शिवाजी महाराज एक वीर पुरुष थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन हिन्दू साम्राज्य के लिए समर्पित कर दिया : डा. श्रीप्रकाश।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा छत्रपति शिवाजी महाराज के 350 वें राज्याभिषेक दिवस पर कार्यक्रम सम्पन्न।
कुरुक्षेत्र, 06 जून : शिवाजी भोंसले उर्फ़ छत्रपति शिवाजी महाराज एक भारतीय शासक और मराठा साम्राज्य के संस्थापक थे। शिवाजी ने आदिलशाही सल्तनत की अधीनता स्वीकार ना करते हुए उनसे कई लड़ाईयां की थी। शिवाजी को हिन्दूओं का नायक भी माना जाता है। शिवाजी महाराज एक बहादुर, बुद्धिमान और निडर शासक थे। धार्मिक कार्य में उनकी काफी रूचि थी। रामायण और महाभारत का अभ्यास वह बड़े ध्यान से करते थे। वर्ष 1674 में शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ और उन्हें छत्रपति का ख़िताब मिला। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने छत्रपति शिवाजी महाराज के 350 वें राज्याभिषेक दिवस पर व्यक्त किये। कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप प्रज्जवलन से हुआ मातृभूमि सेवा मिशन के ब्रम्हचारिओ ने छत्रपति शिवाजी महाराज के वीरता एवं साहस से सम्बन्धित प्रेरक प्रसंग प्रस्तुत किये। डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा शिवाजी एक कट्टर हिन्दू थे, वह सभी धर्मों का सम्मान करते थे। उनके राज्य में मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता थी। शिवाजी ने कई मस्जिदों के निर्माण के लिए दान भी दिए था। हिन्दू पण्डितों की तरह मुसलमान सन्तों और फ़कीरों को बराबर का सम्मान प्राप्त था। उनकी सेना में कई मुस्लिम सैनिक भी थे। शिवाजी हिन्दू संकृति का प्रचार किया करते थे। वह अक्सर दशहरा पर अपने अभियानों का आरम्भ किया करते थे। डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा शिवाजी के परिवार में संस्कृत का ज्ञान अच्छा था और संस्कृत भाषा को बढ़ावा दिया गया था। शिवाजी ने इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अपने किलों के नाम संस्कृत में रखे जैसे कि- सिंधुदुर्ग, प्रचंडगढ़, तथा सुवर्णदुर्ग। उनके राजपुरोहित केशव पंडित स्वंय एक संस्कृत के कवि तथा शास्त्री थे। उन्होंने दरबार के कई पुराने कायदों को पुनर्जीवित किया एवं शासकिय कार्यों में मराठी तथा संस्कृत भाषा के प्रयोग को बढ़ावा दिया।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा शिवाजी महाराज ने अपने पिता से स्वराज की शिक्षा हासिल की, जब बीजापुर के सुल्तान ने उनके पिता को गिरफ्तार कर लिया था तो शिवाजी ने एक आदर्श पुत्र की तरह अपने पिता को बीजापुर के सुल्तान से सन्धि कर के छुड़वा लिया। अपने पिता की मृत्यु के बाद ही शिवाजी ने अपना राज-तिलक करवाया। सभी प्रजा शिवजी का सम्मान करती थी और यही कारण है कि शिवाजी के शासनकाल के दौरान कोई आन्तरिक विद्रोह जैसी घटना नहीं हुई थी। वह एक महान सेना नायक के साथ-साथ एक अच्छे कूटनीतिज्ञ भी थे। वह अपने शत्रु को आसानी से मात दे देते थे।एक स्वतंत्र शासक की तरह उन्होंने अपने नाम का सिक्का चलवाया। जिसे “शिवराई” कहते थे, और यह सिक्का संस्कृत भाषा में था। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रीय गीत वन्देमातरम से हुआ। कार्यक्रम मे आश्रम के विद्यार्थी एवं सदस्य उपस्थित रहें।