सभ्यता समय के साथ बदलती है लेकिन संस्कृति नहीं बदलती : अवनीश भटनागर

सभ्यता समय के साथ बदलती है लेकिन संस्कृति नहीं बदलती : अवनीश भटनागर

। हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक। दूरभाष – 9416191877

‘पुस्तकों में क्लेवर और तथ्य नए होंगे लेकिन मूल हमारी संस्कृति ही होगी’ संस्कृति बोध परियोजना पुस्तक पुनर्लेखन कार्यशाला का समापन। कुरुक्षेत्र, 23 अगस्त : विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान में आयोजित संस्कृति बोध परियोजना पुस्तक पुनर्लेखन कार्यशाला का आज समापन हुआ। 19 से 23 अगस्त तक चली पांच दिवसीय अखिल भारतीय कार्यशाला में देशभर के अनेक राज्यों से 28 प्रतिनिधियों ने प्रतिभागिता की। प्रतिभागियों ने संस्कृति ज्ञान परीक्षा की कक्षा 3 से 12 तक बोधमाला पुस्तकों में पुनर्लेखन का कार्य किया। समापन सत्र में मंचासीन विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के राष्ट्रीय महामंत्री अवनीश भटनागर, विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के अध्यक्ष डॉ. ललित बिहारी गोस्वामी, सह-सचिव वासुदेव प्रजापति, निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह, सं.बो. परियोजना के विषय संयोजक दुर्ग सिंह राजपुरोहित रहे। बैठक में अनेक प्रतिनिधियों ने अपने विचार साझा किए और महत्वपूर्ण सुझाव दिए। प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के राष्ट्रीय महामंत्री अवनीश भटनागर ने कहा कि नवीन लेखन में सम्पादन करते हुए सरल से कठिन और कक्षानुसार विषय वस्तु के आधार पर आगे बढ़ना होगा। लेखन में जिस सामग्री का प्रयोग किया गया है उसका सत्यापन अत्यन्त आवश्यक है। उन्होंने कहा कि हम बच्चों को क्या सिखाना चाहते हैं, यह विचार करने का एक पक्ष है, लेकिन हमने जो लेखन किया, उसका पुनरीक्षण भी उतना ही जरूरी है। ऐसा लेखन जो हमने किया, उसमें ज्ञान का पक्ष कितना और बोध का पक्ष कितना है? संस्कृति बोध में हम संस्कृति ज्ञान का पक्ष कितना ला सकते हैं, इस पर भी विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि लेखन के पुनरीक्षण में यह अवश्य ध्यान रखें कि हम सभ्यता का बोध नहीं करा रहे क्योंकि सभ्यता तो समय के साथ बदल जाती है जबकि संस्कृति शाश्वत है, वह नहीं बदलती। हमारे लेखन में संस्कृति का समावेश कितना और सभ्यता का समावेश कितना हुआ, यह भी विचार करना चाहिए। हमारे विचार को पोषण करने वाली ऐसी कौन-कौन सी बातें हैं जो इन पुस्तकों में लानी आवश्यक हैं। अध्यक्षीय उद्बोधन में वि.भा.संस्कृति शिक्षा संस्थान के अध्यक्ष डा. ललित बिहारी गोस्वामी ने देशभर से आए प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए कि सौभाग्य से आज तुलसीदास जयंती है। भारतीय कवि, संत और दार्शनिक तुलसीदास भारतीय संस्कृति के प्रवाह में मध्यकाल में संस्कृति के पोषक रहे। प्रवाह सनातन है और हमारे ऋषि-मुनियों ने संस्कृति को धीरे-धीरे प्रगाढ़ा है। उन्होंने कहा कि भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है लेकिन यह कृषि प्रधान नहीं अपितु ऋषि प्रधान देश है। हमारे ऋषियों ने जिस भारतीय संस्कृति का निर्माण किया, विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान भी आज के युग में उसी संस्कृति को आगे बढ़ाने में वाहक बना है। उन्होंने कहा कि नवीन पुस्तकों में इसका क्लेवर नया होगा, तथ्य नए होंगे लेकिन इसका मूल हमारी संस्कृति ही होगी। यह निरन्तर चलने वाला प्रवाह है। डॉ. रामेन्द्र सिंह ने बताया कि कार्यशाला मेें जिन पुस्तकों का पुनर्लेखन किया जा रहा है, ये पुस्तकें बोधमाला के रूप में देशभर के लगभग 20 लाख छात्रों, शिक्षकों एवं समाज तक पहुंचती हैं, जिन्हें पढ़कर लोग संस्कृति ज्ञान परीक्षा में प्रतिभागिता करते हैं और भारतीय संस्कृति के बारे में जानते हैं। संस्कृति बोध परियोजना पुस्तक पुनर्लेखन कार्यशाला को संबोधित करते विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के राष्ट्रीय महामंत्री अवनीश भटनागर।

Read Article

Share Post

VVNEWS वैशवारा

Leave a Reply

Please rate

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

बरेली: गन्ने के खेत में मिला महिला का शव, घर में मचा कोहराम

Thu Aug 24 , 2023
गन्ने के खेत में मिला महिला का शव, घर में मचा कोहराम दीपक शर्मा (संवाददाता) बरेली : शाही में जंगल में मिला महिला की शव। मौके पर पहुंची पुलिस ने शव का पंचनामा भरकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा। जानकारी के अनुसार शाही थाना क्षेत्र के गांव सेवा ज्वालापुर की महिला […]

You May Like

Breaking News

advertisement