विज्ञान और प्रौद्योगिकी द्वारा इतिहास को अत्यधिक प्रामाणिक रूप में प्रस्तुत करने की आवश्यकता : प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।

केयू डॉ. भीमराव अंबेडकर अध्ययन केन्द्र एवं अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में ‘इतिहास पाठ्यक्रम : वर्तमान परिप्रेक्ष्य व चुनौतियां’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय उत्तर क्षेत्र कार्यकर्ता अभ्यास वर्ग का सफल समापन।

कुरुक्षेत्र, 29 अप्रैल : कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा ने कहा है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी की सहायता से इतिहास को अत्यधिक प्रामाणिक रूप में प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति और भारतीय ज्ञान परंपरा भी इन्हीं तत्वों पर बल देती है। भारत के इतिहास के संदर्भ में भारतीयों से एक बहुत बड़ी गलती हुई कि भारत में भारतीयों ने ही अपने देश का इतिहास लिखने का काम विदेशियों के हाथ में छोड़ दिया। जबकि हमको यह समझना चाहिए था कि विदेशी किसी भी देश का सही इतिहास नहीं लिख सकते, आखिर आक्रमणकारी देश कैसे अपने उपनिवेश के इतिहास को संस्कृति को स्वयं से महान मान सकता है। कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा ने यह विचार केयू डॉ. भीमराव अंबेडकर अध्ययन केन्द्र एवं अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में सीनेट हॉल में ‘इतिहास पाठ्यक्रम : वर्तमान परिप्रेक्ष्य व चुनौतियां’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय उत्तर क्षेत्र कार्यकर्ता अभ्यास वर्ग के समापन अवसर पर बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे।
कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा ने कहा कि अंग्रेजी इतिहासकारों और औपनिवेशिक मानसिकता के भारतीय इतिहासकारों की बजाय भारतीय दृष्टि रखने वाले इतिहासकारों को यह कार्य दिया जाना चाहिए था। किसी देश को अगर नष्ट करना हो तो उसके इतिहास को नष्ट कर दो क्योंकि इतिहास को नष्ट करने से उसकी संस्कृति नष्ट हो जाएगी और संस्कृति अगर नष्ट हो गई तो वह राष्ट्र और उसकी राष्ट्रीयता नष्ट हो जाएगी। भारतीय गुरुकुल प्रणाली और भारतीय ज्ञान परंपरा का इतिहास से अटूट संबंध रहा है। स्मृति एवं श्रुति आदि के माध्यम से हमारा ज्ञान और हमारा इतिहास सदियों तक संचित रहा लेकिन अंग्रेजों के औपनिवेशिक प्रभाव ने इसे प्रदूषित कर दिया और हमारे इतिहास का ऐतिहासिक विकृतिकरण हो गया। यह दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि भगत सिंह जैसे आदर्श क्रांतिकारी व्यक्तित्व को औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त तथाकथित इतिहासकारों ने आतंकवादी की श्रेणी मिलकर खड़ा कर दिया। ऐसे और अनेक प्रमाण है जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि भारतीयों को भारत के सही इतिहास से वंचित कर आत्मविश्वास से वंचित किया गया। इस अवसर पर हम सभी संकल्प लें कि हम सभी भारतीय अपने गौरवशाली अतीत को सही वैज्ञानिक दृष्टि से इतिहास लिखते हुए संपूर्ण विश्व के सामने प्रस्तुत करेंगे।
कार्यशाला के समापन सत्र में सभी अतिथियों का विस्तृत परिचय उत्तर क्षेत्र संगठन सचिव डॉ. प्रशांत गौरव द्वारा करवाया गया। इस कार्यक्रम में सभी का औपचारिक स्वागत डॉ बीआर अंबेडकर अध्ययन केंद्र की सह निदेशक डॉ. प्रीतम सिंह द्वारा किया गया। उन्होंने भारतीय इतिहास की त्रुटियों को दूर करने में केयू द्वारा किए जा रहे प्रयासों के बारे में जानकारी दी।
इस सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना नई दिल्ली की राष्ट्रीय संगठन मंत्री डॉ. बालमुकुंद पांडे की सहभागिता रही उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि अब समय आ गया है कि हमें भारतीय इतिहास का लेखन भारतीय शैली से किया जाए इसके लिए भारतीय इतिहास संकलन योजना द्वारा लगातार कार्य किया जा रहा है और बताया कि भारतीय ज्ञान परंपरा को यूरोपियन विचारधारा से अलग रखने की आवश्यकता पर अपने विचार रखें। समापन सत्र में अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना नई दिल्ली के राष्ट्रीय सचिव डॉ. रत्नेश त्रिपाठी, राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य सुरेंद्र हंस, भारतीय इतिहास संकलन समिति हरियाणा प्रांत के प्रांतीय महासचिव डॉ. सुरेंद्र दलाल, केन्द्र के निदेशक प्रो. गोपाल प्रसाद व अन्य अतिथि गण की सहभागिता रही।
इस सत्र में मंच संचालन कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र के विधि संकाय की छात्रा उपासना एवं समिति के प्रांतीय कोषाध्यक्ष सुभाष पाल द्वारा किया गया। समापन सत्र में भारतीय इतिहास संकलन समिति के प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. रमेश धारीवाल ने सभी अतिथियों सहभागियों कार्यक्रम के आयोजन में योगदान दान देने और इसको सफल बनाने के लिए हार्दिक धन्यवाद और आभार व्यक्त किया।

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