उत्तराखंड:सेवा के मंदिर ने समझी वर्षा की हर बूंद की अहमियत,बनाए हैं जल सरंक्षण टैक


प्रभारी संपादक उत्तराखंड
साग़र मलिक

ऋषिकेश। स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (एसआरएचयू) के अधीन संचालित हिमालयन इंस्टीट्यूट हास्पिटल ट्रस्ट (एचआइएचटी) का वर्षा जल संरक्षण के लिए भगीरथ प्रयास जारी है। इसके लिए संस्था की ओर से एसआरएचयू परिसर में लगभग 50 लाख की लागत से 12 रेन वाटर हार्वेस्‍टिंग रिचार्ज पिट बनाए गए हैं। इनसे सालाना करीब 40 करोड़ लीटर वर्षा जल रिचार्ज किया जा सकता है। इसके साथ ही एचआइएचटी की ओर से विश्वविद्यालय कैंपस में 1.25 करोड़ की लागत से सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) भी लगाया गया है। इससे रोजाना सात लाख लीटर जल शोधित होता है। यह जल कैंपस में सिंचाई व बागवानी के उपयोग में लाया जा रहा है। भविष्य में इस प्लांट की क्षमता बढ़ाकर शोधित जल को शौचालय में भी इस्तेमाल किया जाएगा।
संस्था का कार्यक्षेत्र विवि परिसर तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उसने परिसर से बाहर उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश व ओडिशा के 534 गांवों में स्वच्छ पेयजल व स्वच्छता योजनाओं का निर्माण करवाया है। इन गांवों में सात-सात हजार लीटर क्षमता के 600 से ज्यादा जल संरक्षण टैंक बनवाए गए हैं और 71 गावों में जल संवर्धन का कार्य करवाया गया है। इन्हीं उपलब्धियों को देखते हुए केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने एचआइएचटी को राष्ट्रीय जल जीवन मिशन की ‘हर घर जल योजना’ का सेक्टर पार्टनर नामित किया है।

एसआरएचयू के कुलपति डा. विजय धस्माना बताते हैं कि यह सालों से जल संरक्षण के क्षेत्र में एचआइएचटी टीम की ओर से किए जा रहे बेहतरीन प्रयासों का परिणाम है। वह कहते हैं कि जल, जंगल, जमीन सिर्फ नारा नहीं, बल्कि हमारी पहचान है। भावी पीढ़ी के सुरक्षित भविष्य के लिए जल संरक्षण बेहद जरूरी है। हर व्यक्ति को चाहिए कि वह जल का इस्तेमाल औषधि की तरह सीमित मात्रा में करे। एचआइएचटी इसी दिशा में आगे बढ़ रहा है।
23 वर्ष पहले वाटसन का गठन
कुलपति धस्माना बताते हैं कि संस्थान में 23 वर्ष पहले ही जलापूर्ति व जल संरक्षण के लिए एक अलग वाटर एंड सैनिटेशन (वाटसन) विभाग का गठन हो चुका था। तब से लेकर अब तक वाटसन की टीम उत्तराखंड के सुदूरवर्ती सैकड़ों गांवों में पेयजल पहुंचा चुकी है।
हर साल बचा रहे 50 लाख लीटर पानी
एसआरएचयू कैंपस में जल संरक्षण के लिए अभिनव पहल की गई है। इसके तहत प्लास्टिक की एक लीटर वाली खाली बोतल में आधा रेत या मिट्टी भरकर उसे टायलेट की सिस्टर्न (फ्लश टंकी) के भीतर रख दिया जाता है। इससे सिस्टर्न में बोतल के आयतन के बराबर पानी कम आता है। यानी हर बार फ्लश चलाने पर एक लीटर पानी की बचत होती है। कुलपति धस्माना ने बताया कि एक परिवार में औसतन प्रतिदिन 15 बार फ्लश चलाई जाती है। इस प्रकार प्रतिदिन 15 लीटर पानी की बचत होती है। कैंपस में लगभग 1500 शौचालय हैं। इस तरह हम सालाना 50 लाख लीटर पानी बचा रहे हैं।
चार चरणों में होता है वर्षा जल संचय
कैंपस में वर्षा जल को चार चरणों में संचय किया जाता है। प्रथम चरण में वर्षा जल को रेन वाटर पाइप के जरिये एकत्र कर एक चेंबर में डाला जाता है। इस चेंबर में लगी जाली पानी से घास-फूस व पत्तों को अलग कर देती है। दूसरे चरण में पानी चेंबर के अंदर जाली से छनकर पाइप के जरिये फिल्टर टैंक में पहुंचता है। तीसरे चरण में पानी को फिल्टर टैंक में डाला जाता है। यहां पर भी तीन चेंबर होते हैं। पहले में पानी अंदर जाता है, दूसरे में फिल्टर से साफ होते हुए तीसरे चेंबर में एकत्रित होता है। चौथे चरण में जल फिल्टर टैंक से निकलकर रिचार्ज पिट के अंदर चला जाता है। कुलपति धस्माना ने बताया कि गर्मियों में पानी की कमी होने पर इसे बोरवेल से निकालकर सिंचाई के उपयोग में लाया जाता है। बताया कि भविष्य में इस जल को पीने के उपयोग में लाने की भी योजना है।

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