श्री सनातन धर्म प्रचार एवं वेलफेयर सोसाइटी द्वारा परमार्थ भवन में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन श्री धाम वृंदावन के आचार्य श्री राम जी ने सप्ताहिक श्रीमद् भागवत कथा का गान करते हुए अजामिल चरित्र, जड़ भरत चरित्र व केवट प्रसंग का किया गुणगान
ब्राह्मण सभा रजि: की ओर से आचार्य श्री राम जी को पुष्पमाला अर्पित की गई और मुकुट पहनाया गया
फिरोजपुर 11 अप्रैल [कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता]
श्री सनातन धर्म प्रचार एंव वेलफैयर सोसाइटी द्वारा परमार्थ भवन में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन श्री धाम वृदांवन के आचर्य श्री राम जी ने सप्ताहिक श्री मद्भगवत कथा का गान करते हुए अजामिल चरित्र ,जड़भरत चरित्र व केवट प्रसंग का गुनगान किया । केवट प्रसंग का गुनगान चौपाई गा कर किया ।
“मांगी नाव न केवटू आना ।कहइ तुम्हार मरमु मै जाना ।
चरन कमल रज कहूँ सबु कहई। मानुष करनि मुरि कछू अहई ।।
श्री राम ने केवट से नाव मांगी, पर वह लाता नही है । कहने लगा कि वह तुम्हारा भेद जान लिया है। तुम्हारे चरण कमलो की धूल के लिए सब लोग कहते है कि वह मनुष्य बना देने वाली कोई जड़ी है । उंके पैर छुने से एक शिला सुंदर स्त्री हो सकती है मेरी तो नाव लड़की की है उंके पैर रखते ही टूट जायेगी मैं रोजी रोटी के लिए तरस जांऊगा ।
जौ प्रभु पार अविस गा चाहहू ।मोहि पद् पदुम परखान कहहू ।।
केवट कहने लगे प्रभु यदि आप अवश्य ही पार जाना चाहते हो तो मुझे पहले अपने चरण धौ लेने दो । मै आपके चरण कमल धौकर आप लोगौ को नाव पर चढ़ा लूंगा । लक्षमण जी चाहे मुझ से रूष्ट है पर मुझे सौगंध है मै आप से उसपार जाने की उतराई नही चाहता हे नाथ जब तक आपके पैर न पखराल लू तब तक मै पार नही उतारूंगा । केवट के प्रेम में जकड़े, श्री राम चंद्र जानकी व लक्षमण की और देखकर हसे और बोले तू वही कर जिससे तेरी नाव न जाए , जल्दी पानी ला और पैर धौ देरी हो रही उसपार उतार दे । केवट प्रभु के पैर धौ रहे थे प्रभु राम केवट को निहार रहे
थे।
“पद् नाख निरखि देव सवसरि हर्षी । सनु प्रभु वचन मोह मति करषी ।
केवट राम रजायसु पावा। पानिकठवता भरि लेई आवा” प्रभु के इन वचनो को सुनकर गंगा जी की बुद्धि भी मोह में खिच गई नाव से उतरने के बाद गंगा जी भी हर्षित हो गई और प्रभु के चरणो का सपर्ष कर मै भी अनदित हो जांऊगी । चरण धौकर केवट राम ,लक्षमण व जानकी के पैर धौकर स्वंय उस दल को पी कर अपने पितरो को भवसागर से पार कर फिर आनंदपूर्वक प्रभु को गंगाजी के पार ले गये । नाव से उतरने के बाद केवट ने प्रभु को दण्डवत प्रणाम किया । प्रभु को संकोच हुआ कि इसे कुछ दिया नही ।पति के हृदय को जानकर जानकी ने अपनी हिरो री अंगूठी उतार कर केवट को थमा दी और कहा कि अपनी उतरवाई लो । इसी प्रकार आगे आचार्य राम ने श्री अजमिल प्रंसंग और श्री जड़भरत प्रसंग में भरत के तीनो जन्मो की अलग अलग नामो से विस्तार से प्रंसग सुनाये जिससे पुरी संगत भाव विभौर हो उठी कथा का आंनद माना।