कबीरदास के दोहे आज के युग में भी प्रासंगिक
*कबीर के दोहों की प्रतियोगिता में जितेंद्र सक्सेना प्रथम,मेधाव्रत शास्त्री द्वितीय तथा मीरा मोहन तृतीय स्थान किया प्राप्त
दीपक शर्मा (संवाददाता)
बरेली : मानव सेवा क्लब के तत्वावधान में रविवार को बिहारीपुर स्थित इन्द्र देव त्रिवेदी के आवास पर कबीर दास की जयंती मनाई गई । विचार गोष्ठी और दोहों की प्रतियोगिता हुई। सबसे अच्छे दोहों का वाचन जितेंद्र सक्सेना ने किया उन्हें प्रथम पुरस्कार दिया गया। ।मेधाव्रत शास्त्री को दूसरा पुरस्कार दिया गया। तीसरा पुरस्कार मीरा मोहन को मिला।जिसमें वक्ताओं ने कबीर के दोहों वाचन किया और उनके दोहों को आज के युग में भी प्रासंगिक बताया। वक्ताओं ने कहा कि कबीर इस बात का प्रमाण है कि ज्ञानी होने के लिए पढ़ा लिखा होना आवश्यक नहीं है।ज्ञान अनुभव सेआता हैऔर मनन प्रवचन से सुदृढ़ होता है।संत ढाई अक्षर का शब्द है जिसके डेढ़ अक्षर का मतलब है संतुलन और अंतिम अक्षर का मतलब है तकलीफ सहने की आदत।
कबीर 15 वीं सदी में हुये पर उनकी रचनाएं आज 21 वीं सदी में भी मार्ग दर्शन कर रही हैं।कबीर के दोहों में भारतीय दर्शन की छाप है। क्लब के अध्यक्ष सुरेन्द्र बीनू सिन्हा ने कबीर के दोहे का वाचन करते हुए कहा कि
साईं इतना दीजिये जामै कुटुंब समाय
मैं भी भूखा न रहूं साधु ना भूखा जाय
जाति न पूछ़ोसाधु की पूछ लीजिये ज्ञान
मोल करो तलवार का पड़ी रहन दो म्यान।
बडा भया तो क्या भया जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नहीं फल लागत अति दूर।
यदि आपका बड़ा होना किसी का भला नहीं कर सकता तो ऐसा बड़प्पन किस काम का।
प्रो.एन. एल.शर्मा का कहना था कि आज के आपाधापी वाले वातावरण में बढ़ते हुए बाजारवाद के युग में सब खतरे में है क्रेता विक्रेता, उपभोक्ता उत्पादक, ग्राहक दुकानदार सभी असुरक्षित हैं सो कबीर कहते हैं ।
‘कबिरा खड़ा बजार में मांगे सबकी खैर
न काहू से दोस्ती न काहू से बैर।’
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार जनार्दन आचार्य ने की। विशिष्ट आतिथ्य डॉ. सुरेश रस्तोगी ने ग्रहण किया। कबीर दास के दोहों की व्याख्या इन्द्र देव त्रिवेदी, डॉ. रवि प्रकाश शर्मा,अमर सिंह वर्मा,सुधीर मोहन,विनोद गुप्ता,गणेश पथिक,प्रदीप कुमार, विशाल शर्मा, रामकुमार भारद्वाज और रामप्रकाश सिंह ओज ने बड़े ही सुंदर ढंग से की।संचालन क्लब के अध्यक्ष सुरेन्द्र बीनू सिन्हा ने किया। रश्मि उपाध्याय और निर्भय सक्सेना उपस्थित रहे।