वृन्दावन:भगवान श्रीकृष्ण के वक्षस्थल से प्रगटे हैं गिरिराज गोवर्धन : “धर्म पथिक” शैलेन्द्र कृष्ण महाराज

सेंट्रल डेस्क संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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वृन्दावन,18 दिसंबर : ग्राम धौरेरा/राधा मोहन नगर स्थित मां धाम आश्रम में चल रहे सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ महोत्सव के पांचवें दिन व्यासपीठ पर आसीन प्रख्यात भागवताचार्य धर्म पथिक शैलेन्द्र कृष्ण महाराज ने देश-विदेश से आए समस्त भक्तों- श्रद्धालुओं को पूतना वध, भगवान श्रीकृष्ण के नाम करण, यमलार्जुन उद्धार, माखन चोरी, बकासुर-अघासुर वध, कालिया मर्दन, इंद्र मान मर्दन और गिरिराज गोवर्धन महिमा की कथा श्रवण कराई।
धर्म पथिक शैलेन्द्र कृष्ण महाराज ने कहा कि गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव भगवान श्रीकृष्ण की एक अलौकिक लीला है।जिसमें एक ओर तो वे गिरिराज गोवर्धन के रूप में स्वयं पूज्य बने और दूसरी ओर उन्होंने नंदनंदन के रूप में ब्रजवासियों के साथ गाते-बजाते हुए गिरिराज गोवर्धन की पूजा-अर्चना की।वस्तुत: यह लीला हमारी पुरातन संस्कृति में निहित अपने आराध्य के प्रति आस्था के अतिरिक्त माधुर्य व वैभव का भी प्रतीक है।
उन्होंने कहा कि श्रीगिरिराज गोवर्धन का प्राकट्य गोलोक धाम में अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड नायक परब्रह्म परमेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के वक्षस्थल से हुआ है।इसीलिए वे स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के ही स्वरूप माने जाते हैं।उनमें और श्रीकृष्ण में कोई भेद नहीं है। वस्तुत: भगवान श्रीकृष्ण ने प्रकृति का संरक्षण करने के लिए ही गिरिराज पूजा की लीला की थी।जिससे कि लोग प्रकृति के महत्व को जानें और उसकी उपयोगिता का सही से पालन करें।
इस अवसर पर गिरिराज गोवर्धन महाराज की अत्यंत नयनाभिराम व चित्ताकर्षक झांकी सजाई गई। साथ ही 56 प्रकार के भोग लगाए गए।इसके अलावा गोवर्धन महिमा से ओतप्रोत भजनों का संगीत की मृदुल स्वर लहरियों के मध्य गायन किया गया।जिन पर समस्त भक्तों-श्रद्धालुओं ने जमकर नृत्य किया।
महोत्सव में प्रख्यात साहित्यकार “यूपी रत्न” डॉ. गोपाल चतुर्वेदी, पुराणाचार्य डॉ. मनोज मोहन शास्त्री, सन्त प्रवर रामदास महाराज (अयोध्या), हीरा भैया (नंदगांव), भागवताचार्य सुमंत कृष्ण महाराज, भागवताचार्य विमल कृष्ण पाठक, डॉ. राधाकांत शर्मा, पण्डित अंकित कृष्ण महाराज, मुख्य यजमान गोपाल चौरसिया, श्रीमती कौशल्या चौरसिया, श्यामपाल सिंह, पप्पू गौतम, महेश शास्त्री, हृदेश शास्त्री आदि की उपस्थिति विशेष रही।




