बिहार:डीजे की धुन में गुम हो गए फाग के गीत ,,,,,,,,,प्रिंस विक्टर

डीजे की धुन में गुम हो गए फाग के गीत ,,,,,,,,,प्रिंस विक्टर
अररिया
होली अब पहले जैसी नहीं रही। अब गांव से लेकर शहर तक के चौपालों तक पारंपरिक होली गीत पर ढ़ोल की थाप सुनाई नहीं देते। हर जगह होली के नाम पर फूहड़ गीत संगीत प्रस्तुत किए जाने लगे हैं और तो और होली के एक सप्ताह पूर्व से होली के नाम पर सवारी वाहनों में बजाए जाने वाले गीतों ने सभ्य परिवार सहित महिलाओं को खासा परेशान कर देता है। आज से कुछ वर्ष पूर्व गांव से लेकर शहर तक के चौपाल में पारंपरिक होली गीतों में होली खेले रघुबीरा अवध में, होले खेले रघुबीरा.,’गउरा संग लिये शिवशंकर खेलत फाग..,’आज बिरज में होरी रे रसिया.. जैसे कर्णप्रिय होली गीत अब सुनाई नहीं देते हैं। अब इन पारंपरिक गीतों की जगह भोंड़े, अश्लील और द्विअर्थी गानों ने अपना स्थान बना लिया है। पहले वसंत पंचमी के दिन ही होलिका स्थापित करने के बाद जोगीरा एवं होली गीतों की मदमस्त राग से गांव का वातावरण ओत प्रोत हो जाता था। तब के पारंपरिक होली गीतों में राग विहाग, सुर लय ताल, साहित्य, विनम्रता, सौम्यता का संदेश हुआ करते थे । गांव के चौपाल में युवा, अधेड़ व बृद्ध एकजुट होकर देर रात तक थिरकते प्रेम एवं मस्ती के सागर में विभोर हो जाया करते थे। बीच में कुछ फिल्मी होली गीत भी आये जो लोगों की जुबान पर चढ़े तो आज तक नहीं उतरे। जिसमें फिल्म सिलसिला का गीत रंग बरसे भींगे चुनरवाली, रंग बरसे.., फिल्म मदर इंडिया का होली आई रे कन्हाई रंग बरसे.,कोहिनूर का तन रंग लो जी, मन रंग लो जी..फिल्म कटी पतंग का गाना आज न छोड़ेंगे बस हमजोली, खेलेंगे हम होली…. आज भी लोगों को जुबान पर है । किन्तु आज के बदलते परिवेश में संस्कारित होली गीतों के मस्ती के सागर में बेसिर पैर और अश्लीलता एवं फूहड़ता ऐसा फैल गया है, जिससे समाज काफी मर्माहत है। जाप प्रदेश महासचिव सह मुखिया संघ अध्यक्ष प्रिंस विक्टर जी ने कहा कि आधुनिकता का युवाओं पर बढ़ता प्रभाव चैती, बैसवारा, रंगपाल, डेढ़ताल व झूमर आदि गीतों को अब इतिहास के पन्नों में ढकेल दिया है। रंग में सराबोर होकर पूरे वर्ष के गिले शिकवे भूल ढोल मंजीरों के साथ टोली बनाकर एक-दूसरे के घर जाकर होली के एक सप्ताह पूर्व से ही फाग गीतों का गाना व नाचना अब सपना होता जा रहा है। गांव-गांव में ढोल मंजीरा के बीच चलता फगुआ रात के अंधेरे में हर कानों को काफी कर्ण प्रिय हुआ करता था, लेकिन नई पीढ़ी में इसकी अब कोई पूछ नहीं रही। होली आई रे कन्हाई होली आई रे, रंगों के दिन दिल खिल जाते हैं, रंगों से रंग मिल जाते हैं, रंग बरसे भीजे चुनर वाली आदि ने लोगों पर दशकों तक राज किया, लेकिन होली के दिन ढोल मंजीरों के साथ निकलने वाली टोली डीजे पर बजने वाले फूहड़ गीतों के बीच नाचते गाते चलने लगी है। पुराने फाग गीतों का पतन तो हुआ ही साथ ही इन अश्लील गीतों ने सामाजिक पतन भी कर दिया। नतीजतन व्यभिचार व भ्रष्टाचार का बोलबाला हो गया। पहले के फाग गीतों में मिठास के साथ साथ मौसम का उमंग भी होता था। श्री विक्टर ने आगे कहां के होली भाई चारे के साथ मनाई जाती थी, अब तो लोग एक दूसरे के यहां आने जाने से भी डरने व कतराने लगे हैं, कारण चाहे जो भी हो,,,,,,
जन अधिकार पार्टी प्रदेश महासचिव सह मुखिया संघ अध्यक्ष प्रिंस विक्टर
ने कहा कि पहले होली के अवसर पर बाहर रहने वाले लोग अपने घर पहुंच जाते थे और अपने परिवार के साथ मिलकर होली पर्व मनाते थे। इसके साथ ही पुआ, पूड़ी, खीर समेत विभिन्न व्यंजन बनाया जाता था। पूरे परिवार एक जगह बैठकर खाते थे। साथ ही लोग एक दूसरे के घर पहुंचते थे। बुजुर्गों के पैर पर अबीर लगाकर आशीर्वाद लेते थे। एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगाकर पर्व की बधाई भी देते थे। उस वक्त लोगों के बीच आपसी भाईचारा दिखता था। आज के दौर में होली पर्व पर लोग आपसी दुश्मनी का बदला लेने में जुटे हैं। जिसके कारण सभ्य लोग घर से बाहर भी निकलना नहीं चाहते हैं। और लोगों के बीच आपसी भाईचारा समाप्त होता दिख रहा है।
55 वर्षीय सिंगर शाहिद रफी ने कहा कि बदलते परिवेश में पुरानी संस्कृति विलुप्त होती जा रही है। आज फूहड़ गीत लोगों के सामने परोसे जा रहे हैं। इससे मारपीट की घटनाएं बढ़ गई है। सभ्य परिवार के लोग होली खेलने से परहेज करने लगे हैं। अब होली पर्व का महत्व ही समाप्त हो चुका है। आज के दौर में पर्व को शांतिपूर्ण संपन्न कराने के लिए पुलिस जवानों को तैनात किया जाता है। समाजसेवी चिक्कू यादव ने बताया कि पहले फागुन माह में मोहल्लों में पारंपरिक होली गीत की शोर होने लगती थी। जो अपनी संस्कृति का अहसास कराता था। लेकिन आज ध्वनि विस्तारक यंत्र पर होली गीत बजाये जाते हैं। इन गीतों की धुन में अश्लीलता भरा रहता है। खासकर समाज की महिलाओं को शर्मसार होना पड़ता है। पहले होली पर्व पर लोग एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगाकर बधाई देते थे और बुजुर्गों का पैर छुकर आशीर्वाद लेते थे।
अररिया फोटो न 6

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