विश्व गौरैया दिवस: यहां तो चिऊं-चिऊं से होती है सुबह

विश्व गौरैया दिवस: यहां तो चिऊं-चिऊं से होती है सुबह

रिपोर्ट आदित्य चतुर्वेदी

अजमतगढ़

गौरैयों के संरक्षण के लिए के निजामाबाद कस्बे के फरहाबाद का एक परिवार पूरी तरह संकल्पित है। इस परिवार के लोगों का गौरैया से खास लगाव है। मकान के दूसरे तल पर बने कमरों में सैकड़ों गौरैयों का घोसला है। घर वाले प्रतिदिन फर्श की सफाई करने के साथ इनके लिये दाना-पानी का भी इन्तेजाम करते हैं। परिवार वाले सुबह इन गौरैया की आवाज सुनकर ही उठते हैं। घर मे छत का पंखा हटाकर टेबल फैन का इन्तेजाम किया गया है।

‘मटके की गर्दन पर बैठी, कभी अरगनी पर चल। चहक रही तू चिऊं-चिऊं, चिऊं-चिऊं, फुला-फुला पर चंचल। मेरे मटमैले आंगन में, फुदक रही गौरैया। डॉ.शिवमंगल सिंह ‘सुमन की ये पंक्तियां आज किसी सपने जैसी लगती है। अब हमारे घरों के आस-पास गौरैया चिड़ियों की ‘चीं-चीं चूं-चूं’ की आवाज काफी कम हो गई है। इसकी सबसे बड़ी वजह तेजी से इन चिड़ियों का विलुप्त होना माना जा रहा है। निजामाबाद कस्बा के फरहाबाद निवासी परिवार मुखिया पेशे से चिकित्सक डॉ. इरफान अहमद ने बताया कि छत के ऊपर बने खपड़ा से छाए हुए हवादार कमरों में सैकड़ों गौरैया रहती हैं। घर वालों को कोई परेशानी नही होती है। अब हमारा इनसे खास लगाव है। पूरे दिन चिड़िया आती जाती रहती है। घर वालों को इनकी मीठी आवाज से लगाव है। घर की छत और दीवालों में तिनकों से निर्मित सैकड़ों घोसले हैं। जहां चिड़िया अंडे देती हैं, सेती है और उसके बच्चे बड़े होकर उड़ जाते हैं। उन्होंने ने बताया कि पर्यावरण संरक्षण के लिए पेड़-पौधे, पशु-पक्षी का होना जरूरी है। बहरहाल, इन चिड़ियों की संख्या घटने की बड़ी वजह मोबाइल टावरों से निकलने वाले रेडिएशन का दुष्प्रभाव है। इसके अलावा दूसरा सबसे बड़ा कारण खेतों में रासायनिक दवाओं का छिड़काव करना भी है। इसकी वजह से खेतों में दाना चुगने गई पक्षियों की अक्सर मौत हो जाती है।

दूसरी ओर नगर के पुरानी सब्जी मंडी में फाइन अरट सेंटर के तत्वावधान में शुक्रवार से तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन हुआ। इस दौरान विलुप्त हो रही गौरैया के संरक्षण के लिए लोगों ने विस्तार से चर्चा की। गौरैया के संरक्षण के लिए लोगों को जानकारी दी। कार्यशाला में 25 कलाकार बेटियों ने हैंगिंग वाटर पॉट में चिड़ियों का चित्रण किया। सेंटर की निदेशक डॉ.लीना ने बताया भूरे सुनहरे और ग्रे रंग का यह नन्हा सा पक्षी बचपन से हमारे घर आंगन में फुदकता नजर आता था। जलवायु परिवर्तन के कारण यह अब बहुत कम नजर आता है। आगामी दिनों में भीषण गर्मी का अनुमान है। इसीलिए हमने चिड़ियों को पानी रखने वाले पात्र में पैंटिंग किया है। जिसे बालकनी में टांग सकते हैं। इसे पक्षियों को पानी भी मिल सकेगा और घर आंगन में गौरैया फिर से चहकेगी। कलाकार अंकिता, हया, मुस्कान, कृष्णा, ऋषिका, स्वाति, सहज, संचिता, अनीता, दीप्ति, रानी, भावना, प्रियांशी, श्रीयांशी, अपर्णा, गुनी, ईशा, सौम्या, सलोनी के साथ बालकलाकार आराध्या, आशिनी, अर्चिका, मानवी, श्लोका, शैवी ने अपनी कला से समाज में गौरैया के प्रति जागरूकता लाने का प्रयास किया।

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