जब रोशनी होती है नाटक ने दिखाया सच्चाई और झूठ का आमना-सामना

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।

समाज के कई पहलुओं से पर्दा हटा गया नाटक जब रोशनी होती हैं।
चण्डीगढ़ के कलाकारो ने दिखाए अभिनय कौशल, दर्शकों ने तालियों से की वाहवाही।
नंगे आदमी को कुछ खोने का डर नहीं होता, नंगा आदमी सिर्फ नंगा होता है।

कुरुक्षेत्र 2 मार्च : आदमी जब नंगा होता है तो किसी से नहीं डरता। नंगे आदमी को कभी कुछ खोने का डर नहीं होता। नंगा आदमी सिर्फ नंगा होता है। ऐसे संवादों के साथ चण्डीगढ़ के कलाकारों ने हरियाणा कला परिषद की साप्ताहिक संध्या में खूबसूरत नाटक प्रस्तुत किया। मौका था कला कीर्ति भवन में आयोजित नाटक जब रोशनी होती है के मंचन का। इस अवसर पर गीता विद्या मंदिर के प्रबंधक राजेश गोयल बतौर मुख्यअतिथि पहुंचे। वहीं कार्यक्रम की अध्यक्षता विद्या भारती के जिला संयोजक एवं केडीबी के सदस्य अशोक रोशा ने की। मंच का संचालन मीडिया प्रभारी विकास शर्मा ने किया। जीन पाॅल सार्त्र की रचना द फलाईस पर आधारित नाटक जब रोशनी होती है का नाट्य रूपांतरण परमानंद शास्त्री एवं गुरुशरण सिंह द्वारा किया गया। निर्देशन पंजाबी फिल्म अभिनेता एवं रंगकर्मी बनिंद्रजीत सिंह ने किया। इम्पेक्ट आर्टस चण्डीगढ़ के कलाकारों द्वारा अभिनीत नाटक में दिखाया गया कि बादशाह अपने क्षेत्र के लोगों पर अत्याचार करता है। अपनी बादशाहत को दिखाते हुए अपनी प्रजा को तंग करता है और हमेशा दबाने का हर सम्भव प्रयास करता है। बादशाह का औलिया अपने स्वार्थ को पूरा करते हुए बादशाह का पूरा साथ देता है और बेफिक्र होकर गुनाह पर गुनाह किये जाता है। औलिया लोगों को मुक्कदस किताब का हवाला देकर डराता रहता है। लोगों को न अच्छा खाने की इजाजत थी और न ही अच्छा पहनने की। प्रजा को हमेशा काले रंग के वस्त्र पहन कर अपने गुनाह का पश्चाताप करने की हिदायत देकर बादशाह और औलिया अपनी रोटियां सेकते रहते हैं। एक दिन सात समंदर पार से एक सच्चा व्यक्ति आता है जो लोगों को जागरूक कर बादशाह और औलिया की सच्चाई बताने का प्रयास करता है। व्यक्ति को एक नंगा आदमी दिखता है जो सच्चे व्यक्ति को बादशाह और औलिया की हरकतों के बारे में बताता है। नंगा आदमी बताता है कि किस प्रकार औलिया खुदा की आड़ में औरतों को अपनी हवस का शिकार बनाता है। सच्चा व्यक्ति लोगों को जागरुक करते हुए बादशाह और औलिया के प्रति विद्रोह शुरु कर देता है। जिससे परेशान होकर बादशाह व्यक्ति को मारने के आदेश दे देते हैं। अंत में प्रजा सच्चे व्यक्ति का साथ देती है और बादशाह की खिलाफत करती है। इस तरह से झूठ पर सच्चाई की जीत को बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत करते हुए कलाकारों ने समाज के विभिन्न पहलूओं से पर्दा उठाने का काम किया। नाटक इतना कामयाब रहा कि नाटक मंचन होने उपरांत दर्शकों ने खड़े होकर तालियां बजाते हुए कलाकारों की वाहवाही की। एक ओर जहां नाटक की पटकथा बेहतरीन थी, वहीं कलाकारों के अभिनय और निर्देशन की भी भरपूर सराहना हुई। नाटक में सौरभ, सुमित स्वामी, रजत, अमृतपाल सिंह, कृष्णा, दानिश, शरण, जतन सचदेवा, नेहा धीमान, नवीन अरोड़ा, परनीत कौर, एकम, चरणजीत सिंह, हरविंद्र सिंह, कमलदीप कौर, गगनदीप, शिवम, गुरविंद्र आदि शामिल रहे। अंत में मुख्यअतिथि ने नाटक निर्देश बनिंद्रजीत सिंह को स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर हरियाणा कला परिषद के कार्यालय प्रभारी धर्मपाल, नीरज सेठी, शिवकुमार किरमच, चंद्रशेखर, राकेश कुमार, कपिल बत्रा आदि उपस्थित रहे।

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