गुरु तेग बहादुर जी का जीवन त्याग, परोपकार और बलिदान की अनुपम गाथाः प्रो. सोमनाथ सचदेवा

केयू में गुरु तेग़बहादुर साहिब की 350वीं शहीदी वर्षगांठ पर विशेष संगोष्ठी।
कुरुक्षेत्र, वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक 26 सितंबर : गुरु तेग बहादुर जी का जीवन त्याग, परोपकार और बलिदान की अनुपम गाथा है। उन्होंने औरंगजेब के अत्याचारों से हिंदू समाज को बचाने के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर किया। उनके जीवन से हमें समाज के लिए प्राण न्योछावर की सीख मिलती है। उनके जीवन को हम हिंद की चादर के नाम से भी जानते हैं। गुरु का बलिदान पूरी मानवता का गौरव है। ये उद्गार कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पंजाबी विभाग द्वारा गुरु ग्रंथ साहिब प्रोजेक्ट टीम (सिख रिसर्च इंस्टीट्यूट, अमेरिका) और नम सबद फाउंडेशन के सहयोग से शुक्रवार को सीनेट हॉल में आयोजित एक दिवसीय विशेष संगोष्ठी में व्यक्त किए। इससे पहले दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया व कार्यक्रम के संयोजक एवं पंजाबी विभाग के अध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह ने सभी अतिथियों का स्वागत किया तथा बताया कि यह संगोष्ठी गुरु तेग़बहादुर साहिब की 350वीं शहीदी वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित की गई, जिसका उद्देश्य गुरु जी की शिक्षाओं और उनके बलिदान की विरासत पर विस्तृत चर्चा करना है।
कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने कहा कि आज के युवा हमारी प्राचीन संस्कृति से दूर हो रहे हैं। युवा पीढ़ी को गुरुओं की शिक्षाओं से प्रेरणा लेनी चाहिए। यह कार्यक्रम युवाओं को अपनी संस्कृति से जोड़ने का एक माध्यम है। गुरूबाणी में सुख और दुख में एक समान रहने तथा सोने और मिट्टी को एक समान समझने की सीख मिलती है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के ध्येय वाक्य योगस्थ कुरु कर्माणि में भी हमें यह सीख मिलती है। सफलता हो या असफलता मनुष्य को सम्भाव बनाकर अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ने एनईपी-2020 को सबसे पहले इसके सभी प्रावधानों के साथ देश में सर्वप्रथम लागू किया। भारतीय शिक्षा प्रणाली का इतिहास ना केवल शिक्षा का इतिहास है बल्कि यह भारतीय सभ्यता का भी इतिहास है।
कुलसचिव लेफ्टिनेट डॉ. वीरेन्द्र पाल ने कहा कि गुरु तेग बहादुर ने समाज में शांति, भाईचारा तथा मानवता का संदेश दिया। उन्होंने भाई मतिदास, भाई सतिदास और भाई दयाला जी की शहादत के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि गुरु तेग बहादुर जी की शहादत ने पूरे समाज को जागृत किया।
सरदार हरिंदर सिंह, सीनियर फेलो इनोवेशन डायरेक्टर, सिख रिसर्च इंस्टीट्यूट ने कहा कि गुरु तेग बहादुर साहिब की 350वीं शहादत वर्षगांठ न केवल सिख समुदाय के लिए बल्कि संपूर्ण भारत के लिए एक प्रेरणा का अवसर है। यह हमें याद दिलाती है कि आस्था, धार्मिक स्वतंत्रता और न्याय के लिए संघर्ष कभी विफल नहीं होते।
डॉ. जसवंत सिंह, निदेशक, गुरबानी रिसर्च ने कहा कि गुरु तेग बहादुर की वाणी सहज भाव से है जो आसानी से समझ आ जाती है। वह सिर्फ शस्त्र चलाना नहीं जानते वो संगीत, भाषा, शास्त्र, काव्य के धनी, परम्परा, इतिहास, कला, धर्म सभी को समझते थे। उनकी शिक्षाएं हमारे व्यक्तित्व का विकास करती हैं। वे सर्व गुण सम्पन्न शख्सियत थे। गुरु कहते थे कि संगत व बुद्धिमत्ता से ही तरक्की होती है।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में भाग ले रहे प्रो. अवतार सिंह, सीनियर रिसर्च फेलो यूएसए ने अपने विचार रखते हुए कहा कि गुरु तेग बहादुर जी के पुत्र द्वारा उनकी शहादत और जीवन के बारे में लिखते समय सीस दिया पर सिर न दिया वाक्यांश का प्रयोग किया था। उन्होंने अंग्रेजी विद्वान मैकालफ द्वारा लिखित गुरु तेग बहादुर जी की जीवनी और उसमें एक प्रमाण के माध्यम से बताया कि सर दादम मगर सिररे खुदा दादम वाक्यांश का बाद में गुरु गोबिंद सिंह जी ने पंजाबी में अनुवाद किया था। उन्होंने कहा कि गुरु तेग बहादुर जी के पदों में उस समय के समाज, संस्कृति और राजनीति के बारे में विचार हैं। उन्होंने छात्रों को गुरमत शब्द के अर्थ से भी अवगत कराया। मंच का संचालन डॉ. गुरप्रीत सिंह ने किया।
इस अवसर पर कुलसचिव डॉ. वीरेन्द्र पाल, प्रो. पुष्पा, प्रो. कृष्णा देवी, डॉ. कुलदीप सिंह, प्रो. महाबीर रंगा, डॉ. आनंद कुमार, डॉ. अजायब सिंह, डॉ. सुरजीत सिंह, डॉ. जगमोहन सिंह, डॉ. नीरज बातिश, कनाडा से सुंदरपाल, डॉ. करमदीप, अमृतपाल, डॉ. देवेन्द्र बीबीपुरिया, विक्रमजीत सिंह सहित शिक्षक, शोधार्थी व विद्यार्थी मौजूद थे ।