संस्कृत में व्याकरण की परम्परा बहुत प्राचीन है : आचार्य लेखवार

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 9416191877

हरियाणा संस्कृत अकादमी द्वारा संस्कृत संभाषण शिविर का आयोजन।

कुरुक्षेत्र, 11 जुलाई : भारतीय संस्कृति और विरासत की रक्षा के लिए संस्कृत भाषा की सुरक्षा को अभियान के रूप में लेकर कार्य कर रही श्री जयराम संस्थाओं के परमाध्यक्ष एवं श्री जयराम शिक्षण संस्थान के चेयरमैन ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी के मार्गदर्शन में संचालित श्री जयराम विद्यापीठ में आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में हरियाणा संस्कृत अकादमी द्वारा संस्कृत संभाषण शिविर का आयोजन किया गया है। शिविर के पांचवें दिन आचार्य प. राजेश प्रसाद लेखवार ने बताया कि संस्कृत में व्याकरण की परम्परा बहुत प्राचीन है। संस्कृत भाषा को शुद्ध रूप में जानने के लिए व्याकरण शास्त्र का ज्ञान महत्वपूर्ण है। अपनी इस विशेषता के कारण ही यह वेद का सर्व प्रमुख अंग माना जाता है। उन्होंने बताया कि संस्कृत भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का एक शाखा हैं। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्म ग्रंथ लिखे गए हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती है। आचार्य लेखवार ने बताया कि संस्कृत का व्याकरण वैदिक काल में ही स्वतंत्र विषय बन चुका था। किसी भी भाषा के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन व्याकरण कहलाता है।
व्याकरण वह विद्या है जिसके द्वारा किसी भाषा का शुद्ध बोलना, शुद्ध पढ़ना और शुद्ध लिखना आता है। किसी भी भाषा के लिखने, पढ़ने और बोलने के निश्चित नियम होते हैं। भाषा की शुद्धता व सुंदरता को बनाए रखने के लिए इन नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। ये नियम भी व्याकरण के अंतर्गत आते हैं। व्याकरण भाषा के अध्ययन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। इस मौके पर प्राध्यापक अजय शर्मा, संजय भारद्वाज एवं पवन कुमार शर्मा ने भी विचार प्रस्तुत किए।
संस्कृत संभाषण शिविर में भाग लेते हुए विद्यार्थी।

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