तीर्थों की संगम स्थली कुरुक्षेत्र के ठसका मीरां जी में है सरस्वती नदी और मारकण्डा नदी का विशेष स्थान

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 94161-91877

इस स्थान पर सरस्वती नदी के दिशा बदलने और ऋषि मार्कण्डेय की पूजा स्थली श्री मार्कण्डेश्वर महादेव मंदिर।
यहां लोग पहुंचते हैं आस्था के साथ।

कुरुक्षेत्र, 7 जुलाई :- कुरुक्षेत्र को तीर्थों की संगम स्थली एवं धर्मनगरी के रूप में विशेष मान्यता प्राप्त है। इस स्थान को जहां ऋषि मुनियों की तपस्थली कहा जाता है वहीं भगवान के विभिन्न स्वरूपों एवं देवी देवताओं का मानव रूप में अनेकों बार आगमन हुआ है। ऐसा ही एक स्थान मारकण्डा नदी के तट पर श्री मार्कण्डेश्वर महादेव मंदिर ठसका मीरां जी में है। इस स्थान के व्यवस्थापक एवं अखिल भारतीय श्री मार्कण्डेश्वर जनसेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत जगन्नाथ पुरी ने बताया कि ऋषि मार्कण्डेय भगवान विभिन्न पुराणों एवं देशभर में विभिन्न नामों से विख्यात है तथा मान्यता के साथ उनकी पूजा अर्चना की जाती है। कुरुक्षेत्र के ठसका मीरां जी में मारकण्डा नदी के तट पर अलग ही मान्यता है। उन्होंने बताया कि यहां का अलग ही महत्व है तथा इस स्थान पर ऐतिहासिक एवं प्राचीन घटनाएं घटित हुई हैं। महंत जगन्नाथ पुरी ने बताया कि ऋषि मार्कण्डेय अमर व चिरंजीवी हैं। देश की अधिकतर नदियों के नाम स्त्रीलिंगी है लेकिन मारकण्डा नदी का नाम पुरुष लिंगी है। उन्होंने मारकण्डा नदी के बनने का कारण बताते हुए कहाकि जब सरस्वती और ऋषि मार्कण्डेय बाल रूप में खेल रहे थे तो पकड़ा पकड़ी का खेल शुरू किया। सरस्वती को अपनी तेज गति पर गर्व था और ऋषि मार्कण्डेय को पकड़ने की चुनौती दी। महंत जगन्नाथ पुरी ने बताया कि कथा में ऋषि मार्कण्डेय ने सरस्वती से कहा था कि अगर पकड़ लिया तो क्या ईनाम होगा। तब सरस्वती में मुंह मांगे ईनाम की बात कही। सरस्वती स्वर्गलोक पहुंच जाती है जबकि मार्कण्डेय भोलेनाथ को याद करते हुए धीमी गति से स्वर्गलोक के निकट पहुंचते है तो सरस्वती पाताल लोक पहुंच जाती है। ऐसे में दोनों का मिलन काला आम्ब के निकट हुआ। ऋषि मार्कण्डेय ने सरस्वती को शर्त के अनुसार विवाह की बात कही तो सरस्वती ने कहाकि कलयुग में पवित्रता के कारण विवाह नहीं हो सकता है लेकिन मार्कण्डेय हठ पर रहे। ऐसे में सरस्वती जल स्वरूप में आ गई तो मार्कण्डेय ने भी जल स्वरूप लिया। तब दोनों जल स्वरूप में चले तो छाया रूप में बचाओ की ध्वनि हुई। यह ध्वनि मीरां जी निकट हुई। यहां चारों ओर जल ही जल था, तब सरस्वती को मौका मिला तो पिहोवा की तरफ निकल गई। महंत जगन्नाथ पुरी ने बताया कि यह पवित्र स्थान है और सरस्वती नदी लुप्त है लेकिन इस स्थान पर आज भी सिद्ध स्थान पर श्री मार्कण्डेश्वर महादेव मंदिर में पूजा अर्चना का विशेष महत्व है। यहां अनेकों श्रद्धालु आते हैं और उनकी हर मनौती पूर्ण होती है।
श्री मार्कण्डेश्वर महादेव मंदिर जहां पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं श्रद्धालु।

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