उत्तराखंड देहरादून प्रदेश में SIR से पहले ही बीएलओ की मुश्किलें बढ़ी, 2003 के मतदाता ढूंढना चुनौती

सागर मलिक
उत्तराखंड में चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की तैयारियों के दौरान ही बूथ लेवल अधिकारियों (बीएलओ) के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। खासकर प्रदेश के मैदानी जिलों में बीएलओ को वर्ष 2003 की मतदाता सूची के अनुसार मतदाताओं की मैपिंग करने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय की ओर से प्रदेशभर के 11,733 मतदान केंद्रों पर बीएलओ की तैनाती की गई है। सभी बीएलओ को वर्ष 2003 की मतदाता सूची के आधार पर मौजूदा मतदाताओं की मैपिंग करने के निर्देश दिए गए हैं। हालांकि पर्वतीय जिलों में यह काम अपेक्षाकृत आसानी से पूरा हो रहा है, लेकिन मैदानी जिलों में स्थिति बेहद जटिल बनी हुई है।
देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर जैसे जिलों में बीएलओ 2003 के मतदाताओं को तलाशते हुए भटक रहे हैं। बड़ी संख्या में ऐसे नाम सामने आ रहे हैं, जो अब वहां निवास नहीं करते। अधिकारियों का मानना है कि इन जिलों में देश के विभिन्न हिस्सों से रोजगार की तलाश में लोग आए, जिन्होंने उस दौरान यहां अपने वोटर कार्ड बनवा लिए। बाद में काम बदलने या अन्य कारणों से वे यहां से चले गए, लेकिन मतदाता सूची में उनके नाम अब भी दर्ज हैं।
निर्वाचन अधिकारी कार्यालय पूरे मामले पर करीबी नजर बनाए हुए है, ताकि उत्तर प्रदेश की तरह अचानक बड़े पैमाने पर वोट कटने की स्थिति न बने। आयोग की कोशिश है कि एसआईआर से पहले ही स्थिति स्पष्ट कर ली जाए।
प्रदेशभर में अब तक करीब 55 प्रतिशत मैपिंग का काम पूरा हो चुका है। पर्वतीय जिलों में यह आंकड़ा 70 प्रतिशत तक पहुंच गया है, जबकि मैदानी जिलों में प्रगति काफी धीमी है। चुनाव आयोग की योजना के मुताबिक, अगले साल की शुरुआत में एसआईआर प्रक्रिया शुरू की जानी है। इसके लिए प्री-एसआईआर कार्य को समय से पूरा करने पर जोर दिया जा रहा है, ताकि बाद में किसी तरह की अव्यवस्था न हो।




