श्रीमद्भगवद्गीता मनुष्य जीवन का प्रबन्धन ग्रन्थ: भूपेन्द्र यादव।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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वर्तमान विश्व व समाज की सभी समस्याओं का हल श्रीमद्भगवद्गीता में निहितः स्वामी ज्ञानानंद।
भगवद्गीता और उसकी शिक्षाएं आज भी प्रासंगिकः गोविन्द राजू।
मनुष्य को आसक्ति त्याग कर कर्म करना चाहिए: प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय तथा कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के संयुक्त तत्वावधान में श्रीमद्भगवद्गीता के परिप्रेक्ष्य में विश्वशान्ति एवं सद्भाव विषय पर आयोजित तीन दिवसीय 7 वीं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ समापन।
कुरुक्षेत्र, 1 दिसम्बर : श्रीमद्भगवद्गीता मनुष्य जीवन का प्रबन्धन ग्रन्थ है तथा यह स्वयं को कर्मयोगी बनाने का सबसे बड़ा ग्रंथ है। व्यक्ति के जीवन में आने वाले संकटों को प्रकाश दिखाने वाला, जीवन की समय की समस्याओं का समाधान बताने वाला श्रीमद्भगवद् गीता ग्रन्थ का प्रादुर्भाव जिस धरती पर होता है वो धरती अपने आप में जागृत होती है। गीता उच्च कोटि का दार्शनिक ग्रंथ होने के साथ-साथ सामान्य जनमानस के लिए महत्वपूर्ण ग्रंथ है। गीता एक दर्शन है जो शांत एवं एकांत वन में रहने वाले किसी साधू को भी मार्गदर्शन देती है तो नैतिकता द्वंद्व में झूझते हुए एक सैनिक का भी मार्गदर्शन करती है। यह विचार भारत सरकार के केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेन्द्र यादव ने गुरुवार को विश्वविद्यालय के सीनेट हॉल में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय तथा कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 7 वीं अंतराष्ट्रीय गीता संगोष्ठी के समापन अवसर पर आयोजित सेमिनार में बतौर मुख्यातिथि व्यक्त किए। इससे पहले भारत सरकार के केबिनेट मंत्री एवं राज्यसभा सांसद भूपेन्द्र यादव, सांसद नायब सिंह सैनी, विधायक सुभाष सुधा, यूएसए से आए मुख्य वक्ता डॉ. वेणु गोविन्द राजू, गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज, केडीबी के मानद सचिव मदन मोहन छाबड़ा, कुवि कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा, कुवि कुलसचिव डॉ. संजीव शर्मा, डीन अकेडमिक अफेसर्य प्रो. मंजुला चौधरी ने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया तथा अतिथियों ने तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी की स्मारिका का विमोचन भी किया।
भूपेन्द्र यादव ने कहा कि आज कुरुक्षेत्र की पहचान अंतर्राष्ट्रीय नक्शे पर है जिसका सबसे बड़ा कारण कुरुक्षेत्र में श्रीमदभगवद्गीता कार्यक्रम को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाना है। उन्होंने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता दुनिया का एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जिसमें एकांत में रहने वाले संन्यासियों, व्यापार में लगे व्यापारी, शिक्षक जगत में पढ़ाने वाले शिक्षक तथा राजनीति क्षेत्र में लगे लोगों को लगता है कि उनका ग्रंथ है। उन्होंने लोकमान्य बालगंगाधर द्वारा गीता पर लिखी टीका को कर्मयोग शास्त्र से जोड़ने वाली टीका के बारे में कहा कि राजनीति क्षेत्र में रहने वालों को इस गीता का स्मरण करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि गीता का एक श्लोक का भी यदि मनुष्य अभ्यास करें तो उसे बाह्य एवं आंतरिक जीवन में प्रबन्धन का रास्ता प्राप्त हो सकता है। उन्होंने कहा भारत के महान संत गुरुनानक देव, भगवान बुद्ध सभी ने अपने आत्मज्ञान द्वारा ही प्रसिद्धि पाकर समाज को प्रकाशित किया। गीता मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ जीवन के लक्ष्य की ओर अग्रसर करती है तथा जीवन में अनुशासन गीता के द्वारा आता है जिससे व्यक्ति में दुख एवं सुख के प्रति समभाव जागृत होता है।
उन्होंने कहा कि भविष्य के जीवन के प्रबन्धन में दो तरह का प्रबन्धन मनुष्य के समक्ष आता है पहला प्रबन्धन प्रोफेशन से जुड़ा है तथा दूसरा मैनेजमेंट आंतरिक होता है जिसमें मनुष्य को अपने क्रोध पर काबू करके वाणी पर संयम रखना चाहिए, इसके लिए निरंतर स्वाध्याय करना आवश्यक है। महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन के मन में द्वंद्व उत्पन्न होता है तो ऐसे समय में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि क्रिया करना अच्छा या बुरा नही है और उन्होंने योग स्थित होकर कार्य करने का ज्ञान अर्जुन को दिया। उन्होंने कहा कि परा ब्रह्म विद्या वह होती है जो आत्मज्ञान से उत्पन्न होती है तथा इसके द्वारा ही मनुष्य जीवन में महत्वपूर्ण सफलताएं प्राप्त करता है। गीता भाग्यवाद का संदेश नहीं देती तथा कार्य को परफेक्टनेस के साथ कार्य करने का संदेश देती है। उन्होंने प्रारब्ध को पुरुषार्थ से जीतने की बात भी कही। उन्होंने गीता 7 वें गीता अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन के लिए कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय को बधाई देते हुए कहा कि यह श्रृंखला निरंतर जारी रहने चाहिए।
