सेवा का भाव ही सनातन धर्म का सार है : महंत राजेंद्र पुरी।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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जग ज्योति दरबार हमेशा समाज सेवा को प्राथमिकता देता है।
कुरुक्षेत्र, 19 जुलाई : जग ज्योति दरबार के महंत राजेंद्र पुरी ने कहा कि सेवा का भाव प्राचीनकाल से ही भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। सनातन धर्म में तो सेवा को धर्म का सार बताया गया है। प्राणी मात्र और प्रकृति की सेवा का भाव सनातन धर्म की पूजा पद्धति और मान्यताओं में समाहित है।
उन्होंने कहा कि जग ज्योति दरबार हमेशा समाज सेवा को प्राथमिकता देता है तथा इसी भावना से समाज को समर्पित है। उन्होंने बताया कि सेवा के भी कई श्रेष्ठ रूप वर्णित हैं। इनमें मानव की सेवा माधव (भगवान) की सेवा के समतुल्य मानी गई है। कहा जाता है मानवता की सेवा करने वाले हाथ उतने ही धन्य होते हैं जितने परमात्मा की प्रार्थना करने वाले। नि:संदेह सेवा मानव की ऐसी सर्वोत्तम भावना है, जो उसे पूर्णता प्रदान करती है। सेवाभाव ही मानव जीवन का वास्तविक सौंदर्य और श्रृंगार है।
महंत राजेंद्र पुरी ने कहा कि मानव समाज के भीतर सेवा भाव का होना परम आवश्यक है। सेवाभाव से जहां समाज में व्याप्त विषमता और कुरीतियां समाप्त होती हैं, वहीं परस्पर प्रेम और सौहार्द बढ़ने से समाज का समग्र उत्थान होता है। सेवाभाव किसी भी व्यक्ति के लिए आत्म संतुष्टि का कारण ही नहीं बनता, वरन वह दूसरों के लिए एक आदर्श के रूप में स्थापित भी होता है। जो सच्चे मन से सेवा करता है, वह दूसरों के सच्चे स्नेह और आशीर्वाद का पात्र बनता है।
जग ज्योति दरबार के महंत राजेंद्र पुरी।