वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
प्रस्तुति – डा. सत्यवान सौरभ।
भिवानी : लोग वही अब कह रहे, तेरा क्या अहसान।।
कत्ल हुए सब कायदे, लहुलुहान सम्मान।
सौरभ छोटे पकड़ते, बड़ों की गिरेबान।।
रिश्तों का माधुर्य खो, अकड़े जब संवाद।
आंगन की खुशियां मरे, होते रोज विवाद।।
कैसे करें यकीन हम, सब बातें लें मान।
गुर सिखलाए दौड़ के, जब लँगड़े इंसान।।
ऊंट, बैल, हल तक नहीं, नहीं खेत खलिहान।
बिना खोर, कोठार के, कैसे कहूं किसान।।
विश्वासों के पेड़ जब, खो बैठे हैं छांव।
बसे कहां अपनत्व से, हो हरियाला गांव।।
मेरे अक्षर लेखनी, दिल के सब जज्बात।
सौरभ मेरे बाद भी, रोज करेंगे बात।।
जिसको समझा उम्रभर, अपना दायां साथ।
वही काटकर ले गया, मेरा बायां हाथ।।
डॉ. सत्यवान सौरभ।