हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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कुरुक्षेत्र :- पराविज्ञान अनुसार आप की कुंडली का ‘सप्तम भाव ‘ गुर्दो का कारक होता है सप्तमेश या सप्तमाधिपति दुष्प्रभावों में हो साथ ही जन्मपत्री का ……भाव कमजोर होना या पापप्रभाव में होना , पथरी रोग को जटिल बना देता है।
” मंगल ग्रह ” यहाँ ऑपरेशन और रक्त पीड़ा का कारक जन्मपत्री में किस अवस्था में है। तथा गौचर – दशा – अन्तर्दशा पथरी रोग पीड़ा का समय प्रकार बता देगी ।
‘ कन्या लग्न ‘ मंगल ग्रह लग्न में बैठा हो ,चंद्र शुक्र शनि …..भाव में बैठा हो बुद्ध ग्रह अष्ठम विराजमान सूर्य देव नवम भावगत हो तब इस रोग की प्रबल सम्भावना और नियमित ऑपरेशन की प्रमाणिकता है।
जन्म तारिक़ 6 , 15 , 24 को जन्मे लोगो में इस रोग की सम्भावना 90 % होती है।
पथरी रोग में उपाय –
पहेली स्टेज में खानपान द्वारा आप इस रोग पर काबू हेतु – केला . नारियल पानी. करेला जूस . चना गाजर खाद्य पदार्थ से लाभ ले , ये पथरी बनने की क्रिया को रोकते है।
ज्योतिर्विज्ञान में तारा पुंजो के तीन समुदाय है ,जिनका सम्बन्ध आयुर्वेद के त्रिदोष से है जब विज्ञानं ने इतनी प्रगति नही की थी तब जन्मांग चक्रो के आधार पर वैद्य रोगों का परिक्षण करते थे ,रोगी के बाह्य लक्षण उस आंतरिक रोग के परिचायक होते थे जन्मकुंडली भी तो आपके रोग की सम्पूर्ण अवस्थावो को प्रर्दशित कर सकता है।
” भारतीय चिकित्सा शास्त्र ” के अनुसार आयुर्वेद जो अथर्ववेद का उपांग है, ब्रह्मा द्वारा अश्विनी कुमारों को सिखाया गया, उन्होंने यह ज्ञान इन्द्र को दिया और इन्द्र ने धन्वन्तरि को सिखाया। धन्वन्तरि ने मुनियों और ज्योतिष आचर्य को यह ज्ञान दिया।
” आप सुखी रहे धनधान्य आरोग्य पाये मंगलकामना “