कुरुक्षेत्र गीता जयंती महोत्सव में महिलाओं के परिधान दामण का 200 साल पुराना स्वरूप खारा देखकर अभिभूत हो रहे पर्यटक

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 9416191877
छाया – वीना गर्ग।

खारा पर लीलबड़ी व किकर के पेड़ों की छाल के प्राकृतिक रंगो से रंगकर बनाई जाती थी कलाकृतियां।

कुरुक्षेत्र 9 दिसम्बर : अंतर्राष्टरीय गीता महोत्सव कुरुक्षेत्र में बनाये गये हरियाणा पैवेलियन की एक प्रदर्शनी स्टाल पर पर्यटक दामण के 200 साल पुराने स्वरूप खारा को देखकर अभिभूत हो रहे हैं। पर्यटक महिलाओं के इस परिधान को देखकर कुछ क्षण के लिये इस स्टाल पर रूकने के लिये मजबूर हो रहे हैं और वहां मौजूद स्टाल संचालक से इस खारे के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त कर अपनी जिज्ञासा को शांत कर रहे हैं।
प्रदर्शनी स्टाल के संचालक व कपड़ा बुनकर व्यवसाय से जुड़े रविन्द्र ने इस परिधान के बारे में पर्यटकों को जानकारी देते हुए बताया कि महिलाओं का यह परिधान आज से लगभग 200 वर्ष पहले काफी चलन में था। इस परिधान को कपास को चरखे पर कातकर तैयार किया जाता था और इस कपड़े को आकर्षक रूप प्रदान करने के लिये लीलबड़ी तथा किकर की छाल से तैयार रंग से डिजाईन तैयार किये जाते थे। जब उनसे पर्यटकों ने पूछा कि यह परिधान कहां से प्राप्त हुआ।
इसके प्रतिउत्तर में उन्होंने बताया कि यह मेरी परदादी भरतो पहना करती थी। उन्होंने मेरी दादी को यह परिधान दिया था। इसके बाद इस परिधान को परम्परागत तरीके से हमारे पास पंहुचा है, जो आज इस प्रदर्शनी स्टाल में प्रदर्शित किया गया है ताकि देसी व विदेशी पर्यटक हरियाणा की समृद्घ संस्कृति के सम्बन्ध में विस्तार से जानकारी हासिल कर सकें। उन्होंने बताया कि खारा को पहले देसी कपास से तैयार कपड़े से ही बनाया जाता था। इसके बाद इसे अन्य मिश्रित कपडों से भी तैयार किया जाने लगा ताकि पहनने के बाद यह और भी आकर्षक लगे।

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