तुलसी विवाह पर्यावरण और प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने का पर्व है : डॉ. सुरेश मिश्रा

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।

कुरुक्षेत्र : कॉस्मिक एस्ट्रो के डायरेक्टर व श्री दुर्गा देवी मन्दिर पिपली (कुरुक्षेत्र ) के अध्यक्ष डॉ. सुरेश मिश्रा ने बताया कि तुलसी विवाह एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है, जिसमें तुलसी और भगवान शालिग्राम का विवाह संपन्न कराया जाता है। तुलसी विवाह दीपावली के बाद आने वाली पहली एकादशी तिथि को मनाया जाता है। ये पर्व न केवल तुलसी के पौधे के प्रति श्रद्धा को दर्शाता है, बल्कि इसे पर्यावरण और प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने का प्रतीक भी माना जा सकता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को तुलसी विवाह का पर्व मनाया जाता है। इस साल 12 नवंबर 2024 को तुलसी विवाह का त्योहार है। इस दिन देवउठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी भी होती है, जो भगवान विष्णु के चार महीने की योग निद्रा से जागने का दिन माना जाता है। इस दिन को अत्यंत शुभ और पवित्र माना जाता है, और इसी दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है।
तुलसी विवाह का महत्व :
हिंदू धर्म में तुलसी को अति पूजनीय माना गया है। मान्यता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा रहता वहां सदैव धन, समृद्धि का वास रहता है। तुलसी की रोजाना पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। वहीं तुलसी पूजा के दिन तुलसी माता की पूजा करने से वैवाहिक जीवन में आ रही सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। साथ ही पति-पत्नी के बीच प्यार और बढ़ता और उनका रिश्ता पहले से भी अटूट हो जाता है। तुलसी पूजा के दिन भगवान शालिग्राम को दूल्हा और माता तुलसी की दुल्हन की तरह पूरा श्रृंगार किया जाता है।
पौराणिक कथा :
तुलसी विवाह की पौराणिक कथा प्रचलित है। देवी तुलसी का जन्म पृथ्वी पर वृंदा के रूप में हुआ था। वृंदा एक असुर राजकुमारी थीं और उन्होंने भगवान विष्णु की तपस्या की थी। वृंदा का विवाह जालंधर नामक असुर से हुआ, जो शक्ति और पतिव्रता धर्म के कारण अजेय था। देवताओं के आग्रह पर भगवान विष्णु ने जालंधर का वध किया और इसके बाद वृंदा ने विष्णु को श्राप दिया कि वे शालिग्राम में परिवर्तित हो जाएंगे। बाद में भगवान विष्णु ने वृंदा को तुलसी का रूप दे दिया और कहा कि उनका विवाह शालिग्राम के रूप में उनसे ही होगा। तब से तुलसी विवाह की परंपरा का आरंभ हुआ।
तुलसी विवाह कैसे मनाया जाता है?
तुलसी विवाह से पहले तुलसी के पौधे को एक सुंदर गमले या बर्तन में सजाया जाता है। पौधे को विवाह के लिए तैयार किया जाता है और दुल्हन की तरह सजाया जाता है। रंग-बिरंगी चुनरी, श्रृंगार की सामग्री, फूलों की माला और कागज के आभूषण तुलसी के पौधे पर सजाए जाते हैं। वहीं भगवान शालिग्राम की मूर्ति को दूल्हे के रूप में सजाया जाता है। विवाह की रस्में पूरी होने के बाद तुलसी जी को विभिन्न प्रकार के पकवान, मिठाई और विशेष प्रसाद अर्पित किया जाता है। तुलसी विवाह के प्रसाद में विशेष रूप से शुद्ध और सात्विक खाद्य पदार्थ होते हैं। बाद में यह प्रसाद सभी भक्तों में वितरित किया जाता है।
तुलसी विवाह में मुख्य बातों का ध्यान रखें :
शादी में लाल रंग का जोड़ा बहुत शुभ माना जाता है। तुलसी जी के विवाह में भी लाल रंग के वस्त्र अर्पित करें। लोक मान्यता है कि माता तुलसी सुखी दांपत्य जीवन का आशीर्वाद देंगी और परिवार में खुशहाली बनी रहेगी।
तुलसी विवाह में तिल का उपयोग करें। माता तुलसी का पौधा जिस गमले में लगा हो, उसमें शालिग्राम भगवान को रखें और फिर तिल चढ़ाएं।
तुलसी जी और शालिग्राम महाराज पर दूध में भीगी हल्दी को लगाएं। तुलसी विवाह की पूजा में इसे शुभ माना जाता है।
तुलसी विवाह के दौरान तुलसी के पौधे की 11 बार परिक्रमा करनी चाहिए। इससे वैवाहिक जीवन में खुशहाली बना रह सकती है।
तुलसी विवाह में शुद्ध और सात्विक भोग अर्पित करें।

Read Article

Share Post

VVNEWS वैशवारा

Leave a Reply

Please rate

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

बगलामुखी माता हवन यज्ञ से शीघ्र प्रसन्न होती हैं : पण्डित संयोगानंद

Tue Nov 12 , 2024
Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Email हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।दूरभाष – 94161 91877 कुरुक्षेत्र : बगलामुखी माता दस महाविद्याओं में एक हैं। उन्हें विजय, वाणी की प्रखरता शत्रु दमन धन प्राप्ति राजसत्ता प्रदान करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। […]

You May Like

advertisement