घेवर सामण का छोरा बाह्मण का : डा. महेंद्र शर्मा।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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कदे किसे ब्राह्मण ते न पंगा ले लेना।
पानीपत : मैं तो एक सरल और स्वाभिमानी ब्राह्मण हूं जिसको किसी सभा या संस्था से इस शब्द को सुनने, लिखने, गाने या पढ़ने की आज्ञा लेनी पड़े कि क्या मैं इस प्रेमशब्द को पढूं, लिखूं या गाऊं … कि नहीं।
दूरों देख दंडौत करि छड़ सिंहासनु हरि जी आए
बिप सुदामा दारदी बाल सखाई मितर सदाये
लागू हाई बाह्मणी मिल जगदीश दलिदर गंवाए
जीवन को सरल बनाएं, नियमन में बंधा रहना अच्छी बात है लेकिन हर बात पर अड़ जाना कि हम तो नियम के पाबंद हैं तो ऐसा रवैया भी कई बार गले की ऐसी फांस बन जाता है कि पीछे पछताने और रोने धोने के इलावा कुछ नहीं बचता खास कर जब किसी ब्राह्मण की अंनख जाग उठती है … तब। यद्यपि श्री राम चरित मानस यदि हम को जीने का ढंग नियम सिखाता है, धर्म और मर्यादा में रहना सिखाते हुए यह संदेश देता है … प्राण जाई पर वचन न जाई कि आप अपने द्वारा दिए गए वचनों को न छोड़े चाहे जीवन में विषमतम से विषमतम परिस्थिति क्यों न हो … यह बात भी रामायण ही कहती है …. तुलसी इस संसार में सब से मिलिए धाय सभी से प्रेम पूर्वक व्यवहार करें। न जाने किस घड़ी में कोई महानुभाव आ कर आप को ऐसी सलाह दे डाले और आप के वारे न्यारे हो जाएं। हुआ क्या कि किसी नगर में श्रावण के महीने में एक सामर्थ्यवान विप्रसुत पo सामण राम नामक ब्राह्मण अपने घर परिवार के लिए राशन और खाने पीने का समान लेने किसी शहर में गया। उसने किसी से कुछ खरीदा , किसी से कुछ तो आखिर में उसको किसी हलवाई की दुकान पर थोड़ी भीड़ दिखाई दी, इस भीड़ को देख कर उसकी उत्सुकता और बढ़ गई कि जब इतनी भीड़ है तो मिठाई की गुणवत्ता / क्वालिटी भी बढ़िया ही होगी। ब्राह्मण ने उस से कुछ नमकीन , समोसे और मिठाइयां ली बिल चुकता कर दिया लेकिन उस समय वह घेवर लेना भूल गया, उसने दुकानदार से मोल भाव पूछ कर कहा कि भाई इतना घेवर दे दो , जब घेवर का बिल चुकाने लगा तो उसमें 10 रुपए कम पड़ गए उसने अपनी जेब टटोली पर कुछ न मिला तो ब्राह्मण ने दुकानदार से कहा कि भाई या इसमें से घेवर कम कर दे या आते जाते दे दूंगा। दुकान पर ग्राहकों की भीड़ थी तो दुकानदार ने उस ब्राह्मण को कुछ अपशब्द कह दिए तो बाह्मण की
अनख जाग उठी। इस ब्राह्मण ने यह निश्चय कर लिया कि बस इस से ज्यादा और नहीं… उस सामर्थ्यवान ब्राह्मण ने आनन फानन उसकी दुकान के सामने वाली दुकान खरीद ली और बाहर से कारीगर बुला कर घेवर , नमकीन और और मिठाई का व्यापार शुरू कर दिया और बाहर बहुत बड़ा होर्डिंग लगा दिया महीना सामण का … घेवर बाह्मण का (मलाई वाला घेवर 300 रुपए किलो) और रिश्ता रस का … गर्मागर्म समोसा 10 का
अब पंडित जी की दुकान पर ग्राहकों की कतार नहीं टूट रही और वह दुकानदार खाली बैठा है और वह नगर के प्रतिष्ठित महानुभावों को उस ब्राह्मण के पास यह संदेश देकर भेज रहा कि उससे गलती हुई है, उसकी सात पीढियां पण्डित जी से क्षमा
मांगती हैं कि वह आज के बाद किसी ब्राह्मण से इस तरह का दुर्व्यवहार नहीं करेगा। यह है किसी ब्राह्मण के ब्राह्मणत्व को छेड़ने का परिणाम। उस ब्राह्मण ने यह कहा था कि भाई! या तो विश्वास कर ले दस रुपए आते जाते दे दूंगा या फिर इससे समान कम कर दे लेकिन तुमने अपशब्दों से ब्राह्मण का ब्राह्मणत्व कम कर दिया तो ब्राह्मण को छेड़ने का नतीजा परिणाम तो भुगतना ही होगा… क्रुद्ध ब्राह्मण हंती राष्ट्र:।
आचार्य चाणक्य का जब मगध नरेश घनानन्द ने सार्वजनिक अपमान किया तो उन्होंने उसको स्पष्ट शब्दों में कह दिया था … मैं ब्राह्मण हूं, मैं शिक्षक हूं। मैं अपने बुद्धि ज्ञान के बल पर ब्राह्मण को पालने वाले राजा और राज्य का निर्माण करने की क्षमता, शक्ति और सामर्थ्य रखता हूं। ऐसे ही नहीं द्वारकाधीश भगवान श्री कृष्ण द्वारपाल की यह बात सुन कर बिप सुदामा दारदी द्वार पर खड़े हैं और द्वारकाधीश श्री कृष्ण से मिलना चाहते है तो फिर भगवान उस को लिवाने के लिए सिंहासन से उठ कर दौड़े और रास्ते में पीताम्बर गिरने का भी उनको भान नहीं रहा और विप्र सुदामा को अपने सिंहासन पर विराजित कर के नयनजल से विप्रमित्र सुदामा के चरण पखारे। यह है ब्राह्मणों की महिमा … कभी भी कुछ भी किसी भी स्थिति में किसी से भी पंगा ले लेना लेकिन कदे किसी ब्राह्मण को न छेड़ देना।
प्रस्तुति : श्री निवेदन
श्री गुरु शंकराचार्य पदाश्रित आचार्य डाo महेंद्र शर्मा “महेश” पानीपत।