सैंया भए कोतवाल से हुआ उत्थान उत्सव का समापन, कलाकारों ने बिखेरा हास्य रंग।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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सैंया भए कोतवाल ने की व्यवस्था पर चोट, हंसी के रंग में डूबो गया नाटक।
कुरुक्षेत्र : न्यू उत्थान थियेटर ग्रुप के 13 वीं वर्षगांठ के अवसर पर हरियाणा कला परिषद व उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, पटियाला के संयुक्त सहयोग से आयोजित दो दिवसीय उत्थान उत्सव के समापन अवसर पर वसंत सबनीस के लिखे और संजय भसीन के निर्देशन में हास्य नाटक सैंया भए कोतवाल का मंचन किया गया। हास्य-व्यंग्य से भरपूर नाटक को देखने भारी संख्या में लोग कला कीर्ति भवन में पहुंचे। इस अवसर पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के युवा एवं संस्कृति विभाग के निदेशक डा. महासिंह पुनिया मुख्य अतिथि के रुप में पहुंचे। वहीं व्यापार मण्डल के अध्यक्ष धीरज गुलाटी तथा समाजसेवी शैंलेंद्र पराशर विशिष्ट अतिथि के रुप में उपस्थित रहे। नाटक के दौरान मंच संचालन विकास शर्मा ने किया। नाटक से पूर्व अतिथियों को पुष्पगुच्छ भेंटकर स्वागत किया गया। कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत न्यू उत्थान थियेटर ग्रुप के अध्यक्ष नीरज सेठी, हरियाणा कला परिषद के निदेशक संजय भसीन, डा. महासिंह पुनिया आदि द्वारा दीप प्रज्जवलित कर की गई।
उत्थान उत्सव में जहां पहले दिन हास्य नाटक पंचलाईट ने लोगों को गुदगुदाया वहीं दूसरे दिन नाटक सैंया भए कोतवाल में हास्य-व्यंग्य के माध्यम से व्यवस्था पर चोट करते हुए कलाकारों ने भ्रष्टाचार की पोल खोलने का कार्य किया। तमाशा शैली में मंचित नाटक में सूर्यपुर नगर की कहानी को दिखाया गया। मूर्ख राजा रणधीरा के कोतवाल के मरने के बाद सभी को नए कोतवाल की चिंता लग जाती है। जिसका फायदा प्रधान उठाता है और अपने बेवकूफ साले को कोतवाल बना देता है। राज्य का हवलदार और सिपाही नए कोतवाल को देखकर खुश नहीं होते और उसे फंसाने की तरकीब सोचने लगते हैं। कोतवाल से बात करने पर हवलदार को पता चलता है कि उसे गाना सुनने का शौंक है। ऐसे में हवलदार अपनी प्रेमिका मैनावती के साथ मिलकर कोतवाल को फसाने की चाल चलता है और कोतवाल के आगे मैनावती के प्यार का झांसा डाल देता है। मैनावती कोतवाल से शादी करने की शर्त पर राजा का छपरी पलंग मांग लेती है। कोतवाल हवलदार और सिपाही से छपरी पलंग मंगवा लेता है। वहीं हवलदार राजा को भी इस चोरी की खबर दे देता है। छपरी पलंग आने के बाद कोतवाल जब मैनावती से शादी करने पहुंचता है तो राजा ब्राहम्ण का वेश धरकर शादी करवाने पहुंच जाता हैंए जहां दोनों की शादी हो जाती है। लेकिन बाद में नाटक से जब पर्दा उठता है तो पता चलता है कि दुल्हन मैनावती नहीं बल्कि मैनावती का शागिर्द सख्या है। अंत में राजा हवलदार से खुश होकर उसे कोतवाल बना देता है। नाटक में कलाकारों का अभिनय, संगीत, वेशभूषा तथा संवाद सभी को रोमांचित करने में अपनी अहम भूमिका निभा रहे थे। हरियाणा कला परिषद और उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र पटियाला के सहयोग से आयोजित उत्सव में नाटक के दौरान हास्य के पलों का लोगों ने खूब आनंद लिया। नाटक में कोतवाल की भूमिका में रंगकर्मी व प्राध्यापक शिव कुमार किरमच ने अपनी कलाकारी से सभी को लोटपोट कर दिया। वहीं हवलदार की भूमिका में रजनीश भनौट, मैनावती पारुल कौशिक, राजा आश्रय शर्मा, सिपाही गौरव दीपक जांगड़ा, सख्या राजीव कुमार तथा प्रधान की भूमिका में चंचल शर्मा ने अपनी हिस्सेदारी दी। नाटक में शुभम कल्याण ने गायन तथा गोविंदा ने रिदम पर साथ दिया। अन्य कलाकारों में निकेता शर्मा, सिद्धार्थ सिद्धू, अनूप कुमार, आकाश, चमन चौहान शामिल रहे। प्रकाश व्यवस्था मनीष डोगरा ने सम्भाली। अंत में सभी कलाकारों तथा नाटक निर्देशक संजय भसीन व मुख्यअतिथि डा. महासिंह पुनिया और विशिष्ट अतिथि धीरज गुलाटी को अंगवस्त्र व स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया। इस मौके पर हरियाणा कला परिषद के कार्यालय प्रभारी धर्मपाल, लालचंद, साजन कालड़ा, नरेश सागवाल आदि उपस्थित रहे।