लंका पर विजय के विश्वव्यापी संदेश

आज भी विश्व के शक्तिशाली देशों में साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाऐं रह-रह कर हिलोरे लेती रहती हैं। हर शक्तिशाली देश अपनी भौगोलिक सीमाओं को विस्तार देने के लिए आज भी प्रयासरत हैं। पश्चिमी दुनिया के विकसित देशों की गिद्ध दृष्टि तीसरी दुनिया के पिछडे देशो की प्राकृतिक सम्पदा पर हमेशा गडी रहती हैं। विज्ञापनो के माध्यम से बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत सहित तीसरी दुनिया के देशों के बाजारों में अपनी पहुँच का विस्तार करने के लिए गला-काट प्रतियोगिता कर रही हैं और तरह-तरह-तरह के हथकंडे अपना रहीं हैं। ऐसे समय में मर्यादा पुरुषोत्तम राम द्वारा लंका पर विजय और विजय के उपरान्त लंका के साथ किया गया व्यवहार साम्राज्यवादी प्रवृत्तियों को संयमित करने का अनुपम उदाहरण हो सकता है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने धन सम्पदा से परिपूर्ण स्वर्णजटित लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद भी लंका को अयोध्या के अधीन उपनिवेश नहीं बनाया बल्कि लंका की धन सम्पदा और लंका का राज्य रावण के छोटे भाई राजा विभिषण को सौंप दिया। सम्पूर्ण विश्व के इतिहास में ऐसा अनुपम उदाहरण अंयत्र नहीं मिलता है। इस धरती पर कोई भी राज्य या राजा अगर शक्तिशाली बनकर उभरे तो अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए उन्होंने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। सोलहवीं शताब्दी में हुए पुनर्जागरण और धर्म सुधार आन्दोलन के उपरान्त यूरोपीय महाद्वीप में तर्क बुद्धि विवेक और ज्ञान-विज्ञान का जागरण हुआ। इस महाद्वीप में ज्ञान विज्ञान और तकनीकी के चमत्कार के फलस्वरूप इंग्लैंड, फ्रांस ,जर्मनी, इटली और आस्ट्रिया-हंगरी जैसी महाशक्तियों का उदय हुआ। इन महाशक्तियों ने प्राकृतिक संसाधनों और अपने देश में निर्मित वस्तुओं के बाजार के लिए पूरी दुनिया का बंटवारा कर लिया। न केवल बंटवारा किया बल्कि प्राकृतिक संसाधनों की निर्मम एवं निर्लज्ज लूट और मनुष्य के शोषण की सारी हदो को पार कर दिया। इसके विपरीत मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने वन प्रस्थान से लेकर लंकेश पर विजय प्राप्त करने तक एक आदर्श चरित्र प्रस्तुत किया और अयोध्या को एक आदर्श राज्य के रूप में प्रस्तुत किया। मर्यादा पुरुषोत्तम राम चाहते तो लंका में कठपुतली सरकार स्थापित कर लंका के प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग अयोध्या को सजाने संवारने के लिए अथवा अयोध्या की अनुषंगी अर्थव्यवस्था के रूप में कर सकते थे। जैसा कि-1950 के दशक से आरंभ शीत युद्ध के दौरान विश्व की दो महाशक्तियों संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ ने दुनिया के तमाम देशों में अपनी-अपनी कठपुतली सरकार बनाकर किया। विश्वशांति और विश्वबंधुत्व की दिशा में मर्यादा पुरुषोत्तम राम का लंका के साथ किया गया आदर्श व्यवहार विश्व के शक्तिशाली देशों लिए अनुसरणीय हो सकता है। आज विश्व की लगभग एक तिहाई सरहदो पर तनाव और युद्ध जैसा वातावरण बना हुआ है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम द्वारा लंका पर विजय के उपरान्त प्रस्तुत आदर्श इन सरहदों पर विद्यमान तनाव को कम करने में सहायक हो सकता है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के इस आदर्श व्यवहार से सीख लेते हुए प्रत्येक शक्तिशाली देश को कमजोर देश की सम्प्रभुता और सरहद का यथोचित सम्मान करना चाहिए। मर्यादा पुरुषोत्तम राम द्वारा लंका के प्रति अपनाई गई आदर्श नीति को अनिवार्य रूप से हर देश की विदेश नीति और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन की विषयवस्तु के रूप शामिल किया जाना चाहिए।

मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता
बापू स्मारक इंटर कांलेज दरगाह मऊ।

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