सागर मलिक
देश को आजादी चरखे से नही शहीदों के बलीदान से मिली है।
मेने अपने एक लेख में भारत के स्वतंत्रता संग्राम में RSS के योगदान की बात आपके सामने राखी थी, जिसके आज़ादी में योगदान को न जानें क्यों आजादी के बाद बनी नेहरु के नेतृव वाली कोंग्रेस सरकार ने गुमनामी के अंधेरों में धकेल दिया था।
आज मैं एक बात को और मिथ्या करना चाहता हूँl जैसे जैसे स्वतंत्रता दिवस का दिन नजदीक आता है वैसे वैसे कोंग्रेस एक ही गाना शुरू कर देती है कि देश को आज़ादी चरखे से मिली है और बच्चो को भी बचपन से ये बताया जाता रहा है कि देश को आज़ादी चरखे से मिली थीl
तो क्या हम ये मानके चले कि जो देश की आज़ादी के लिए सेकड़ो शहीद हुए उनका बलिदान कोई महत्व नहीं हैl पूरा विश्व जनता है कि भारत को आजाद करवाने के लिए अनगिनत क्रांतिकारियो ने अपने लहू से आज़ादी की दास्तान लिखी थीl अंग्रेजी हकुमत को भारत से उखाड़ने में अनगिनत देश के मतवालों ने अपने लहू की आहुति दी थीl
लगभग 76 साल पहले, 15 अगस्त 1947 की ऐतिहासिक तारीख को, भारत ब्रिटिश प्रभुत्व से मुक्त हो गया। यहां कई आंदोलनों और संघर्षों की परिणति थी जो 1857 के ऐतिहासिक विद्रोह सहित ब्रिटिश शासन के समय में व्याप्त थे। यह स्वतंत्रता कई क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानियों के प्रयासों के माध्यम से हासिल की गई थी, जिन्होंने इस संघर्ष को आयोजित करने का बीड़ा उठाया जिसके कारण भारत की स्वतंत्रता हुईं।
भारत की स्वतंत्रता के लिये अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन दो प्रकार का था, एक अहिंसक आन्दोलन एवं दूसरा सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन। भारत की आज़ादी के लिए 1857 से 1947 के बीच जितने भी प्रयत्न हुए, उनमें स्वतंत्रता का सपना संजोये क्रान्तिकारियों और शहीदों की उपस्थित सबसे अधिक प्रेरणादायी सिद्ध हुई। वस्तुतः भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग है।
भारत से अंग्रेजों को बाहर करने के संघर्ष में देश के हर कोने के लोगों ने भाग लिया। उनमें से कई क्रांतिकारियों ने भारत को अंग्रेजों के अत्याचारी शासन से मुक्त करने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम ऐसे क्रांतिकारों के कारनामों से भरा है जिन्होंने अपनी चिंगारी से युगों को रौशन किया है। भारत में स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों ने अपने बलिदान से देश को स्वतंत्र बनाने का मार्ग प्रशस्त किया है।
भगत सिंह, आजाद, राजगुरु, बी सुखदेव, राम प्रसाद बिस्मिल और सुभाष चंद्र बोस, वीर विनायक दामोदर सावरकर, गुलाब सिंह, अजीतसिंह, श्रीमती भीखाजी रुस्तम कामा, बाघा जतिन, लाला हरदयाल, और न जानें कितने भारत माता के सपूत नायक बनकर उभरे और इतिहास के पन्नों में दर्ज हुए. वहीं कुछ नाम गुमनामी के अंधेरे में कहीं खो से गएl