केन्द्र शासित प्रदेश दादरा-नगर हवेली के वन क्षेत्र में होगी प्राकृतिक खेती।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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प्रशासक प्रफुल्ल पटेल के आदेश पर फाॅरेस्ट ऑफिसर पहुंचे गुरुकुल, प्राकृतिक खेती की तकनीक को समझा।
कुरुक्षेत्र, 17 सितम्बर : मैदानी क्षेत्रों के किसानों के साथ-साथ अब आदिवासी क्षेत्रों में भी आचार्यश्री देवव्रत जी के ‘प्राकृतिक कृषि माॅडल’ से खेती की जाएगी। केन्द्र शासित प्रदेश दादरा-नगर हवेली के प्रशासक माननीय प्रफुल्ल पटेल के निर्देश पर फारेस्ट ऑफिसरों की एक टीम आज गुरुकुल कुरुक्षेत्र पहुंची और यहां पर प्राकृतिक खेती की आधुनिक तकनीक और कान्सेप्ट को बारीकी से समझा। गुरुकुल पहुंचने पर इस टीम का व्यवस्थापक रामनिवास आर्य एवं वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डाॅ. हरिओम ने गर्मजोशी से स्वागत किया, तत्पश्चात् प्राकृतिक खेती पर विस्तृत चर्चा हुई। इस विशेष टीम में राजधानी सिलवासा से आईएएस, सागर जी, आईएफएस, एम. राजकुमार, आईएफएस, प्रशान्त राजगोपाल, आईएफएस, एस. राजतिलक के साथ प्रगतिशील किसान और डेयरी संचालिका श्रीमती श्रुति दास शामिल रहें। दरअसल, दादरा-नगर हवली के वन क्षेत्र में आदिवासी धान, सब्जियों आदि की खेती करते हैं मगर रासायनिक खाद और कीटनाशक के प्रयोग से भी खेती में उत्पादन बहुत कम होता है। ऐसे में श्री प्रफुल्ल पटेल जी ने इस बारे आचार्यश्री देवव्रत जी से चर्चा की जिसके बाद उन्होंने गुरुकुल कुरुक्षेत्र में प्राकृतिक खेती की आधुनिक तकनीक और ट्रेनिंग लेने का सुझाव दिया, इस प्रकार फाॅरेस्ट ऑफिसर का यह दल गुरुकुल पहुंचा।
डाॅ. हरिओम ने इस टीम को सबसे पहले प्राकृतिक खेती के मूलभूत सिद्धान्तों की जानकारी दी। साथ ही उन्होंने प्राकृतिक और जैविक (ऑर्गेनिक ) खेती के बीच अन्तर को स्पष्ट किया क्योंकि आमतौर पर लोग प्राकृतिक और जैविक (ऑर्गेनिक ) खेती को एक ही मान लेते हैं जबकि ये दोनों एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न है। इसके बाद टीम के सभी अधिकारी डाॅ. विजय के साथ खेतों में पहुंचे और वहां पर विशेष तौर पर धान की फसल, सिंचाई और उत्पादन पर डाॅ. हरिओम से लंबी बातचीत की। साथ ही गन्ना, कमलम फल, सेब, आम, अमरूद और केले के बाग तथा हरी सब्जियों की फसलों का भी अवलोकन किया। डाॅ. हरिओम ने उन्हें जीवामृत एवं घनजीवामृत के निर्माण की अलग-अलग विधियां और इसके इस्तेमाल के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती में जीवामृत और घनजीवामृत का कल्चर ही सबसे महत्त्वपूर्ण घटक है, यदि सही मात्रा और सही समय पर जीवामृत का प्रयोग किया जाए तो बंजर भूमि भी उपजाऊ हो सकती है और इसका प्रेक्टिकल गुरुकुल फार्म की बंजर हो चुकी 50 एकड़ भूमि में किया जा चुका है, जो पूरी तरह से सफल रहा। गुरुकुल के फार्म का अवलोकन और डाॅ. हरिओम, डाॅ. विजय एवं रामनिवास आर्य द्वारा की गई प्राकृतिक खेती की तथ्यपरक् चर्चा से टीम के सभी अधिकारी पूरी तरह संतुष्ट नजर आए और उन्होंने आचार्यश्री देवव्रत जी के प्राकृतिक कृषि माॅडल की तारीफ करते हुए अपने क्षेत्र में भी इसी तकनीक से खेती करवाने का भरोसा दिया।