दिव्या ज्योति जागृती संस्थान फिरोजपुर आश्रम में साप्ताहिक सत्संग कार्य कर्म के दौरान श्री गुरु रविदास जी के जन्मदिन के प्रोग्राम का किया गया आयोजन

फिरोजपुर 16 फरवरी {कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता}=
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान फिरोजपुर के स्थानीय आश्रम में साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम के दौरान श्री गुरु रविदास जी का जन्म दिवस मनाया गया। सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की परम शिष्य साध्वी कृष्णा भारती जी ने संगत को संबोधित करते बताया कि भारत ही नहीं विश्व में श्री गुरु रविदास जी के जन्मदिवस को बड़े ही श्रद्धा भाव से गुरु रविदास जयंती के रूप में मनाया जाता है।
साध्वी जी ने स्पष्ट रूप से समझाया कि गुरु रविदास जी एक महान धर्मशास्त्री, विचारक और संत थे, जिन्होंने अपनी शिक्षाओं के माध्यम से सार्वभौमिक भाईचारे और सहिष्णुता का संदेश फैलाया।
श्री गुरु रविदास जी ने मीरा बाई और अन्य लोग, जो भी उनकी दिव्य शरण में आएं, उन्हें भक्ति और कर्म के सर्वोच्च सत्य को प्रदान किया। साध्वी जी ने भक्ति आंदोलन के माध्यम से गुरु रविदास जी द्वारा प्रतिपादित दर्शन में निहित उद्देश्य को स्पष्ट रूप से रखा। उन्होंने कहा कि स्वयं को जीवन और मृत्यु से मुक्त करने के लिए, हमें “ब्रह्मज्ञान” सर्वोच्च ज्ञान की आवश्यकता है। आध्यात्मिक ज्ञान, आत्मनिरीक्षण का आरम्भ है और मन के सभी भ्रमों को समाप्त करता है। भटकते हुए मन की तरंगों पर नियंत्रण करने के लिए, एक दिव्य सत्य का अनुभव करना आवश्यक है, जिसे एक दिव्य दूरदर्शी या सिद्ध गुरु द्वारा दिव्य दृष्टि प्राप्त होने के बाद प्राप्त किया जा सकता है। संत रविदास ने अपनी शिक्षाओं में एक रहस्यमय स्थिति के बारे में उल्लेख किया है जहां सर्वोच्च के साथ स्वयं का मिलन होता है।
साध्वी जी ने समझाया कि सच्ची उपासना एक आध्यात्मिक अनुशासन है जिसका उद्देश्य सर्वोच्च पर मन को एकाग्र करना है। आत्म के दिव्य ज्ञान के माध्यम से व्यक्ति परमात्मा में विलीन हो सकता है और वास्तविक आनंद का अनुभव कर सकता है। दिव्य दृष्टि, ब्रह्मांड की आध्यात्मिक आभा को प्राप्त करने हेतु सटीक उपकरण है। “ब्रह्मज्ञान” व्यक्तिगत और सामाजिक उत्थान के लिए लोगों में आध्यात्मिक, सामाजिक और नैतिक मूल्यों को समृद्ध करने का एकमात्र सटीक मार्ग है। आत्मबोध श्रेष्ठ गुणों को जागृत करता है और वास्तविक आनंद, कृतज्ञता, क्षमा और करुणा को जन्म देता है। कार्यक्रम दौरान साध्वी रमन भारती जी की ओर से मधुर भजनों का गायन किया गया।