उत्तराखंड:मानसून बना आफत: सहमे सीमांत वासी, हर साल मानसून में आई आपदा से कई लोगो को होना पड़ता है बेघर


प्रभारी संपादक उत्तराखंड
साग़र मलिक

प्रदेश में मानसून की दस्तक से सीमांत के लोग सहमे से हैं। मानसून काल में हर वर्ष सरकारी और निजी संपति के नुकसान के साथ-साथ जनहानि भी होती है। सीमांत की 50 हजार से अधिक की आबादी मानसून के पहुंचने से फिर से चिंतित है। इधर, बरसात में आपदा से निपटने के लिए कोई भी तैयारी धरातल पर नजर नहीं आ रही है। वर्ष 2013 से अब तक सीमांत जनपद में 140 से अधिक लोग बरसात में आई आपदा में जान गंवा चुके हैं। 46 लोगों का आज तक पता नहीं चल सका है। 200 लोग बुरी तरह घायल हुए हैं। आपदा में पिछले आठ सालों में 150 करोड़ से अधिक की निजी व सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा है।
इस अवधि में 1000 से अधिक परिवारों के मकान ध्वस्त हुए। इस सबके बावजूद प्रशासन ने हर साल हो रही आपदा की घटनाओं से सबक नहीं लिया है। जनपद में भारत, चीन और नेपाल सीमा से सटे धारचूला-मुनस्यारी तहसील के 30 गांव आपदा की दृष्टि से अतिसंवेदनशील हैं, लेकिन अभी तक इन गांवों को विस्थापित नहीं किया गया है।

इन गांवों में रह रहे 250 से अधिक परिवारों के लिए इस बार भी वर्षाकाल जीवन की परीक्षा साबित होगा। सरकार की ओर से आपदा काल में सुरक्षित स्थानों पर बसाने के दावे तो बहुत किए जाते हैं, मगर आज तक आपदा पीड़ितों की समस्या का समाधान नहीं हुआ।

आपदा की दृष्टि से गांव हैं संवेदनशील और अति संवेदनशील

रालम, मिलम, बुरफू, बिल्जू, टोला, मरतोली, ल्वा, गनघर, लास्पा, बूंदी, गर्ब्यांग, कुटी, रांककांग, नाभी, गुंजी, सोसा, पांगू, दुग्तू, बौन, गौ, सेला, दांतू सहित कई अन्य गांव आपदा की दृष्टि से संवेदनशील और अति संवेदनशील हैं।
हर साल मानसून काल में सीमांत जनपद को भारी नुकसान झेलना पड़ता है। पुराने आपदा प्रभावितों का अभी तक विस्थापन भी नहीं हुआ है। इस मामले को सदन में उठाया जाएगा।
-हरीश धामी, विधायक धारचूला
आपदा काल से निपटने के लिए सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। आवश्यक उपकरण और अन्य सामान जुटा लिया है। चार गांव के आपदा प्रभावितों के विस्थापन को लेकर सरकार से धनराशि मिल गई है। अन्य गांवों के प्रस्ताव शासन को भेजे गए हैं।
-भूपेंद्र महर, आपदा प्रबंधन अधिकारी पिथौरागढ़

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