उत्तराखंड:उत्तराखंड: हरीश रावत ने गुजरात और दिल्ली मॉडल का यू किया पोस्टमार्टम

उत्तराखंड: हरीश रावत ने गुजरात और दिल्ली मॉडल का यू किया पोस्टमार्टम!
प्रभारी संपादक उत्तराखंड
साग़र मलिक

भाइयों और बहनों,
मैं आपसे #विकास और जनकल्याण के #गुजरातमॉडल, दिल्ली मॉडल और #उत्तराखंडमॉडल पर कुछ चर्चा करना चाहता हूंँ। गुजरात मॉडल, डबल इंजन की सरकार के विफलताओं व निकम्मेपन को उत्तराखंड में 2017 से अभी तक भुगत रहा है। विकास शून्य, केवल बयानबाजी, महंगाई, बेलगाम अर्थव्यवस्था व रोजगार सृजन रसातल की ओर, महिलाओं की पेंशन बंद, अंबानी-अडानी मॉडल पर काम, जमीन पूंजीपतियों को बेच दो, कोविड काल में जनता को अपने भाग्य पर छोड़ दो, कोई व्यवस्था नहीं, न ऑक्सीजन न बेड, मुख्यमंत्री बदलो और हो सके तो चुनाव के समय में विधायकों के टिकट काटकर जनता के सवालों से बचो, यह है गुजरात मॉडल।

दिल्ली_मॉडल में न कृषि, न बागवानी, न राजस्व, पुलिस सहित कई विभाग नदारद। केवल कुछ कमाऊ विभाग आबकारी, टैक्सेशन आदि दुधारू भैंसें हैं। दिल्ली सरकार के अधीन साढे़ 600 के करीब स्कूल हैं, पिछले 7 वर्षों से दिल्ली में कोई नया डिग्री कॉलेज, विश्वविद्यालय, इंजीनियरिंग कॉलेज, मेडिकल कॉलेज, नर्सिंग कॉलेज, पैरामेडिकल कॉलेज, पॉलिटेक्निक, आई.टी.आई. सरकार ने नहीं खोला। पानी की योजना भी जो पहले बनी है वही चली आ रही है, न कोई नया फ्लाईओवर बना है, न कोई सड़क बनी है, बल्कि पानी की निकासी भी नहीं हो रही है, बारिश हो रही है तो कई इलाके कमर-कमर तक पानी से डूब जा रहे हैं, यह दिल्ली मॉडल है। साढे़ 7 साल के दिल्ली मॉडल में केवल साढे़ 6 हजार लोगों को नौकरियां मिली हैं, जिनमें से कुछ अंशकालीन शिक्षक हैं। कुल 600 स्कूलों वाले राज्य की शिक्षा व्यवस्था, कैसे #उत्तराखंड जैसे राज्य पर फिट आ सकती है! दिल्ली में अधिकांश स्कूल, चिकित्सालय निजी क्षेत्रों में हैं या केंद्र सरकार द्वारा पोषित हैं तो स्वास्थ्य सेवाओं का मॉडल भी दिल्ली का उत्तराखंड में फिट नहीं आ सकता है। हाँ, दिल्ली की कुल वार्षिक आय 60 हजार करोड़ रुपये से अधिक है, राजस्व वृद्धि दर 16 प्रतिशत से अधिक है और उसकी तुलना में उत्तराखंड की आमदनी कहां पर खड़ी है जरा तुलना करके देख लीजिये।

2014 से 2017 तक एक #उत्तराखंडियत आधारित मॉडल बनना शुरू हुआ। 1 लाख की संख्या से 3 वर्ष में वृद्ध, विधवा, दिव्यजन पेंशनों की संख्या बढ़कर सवा 7 लाख पहुंची। ₹400 मासिक से बढ़कर हजार रुपए पहुंची। बौना, परित्यक्ता, अक्षम महिलाओं, अविवाहित उम्रदराज महिलाएं, शिल्पियों, जगरियों, कलाकारों, पत्रकारों, किसानों, पुरोहितों सभी सृजकों को पेंशन योजना में लाया गया। कन्यादान, गौरा देवी, नंदा देवी जैसी दलित गरीब पोषण योजनाएं, बाल गर्भवती महिला व वृद्ध महिला पोषण आहार योजना लागू की। सार्वभौम, स्वास्थ्य बीमा, ए.पी.एल. कार्ड धारकों को भी सस्ता अनाज, महिला संगठनों को स्वरोजगार हेतु आर्थिक पोषण तथा दुग्ध, जल, वृक्ष बोनस योजनाएं, 1400 सड़कों पर काम पूर्ण या प्रारंभ, 25 नये डिग्री कॉलेज, 23 नये पॉलिटेक्निक, 8 इंजीनियरिंग, 8 नर्सिंग, 5 मेडिकल, पैरामेडिकल, 40 नये आई.टी.आई., 32 बहुग्राम, पेयजल योजनाएं, फ्लाईओवर, अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्टेडियमों का निर्माण, 24 घंटे स्वस्थ व सबसे सस्ती बिजली, भाषा-बोली व शिल्प सर्वधन, पर्वतारोहण के नये संस्थान, 32 हजार लड़के-लड़कियों को सरकारी नौकरियां, शिक्षा में आरक्षण का बैकलॉग समाप्त, 500 से अधिक मॉडल स्कूल आदि-आदि हैं। उत्तराखंड को मॉडल की बानगी, जरा मनन करें?
2014 में राज्य के प्रति व्यक्ति औसत आय ₹73000 थी और वो 2016 में बढ़कर 1 लाख 75 हजार रुपये पहुंची। राज्य की वार्षिक राजस्व वृद्धि दर 7 प्रतिशत से बढ़कर साढे़ 19 प्रतिशत पहुंची, एक समावेशी गरीब परख राज्य के निर्माण की तरफ हम आगे बढ़े, संपन्नता को बांटा, मेरा आग्रह है कि इन तीनों मॉडल पर जरूर मनन करें।
आपका सेवक
हरीश रावत

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