करवा चौथ की तर्ज पर मनाई जाएगी वटसावित्री अमावस्या, सोमवती अमावस्या और शनि जयंती एक साथ : कौशिक

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 9416191877

कई वर्षों बाद बन रहा दुर्लभ संयोग, कई ग्रहों के बन रहे के विशेष योग।
शास्त्रों के अनुसार शनिदेव व्यक्ति के कर्मों के अनुसार उसकी सजा तय करते है।
व्रत आज 29 मई रविवार को।
शुभ मुहूर्त सोमवती अमावस्या,शनि जयंती वट सावत्री अमावस्या पर्व 30 मई को मनाई जाएगी, पंचांग के अनुसार अमावस्या तिथि रविवार 29 मई दोपहर 2 बजकर 54 मिनट से प्रारंभ होकर सोमवार 30 मई को सांय 4 बजकर 59 मिनट पर समाप्त होगी।
इस दिन बड़ के पत्तों व टहनी को तोड़ने का भयंकर दोष, वहीं पर जाकर पूजा करे।

कुरुक्षेत्र : उत्तर भारत के प्रमुख त्यौहारों करवा चौथ की तर्ज पर 30 मई सोमवार को वट सावित्री अमावस्या, सोमवती अमावस्या और शनि जयंती एक साथ मनाई जाएगी। षड्दर्शन साधुसमाज के संगठन सचिव एवं श्री गोविंदानंद आश्रम पिहोवा के सह संरक्षक वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक ने बताया की यह अनेक बर्षो बाद दुर्लभ संयोग बन रहा है।
दुर्लभ संयोग से भारत की अर्थ व्यवस्था में सुधार, विश्व में भारत की प्रसिद्धि के साथ ही भारत विश्व गुरु की ओर अग्रसर के योग बन रहे है। इस बार बट सावित्री अमावस्या,सोमवती अमावस्या व शनि जयंती का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन कुरुक्षेत्र के तीर्थों में स्नान व दान का विशेष महत्व माना जाता है और वट वृक्ष (बड़ का पेड़) की पूजा का भी महत्व माना जाता है और वट वृक्ष (बड़ का पेड़) साथ ही सोमवार को शनि जयंती होने के कारण पीपल, बड़ की पूजा का भी महत्व माना जाता है। इस दिन सावित्री ने यमदूत से अपने पति सत्यवान के प्राण वापिस लिए थे।
गीता की जन्मस्थली कुरुक्षेत्र में वट सावित्री अमावस्या को लेकर श्रद्धालुओं में बेहद उत्साह रहता है।
वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक ने बताया की सोमवार को वट सावित्री अमावस्या देव पितृ कार्य सोमवती अमावस्या, पीपल पूजन, शनि जयंती का विशेष दुर्लभ संयोग बन रहा है। वट सावित्री अमावस्या को विवाहित स्त्रियां उपवास रखती हैं और बड़ के पेड़ की पूजा कर अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं। अमावस्या के दिन भोलेनाथ का गाय के दूध के साथ रुद्राभिषेक करवाना, गायों को अपने वजन के बराबर हरी घास खिलाना, जल पिलाना व जरूरतमंदों को दान करने का विशेष महत्व माना जाता है। बड़ सावित्री अमावस्या के दिन लक्ष्मी नारायण के मन्दिर में पूजा अर्चना की जाती है। वट सावित्री व्रत कथा में आता है कि सत्यवान के सिर में चक्कर आने लगा, तब सावित्री ने उसे वट वृक्ष के नीचे सुला दिया क्योंकि वट वृक्ष के तनों से लटकी जड़ें या डालें शरीर के दोषों को दूर करती हैं। कुरुक्षेत्र में हजारों वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश भी वट वृक्ष के नीचे छाया में ही दिया था। शुक्रताल में वेद व्यास ने भागवत की रचना भी बड़ के पेड़ की छाया में ही रची थी। वट के वृक्ष को अत्यंत चिरंजीवी वृक्ष कहा गया है।
कौशिक जी ने बताया की बड़ की पूजा के कई धार्मिक महत्व भी हैं और अनेक रोगों के निवारण में इसकी अहम भूमिका है। उन्होंने बड़ वृक्ष की विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि भारत में बड़ की उपस्थिति वैदिक काल से ही मिलती है। अनेक ग्रंथों में इसके उदाहरण मिलते हैं। बड़ का वृक्ष सभी प्रांतों में आसानी से पाया जाता है। वट वृक्ष के बारे में प्राचीन ग्रंथों में यौन रोगों के बारे में बहुत कुछ मिलता है या यों कहिए कि आज भारत में जिस गति से यौन रोग फैल रहे हैं, उनके निवारण के लिए वट वृक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसके अलावा अन्य रोगों के उपचार में भी काम आता है जैसे यौन रोग जिन रोगियों में नपुंसकता के लक्षण अधिक मात्रा में मिलते हैं या जिन रोगियों मेें शुक्राणु की मात्रा न के बराबर मिलती है, उन रोगियों के लिए बड़ वृक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका मिलती है। वट वृक्ष के फल और दूध की यौन रोगों में विशेष भूमिका रही है। इसके अलावा पुराना सिर दर्द, मानसिक रोग, चर्म रोग, बवासीर और संग्रहणी इत्यादि निवारण के लिए भी वट वृक्ष को उपचार में लाया जाता है। शनि जयंती के पावन पर्व पर पीपल के वृक्ष को स्पर्श करने मात्र से पापों का क्षय हो जाता है और परिक्रमा करने से आयु बढ़ती है। व्यक्ति मानसिक तनाव से मुक्त हो जाता है।
वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक ने बताया की कुरुक्षेत्र की पावन धरती पर श्रीमद्भगवद् गीता में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने अपने मुख से कहा कि वृक्षों में मैं पीपल हूं। उन्होंने शनि जयंती के पर्व पर बताया कि व्यक्ति की जन्मकुण्डली में और गोचर में शनि के प्रभावों को देखते हुए शनि को भाग्य विधाता के नाम से भी जाना जाता है। शनि की महादशा, अन्तर्दशा, साढ़े साती या ढैय्या और यदि जातक की जन्मकुण्डली में अन्य ग्रह शुभ हों किन्तु शनि अशुभ हो तो जातक को किसी भी शनिवार या शनि जयंती को पीपल का वृक्ष लगाने से जन्म कुंडली के कई दोष समाप्त हो जाते हैं। इस पर्व पर सात मुखी रुद्राक्ष को विशेष पूजा द्वारा अभिमंत्रित कर धारण करने से शनि महाराज शांत हो जाते हैं और शुभ फल प्रदान करते हैं। धर्म में आस्था रखने वाले भक्त अभिमंत्रित रुद्राक्ष प्राप्ति के लिए संपर्क कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि शनि जयंती या किसी भी शनिवार को पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर दशरथ कृत शनि स्त्रोत का पाठ करने से भी उत्तम फल की प्राप्ति संभव है।

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