धरती पर मेरी कोई शत्रु न रखें पांव धरती माँ की सौगंध न छोडूंगा अगली बार : डा. अशोक वर्मा

धरती पर मेरी कोई शत्रु न रखें पांव धरती माँ की सौगंध न छोडूंगा अगली बार : डा. अशोक वर्मा।

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 9416191877

कविता के रचियता डा. अशोक कुमार वर्मा हरियाणा पुलिस विभाग में एक अधिकारी है।

कुरुक्षेत्र : प्रताप एक और शत्रु अनेक किए वार पर वार। धर्म से नहीं विचलित हुए जाने सब संसार।
वीर, अदम्य साहस, अभूतपूर्व शौर्य, एकलिंगजी अवतार।
14 वर्ष की आयु में ही विस्मित हुआ संसार।
शत्रुओं के प्रपंच और रानी धीरबाई के छडयन्त्र अपरंपार। हत्यारी गोहर भेजी मुगलों ने छल किए अनेक बार।
सर्प छोड़ा पैरों पर और पीठ में किया छुरे का प्रहार। मृत्यु पर विजय पाई और न त्यागा सद्व्यवहार।
जय जय जय हो कुंवर प्रताप सिसोदिया वंश कुमार। बैरम खान मुगलों का था बहुत बड़ा निर्मम वज़ीर।
सुरतन सिंह से जा मिला और मुग़ल ध्वज लगाया प्राचीर। प्रताप का वध करने की योजनाएं बनाता था बार-बार।
चितौड़ पर ध्वज फहराने का था मन में कटु विचार। छल बल कपट नीति का किया प्रताप संहार।
एक वार में ही धूमिल किया मुग़लों का सरदार। झांघ पर मारा भाला कूदकर प्रताप का सह न सका प्रहार।
धरती पर पड़ा तड़प रहा अकबर का भेजा वज़ीर। बालक समझा था उसने वो तो भारत का है वीर।
धरती पर कोई नहीं जन्मा जो प्रताप को सके मार। एक बार पुन: बैरम आया चितौड़ तक मन में लिए विचार।
प्रताप को मारकर करूंगा नर संहार। भीलों के संग बालक प्रताप ने बैरम की सेना पर किया प्रहार।
अपनी धरती से दूर खदेड़ दिया और कहा यह ललकार। जा तुझे जीवित छोड़ा, जीवन करो स्वीकार।
धरती पर मेरी कोई शत्रु न रखें पांव धरती माँ की सौगंध न छोडूंगा अगली बार।
अभी भी मुग़ल सुधरे नहीं छल कपट रखा था धार। एक और योजना बना भेजा जल मानव विधुत शक्ति से प्रचुर।
प्रताप गए स्नान को जल में बैठ गया छिप धूर्त करने को प्रहार। भीषण विधुत प्रवाह जल में खींच प्रताप पर किए वार पर वार।
असीम शक्ति के पुंज प्रताप ने हृदय रखा धीर। अदम्य साहस के बल पर उतरे नदिया तीर।
विधुत प्रभाव को रोकने माटी लिपटी देह पर। शक्तिशाली हाथ से किया निष्फल प्रहार।
काल के मुख में समा गया भेजा शत्रु एक और। जय जय जय प्रताप हो जग गूंजे चहुँ ओर।
प्रताप का वध करने में चुके सब हर बार। सामने से लड़ने में सक्षम नहीं, छिप छिप कर किए वार।
बाल्यकाल से ही निडर, निर्भीक, साहसी ऐसा नहीं कोई शूरवीर।
अफगानों संग युद्ध में सैनिक हो रहे थे खेत वीरता से लड़ रहे पिता उदय सिंह वीर।
पिता से छिपकर युद्ध में कूद पड़े प्रताप अफगानो को मारकर पहुंचे दुर्ग प्राचीर।
नरसंहार खूब हुआ मिटटी हुई लाल प्रताप के दृढ़संकल्प को नमन, ये है भारत माँ का वीर।
मेवाड़ ध्वज फहरा दिया चितौड़ की प्राचीर विजय बिगुल बजा विस्मित किया जय जय प्रताप महावीर।
दया, देश प्रेम, धर्म निरपेक्ष, उदारता, वीरता की प्रतिमूर्ति हैं महाराणा प्रताप कोटि कोटि नमन धरती के वीर।
दूरदर्शी, निष्कपट, विशाल हृदय, शत्रु को समान अवसर निशस्त्र पर नहीं किया वार।
अति विशिष्ट होते हुए रहे साधारण कभी न किया अभिमान धरती पुत्र तुम्हे सदा नमन करेगा संसार।
रचयिता – डॉ. अशोक कुमार वर्मा।

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