प्रभारी संपादक उत्तराखंड
साग़र मलिक
देहरादून : सीएम तीरथ सिंह रावत पर मंडराते संवैधानिक संकट के बीच भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई क़ुरैशी ने बताया कि चुनाव आयोग को ये अधिकार है कि मुख्यमंत्री को अपवादस्वरूप अगर पदावधि दो महीने शेष हो तब भी उपचुनाव लड़ाया जा सकता है। दरअसल,
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 151 (क) के तहत छह महीने को भीतर सदन की सदस्यता लेना अनिवार्य है लेकिन इसी की उपधारा ये भी कहती है कि बशर्ते संबंधित सदस्य की पदावधि बाक़ी समय एक वर्ष से कम न बचा हो।
जब हमने इस संदर्भ को सामने रखने हुए उत्तराखंड के मौजूदा परिप्रेक्ष्य में सवाल पूछा तो पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त क़ुरैशी ने कहा, “सिर्फ़ मुख्यमंत्री को लेकर आयोग छह महीने क्या दो महीने भी सदन की समयावधि शेष हो तब भी उपचुनाव करा सकता है क्योंकि मुख्यमंत्री का उपचुनाव न होने से सरकार के लिए संवैधानिक संकट खड़ा हो सकता है, इसलिए अपवादस्वरूप चुनाव संभव है और ऐसा पहले भी हुआ है।”
ज़ाहिर है ये मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के लिए बहुत बड़ी राहत वाली बात होगी अगर उनको सरकार पर संवैधानिक संकट खड़ा होने की स्थिति का अपवादस्वरूप चुनाव लड़ने का लाभ मिल जाता है।
हालाँकि कुछ संविधान ने जानकारों ने ये भी कहा है कि चुनाव आयोग का साख पर पहले से सवाल खड़े हैं और उत्तराखंड के संदर्भ में आयोग को सरकार पर संवैधानिक संकट का सहारा सीएम तीरथ को देने से पहले ये दर्शाना होगा कि क्या वाक़ई सीएम तीरथ रावत के चुनाव न पड़ पाने से सरकार गिर जाएगी?
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम :-
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 151(क) के अन्तर्गत भारत निर्वाचन आयोग को राज्य सभा, लोक सभा और राज्यों की विधानसभाओं की किसी भी सीट के खाली होने पर 6 माह की अवधि के अंदर उपचुनाव कराने होते हैं। इसी धारा की उपधारा में यह भी स्पष्ट किया गया है कि, परन्तु इस धारा की कोई बात उस दशा में लागू नहीं होगी, जिसमें (अ) किसी रिक्ति से सम्बंधित सदस्य की पदावधि का शेष भाग एक वर्ष से कम है या (ब) निर्वाचन आयोग केन्द्रीय सरकार से परामर्श करके, यह प्रमाणित करता है कि उक्त अवधि के भीतर ऐसा उप निर्वाचन करना कठिन है। यह प्रमाणित करता है कि उक्त अवधि के भीतर ऐसा उप निर्वाचन करना कठिन है।
अनुच्छेद 164(4) क्या कहता है:-
संविधान के अनुच्छेद 164 (4) के प्रावधानों का लाभ उठाते हुए तीरथ सिंह रावत बिना विधानसभा सदस्यता के ही मुख्यमंत्री तो बन गए पर संविधान के अनुच्छेद 164(4) की उपधारा में प्रावधान है कि मुख्यमंत्री बनने के 6 महीने के भीतर विधानसभा की सदस्यता लेनी होगी। यानी 6 महीने के भीतर उपचुनाव जीतना होगा तभी वह मुख्यमंत्री पद पर बने रहेंगे और यह अवधि नौ सितंबर को पूरी हो रही है। अहम अगर वे 6 महीने के भीतर विधानसभा की सदस्यता ग्रहण नहीं कर पाते हैं तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना होगा। केंद्रीय मंत्रिमंडल के लिए भी है जिसके लिए संविधान के अनुच्छेद 75 (5) में इसका प्रावधान किया गया है।
देखना है चुनाव आयोग कब तीरथ सिंह के लिए राह आसान बनाता है