देवशयनी एकादशी से मांगलिक कार्य क्यों नहीं होते ? डॉ. सुरेश मिश्रा

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।

कुरुक्षेत्र : कॉस्मिक एस्ट्रो के डायरेक्टर व श्री दुर्गा देवी मंदिर पिपली (कुरुक्षेत्र) के अध्यक्ष डॉ. सुरेश मिश्रा ने बताया कि हिंदू पंचांग के अनुसार बुधवार ,17 जुलाई 2024 आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी तिथि से चातुर्मास का प्रारम्भ होता है जो कि चार महीने तक रहता है I इस समय भगवान विष्णु पाताल लोक में जाकर विश्राम करते हैं और इस समय सृष्टि का कार्य भगवान शिव देखते हैं I
हिंदू धर्म में मान्यता है कि इस दौरान सभी मांगलिक कार्य बंद होते हैं I इसी के साथ संतों-महात्माओं द्वारा चातुर्मास व्रत भी आरंभ हो जाएगा। कार्तिक शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि तक श्रीहरि क्षीरसागर में शेषनाग की शैया पर योगनिद्रा में विश्राम करेंगे।
12 नवम्बर 2024 , मंगलवार को देवोत्थान एकादशी पर पुन : उनका जागरण होगा।
इसे देवप्रबोधिनी या हरिप्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं। उसके बाद मांगलिक कार्य शुरू होंगे। इन चार महीनों में संत-महात्मा किसी एक ही शहर अथवा गांव में निवास करेंगे। जैन धर्म के अनुसार जैन मुनि भी चातुर्मास करते है I
चातुर्मास में मांगलिक कार्य क्यों नहीं होते ?
भगवान विष्णु को पालनहार कहा जाता है, इनके विश्रामावस्था में चले जाने से कोई भी मांगलिक कार्य जैसे – शादी- विवाह, मुंडन, यज्ञोपवीत आदि करना शुभ नहीं माना जाता है I
इस समय मांगलिक कार्य करने से भगवान विष्णु के साथ देवी-देवताओं का आशीर्वाद नहीं प्राप्त होता है I किसी भी मांगलिक कार्य में सबसे पहले देवी देवताओं का आवाहन किया जाता है और उन्हें साक्षी मानकर ही शुभ कार्य किये जाते हैं परन्तु भगवान विष्णु चातुर्मास में निद्रावस्था में होते हैं इसलिए वे मांगलिक कार्य में उपस्थिति नहीं हो पाते हैं। इसलिए इन महीनों में मांगलिक कार्यों पर रोक होती है I
श्री रामचरित मानस और श्री वाल्मीकि रामायण में भी बताया गया भगवान श्री राम ने बाली वध किया फिर चातुर्मास के कारण योग ,साधना और तपस्या की I चातुर्मास पूरा होने के बाद श्री हनुमान और प्रमुख वानरों को मां सीता की खोज के लिए चारों दिशाओं में भेजा गया I
धार्मिक शास्त्रों और पद्मपुराण के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि को शंखासुर दैत्य मारा गया। अत: उसी दिन से आरम्भ करके भगवान चार मास तक क्षीर समुद्र में शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। विष्णु पुराण के अनुसार यह भी कहा गया है कि भगवान हरि ने वामन रूप में दैत्य बलि के यज्ञ में तीन पग दान के रूप में मांगे। भगवान ने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया। अगले पग में सम्पूर्ण स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरे पग में बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर पग रखने को कहा। इस प्रकार के दान से भगवान ने प्रसन्न होकर पाताल लोक का अधिपति बना दिया और कहा वर मांगो। बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में नित्य रहें। बलि के बंधन में बंधा देख उनकी भार्या लक्ष्मी ने बलि को भाई बना लिया और भगवान से बलि को वचन से मुक्त करने का अनुरोध किया। तब इसी दिन से भगवान विष्णु जी द्वारा वर का पालन करते हुए तीनों देवता 4 – 4 माह में निवास करते हैं।
देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधिनी तक भगवान शिवजी, देवप्रबोधिनी एकादशी से महाशिवरात्रि तक भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा जी महाशिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक निवास करते हैं।
हिंदू धर्म में चातुर्मास आध्यात्मिक कारणों से बहुत ही महत्व रखता है I वर्षा ऋतु के कारण इस काल में सूर्य और चंद्रमा की शक्ति कमजोर पड़ जाती है इसलिए शरीर की ऊर्जा और शक्ति को बनाए रखने के लिए व्यायाम करना चाहिए।इस समय में भगवान शिव की पूजा की जाती है और भोलेनाथ अतिशीघ्र प्रसन्न होते हैं I चतुर्मास में इनकी पूजा करने से भक्त कि सभी मनोकामना पूरी होती है I
वैज्ञानिक दृष्टि से चातुर्मास में बढ़ता है जल संबंधित संक्रमणः चातुर्मास के चार महीनों में हमारी पाचन शक्ति कमजोर पड़ सकती है। साथ ही पानी के दूषित होने की संभावना भी अधिक रहती है। इसलिए जल संबंधित बीमारियों के बढ़ने की आशंका बढ़ जाती है। जैसे वायरल, सर्दी जुकाम, टाइफाइड व मलेरिया आदि।क्योंकि बरसात के कारण जमीनी कीड़े पैदा हो जाते हैं। इस मौसम में हरी पत्तेदार सब्जियां बैक्टीरिया के संक्रमण से ग्रसित हो जाती हैं। इनके सेवन से पहले अच्छे से धोने की सलाह दी जाती है। इसका कारण मौसम में परिवर्तन, वर्षा के कारण बैक्टीरिया का बढ़ जाना माना जाता है और आधुनिक विज्ञान भी इस बात को मानता है कि चातुर्मास के दौरान स्वास्थ्य पर सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसलिए सेहत के लिए चातुर्मास के दौरान व्रत और सुपाच्य भोजन लेना व योग करना बेहतर होता है,

इससे रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।

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