सेंटर फार यूनिफाईड बायोमैट्रिक्स एंड बुफैलो यूनिवर्सिटी यूएसए से आए समापन सत्र के मुख्य वक्ता डॉ. वेणु गोविन्द राजू ने कहा कि भगवद्गीता और उसकी शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी हजारो साल पहले जब भगवान कृष्ण ने मानव जाति को यह दिव्य अमृत प्रदान किया था। इस दुनिया में शांति और सद्भाव तभी प्राप्त हो सकता है जब अन्याय को पूरी तरह से समाप्त कर दिया जाए क्या यह संभव है। प्रश्न को आंतरिक और बाह्य दोनो तरह से सम्बोधित किया जाना चाहिए। महाभारत काल में भगवान कृष्ण ने सभी विकल्पों की खोज की और युद्ध से बचने और शान्ति प्राप्त करने के लिए पूरा प्रयास किया लेकिन यह अंततः क्रूर युद्ध छेड़े जाने के बाद ही हासिल किया गया था। हमारे दैनिक जीवन में असांजस्य वास्तविक और अप्रत्यक्ष अन्याय के कारण होता है। मनुष्य को शान्ति प्राप्त करने के कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए। उन्होंने कहा कि मनुष्य भगवद् गीता का केवल अनुसरण न करें अपितु अपने रोजमर्रा के जीवन में गीता को अनुभव करना चाहिए तथा गीता हमें अज्ञान का अंत सिखाती है।
गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि महाभारत की भूमि में भगवान कृष्ण ने 5159 वर्ष पहले जब दुनिया को गीता का संदेश दिया था। श्रीमद्भगवद्गीता उस समय भी प्रासंगिक थी और आज उससे भी अधिक प्रासंगिक है। वर्तमान विश्व व समाज की सभी समस्याओं का हल श्रीमद्भगवद्गीता में निहित है। इस ग्रन्थ को जीवन में अपनाकर ही विश्व का कल्याण संभव है। गीता एक ऐसा दिव्य ग्रंथ है इसका कोई रिवाईजड एडिशन नहीं है। गीता में आज तक किसी भी संशोधन करने की आवश्यकता नहीं पड़ी है। कोई भी अध्ययन करके देखे उन्हें लगेगा कि हर चुनौती से लड़ने का रास्ता गीता दिखाती है। वर्तमान स्थिति में जिस तरह के हालात हो रहे हैं इसके लिए निश्चित रूप से श्रीमद्भगवद्गीता की ओर देखना जरूरी है। देश में जीवन मूल्य, सामाजिक मूल्य, सांस्कृतिक मूल्य व मानवीय मूल्य बढ़े, भगवद्गीता का दर्शन हमें यही संदेश देता है।
इस अवसर पर कुवि कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव के अवसर पर इस वर्ष श्रीमद्भगवद्गीता के परिप्रेक्ष्य में विश्व शान्ति एवं सद्भाव विषय पर आयोजित संगोष्ठी में पिछले तीन दिनों में जिस तरह का विमर्श हुआ है उससे निश्चित रूप से जीवन की कई समस्याओं के समाधान निकाल सकेंगे तथा भविष्य के लिए एक नई राह भी तैयार कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि मनुष्य को आसक्ति त्याग कर कर्म करना चाहिए तथा अपेक्षाओं पर नियंत्रण करना जरूरी है। उन्होंने कहा मनुष्य को योग में स्थित रहकर कार्य करना चाहिए। गीता का जब उपदेश दिया गया उस समय युद्ध का माहौल था तथा अब भी वही स्थिति है। पूरे विश्व में युद्ध का खतरा मंडरा रहा है। इससे विश्व की पूरी अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था अपनी नीतियों के कारण विश्व के अन्य देशों अमेरिका एवं यूके के मुकाबले स्थिर है। कुरुक्षेत्र को धर्मक्षेत्र की संज्ञा दी गई है। पौराणिक समय से कुरुक्षेत्र को धर्मक्षेत्र के नाम से जानते हैं। सरस्वती नदी के तट पर उपनिषदों की रचना हुई है। आजकल के जीवन में विभिन्न तरह की परेशानियां इंसान को घेर कर रखती है उन सभी परेशानियों का हल भगवदगीता में है।
7 वीं अंतर्राष्ट्रीय गीता संगोष्ठी के निदेशक प्रो. तेजेन्द्र शर्मा ने तीन दिवसीय संगोष्ठी की रिपोर्ट प्रस्तुत की व मेहमानों का स्वागत किया। डॉ. विवेक चावला ने मंच का संचालन किया। अंत में धन्यवाद प्रस्ताव प्रो. वनिता ढींगरा ने किया। इस अवसर पर चंडीगढ़ से आई डिप्टी हाई कमिश्नर, कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के मानद सचिव श्री मदन मोहन छाबड़ा, कुवि कुलसचिव डॉ. संजीव शर्मा, डीन एकेडमिक अफेयर्स प्रो. मंजूला, प्रो. सुनील ढींगरा, प्रो. ब्रजेश साहनी, प्रो. अनिल गुप्ता, प्रो. वनिता ढींगरा, डॉ. प्रीतम सिंह, डॉ. सोमबीर जाखड़, डॉ. सुरजीत, डॉ. नीरज बातिश, डॉ. रामचन्द्र सहित शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।