़ी-बड़ी मशीनें लगाई गई थी। लेकिन आज कोविड-19 महामारी के दौरान जब उस ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ी तो ऑक्सीजन प्लांट ही बंद और कबाड़ में पाया गया। आखिर यह कैसे हुआ? डॉक्टर धीरेंद्र मिश्रा ने जो बात कही है कि लोकल स्तर पर सीएचसी और पीएचसी अस्पतालों पर ध्यान दिया जाना चाहिए तो हम एक तस्वीर शेयर करना चाहते हैं जिसमें देखा जा सकता है कि किस प्रकार पीडब्ल्यूडी विभाग ने जंगल में एक खंडहर किस्म का भवन बनाकर उसे स्वास्थ्य विभाग को सौंपा और स्वास्थ्य विभाग कहता है कि वह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है ही नहीं। कितने ताजुब की बात है कि यह सब घपला दिखते हुए भी इस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई जबकि यह घटना अभी जनवरी 2021 की है। इसी बात से मेडिकल क्षेत्र में भ्रष्टाचार को समझा जा सकता है। अभी तक हमारे सिस्टम में व्यवस्थाएं ऑटो पायलट मोड पर चल रही थी लेकिन जैसे ही कोविड-19 महामारी आई तो सब स्पष्ट दिखने लगा और पूरी पोल खुल गई। आगे देखना पड़ेगा इन सब मामलों में क्या कुछ किया जा सकता है। आज आवश्यकता है पब्लिक ऑडिट सिस्टम के साथ राष्ट्रीय स्तर पर हेल्थ सिस्टम में व्यवस्था कैसे दुरुस्त की जाए और पारदर्शिता कैसे लाई जाए। राहुल सिंह ने कहा कि इस विषय पर पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी भी प्रकाश डालें। श्री सिंह ने कहा की मेडिकल क्षेत्र में भी पब्लिक ऑडिट को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इन मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के पास डॉक्टर की व्यवस्था, पर्याप्त बेड, नर्सिंग स्टाफ और अन्य संसाधन उपलब्ध न हो तो ऐसे समस्त प्राइवेट नर्सिंग होम, प्राइवेट अस्पताल एवं मेडिकल कॉलेज की मान्यता निरस्त कर दी जानी चाहिए। सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर न आने के पीछे सबसे बड़ा कारण उनकी सैलरी है। बताया जाता है कि चूंकि चीफ सेक्रेटरी की अधिकतम सैलरी ढाई लाख रुपए होती है अतः सरकारी सिस्टम में डॉक्टर की सैलरी चीफ सेक्रेटरी की सैलरी से ज्यादा नहीं बढ़ाई जा सकती है। इस पर सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने बताया कि यह सोच गलत है और मेडिकल क्षेत्र में प्रोफेशनलिज्म की आवश्यकता है क्योंकि एक प्राइवेट डॉक्टर प्रति माह ढाई लाख रुपए से अधिक कमाता है इसलिए उसकी सैलरी भी उसी अनुरूप में बढ़ाई जानी चाहिए तभी वह सरकारी नौकरी ज्वाइन करेगा।

🔸 सिस्टम में सुधार के लिए हम सबको मिलकर काम करने की आवश्यकता – पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेष गांधी

इस बीच जब सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि इस विषय पर पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी प्रकाश डालें और अपना अनुभव साझा करें कि किस प्रकार इस पूरे सिस्टम में व्यवस्था को सुधार कर काम किया जा सकता है और मार्गदर्शन करें तो इसका जवाब देते हुए पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने कहा की हम सब मिलकर ही काम कर सकते हैं और इसके लिए संगठित होकर प्रयास बेहतर रहेगा। श्री गांधी ने कहा कि जिस प्रकार डॉक्टर धीरेंद्र मिश्रा ने कहा है कि सामान्य से कार्य के लिए फोन लगाना पड़ता है तो यह व्यवस्था अच्छी नहीं कही जा सकती है। शैलेश गांधी ने बताया की किस मेडिकल कॉलेज और किस अस्पताल अथवा नर्सिंग होम में कितने बेड किस फ्लोर में खाली हैं यह सब व्यवस्था ऑनलाइन कंप्यूटर और मोबाइल ऐप के माध्यम से उपलब्ध होनी चाहिए। ऐसी व्यवस्था के लिए न तो किसी फोन लगाने की आवश्यकता है और न ही सिफारिश करने की। इस के लिए किसी विशेष तकनीक की भी कोई आवश्यकता नहीं है और बहुत ही सिंपल कार्य है। शैलेश गांधी ने बताया कि हमारी सरकारों ने स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर आज तक शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों ही क्षेत्र में बहुत कम ध्यान दिया है। यह हकीकत है और इसे हम सब को स्वीकार करना पड़ेगा। इस बीच एक पार्टिसिपेंट्स राहुल वर्मा ने बताया हमारे देश में सकल घरेलू उत्पाद का मात्र एक प्रतिशत ही हेल्थ केयर सेक्टर में उपयोग किया जा रहा है। इस बात का जवाब देते हुए सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने कहा भारत की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार है। जीडीपी का 10 प्रतिशत भी हेल्थ केयर सेक्टर में उपयोग किया गया तो भी वह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाएगा। एक्टिविस्ट ने बताया कि भारत मे सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करना है जो कि कोविड-19 महामारी से भी ज्यादा खतरनाक है। आज सरकारी अफसर और नेता अपने निजी स्वार्थ के लिए देश को बेचने के लिए तैयार हैं। देश गर्त की तरफ जा रहा है और भ्रष्टाचार निरंतर बढ़ रहा है जिसका कोई उपचार नहीं समझ में आ रहा है।

🔹 संलग्न – कृपया इस ईमेल के साथ संलग्न राष्ट्रीय वेबीनार की तस्वीरें देखने का कष्ट करें।


🔹🔸 *शिवानंद द्विवेदी सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता जिला रीवा मध्य प्रदेश।

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